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पंजाब भाजपा के लिए चुनौती है निकाय चुनाव, 1991 के बाद पहली बार बिना अकाली दल के उतरेगी मैदान में

14 फरवरी को होने वाले नगर निगम, नगर पंचायत तथा नगर परिषद के चुनाव पंजाब बीजेपी के लिए चुनौती है। बीजेपी...
पंजाब भाजपा के लिए चुनौती है निकाय चुनाव, 1991 के बाद पहली बार बिना अकाली दल के उतरेगी मैदान में

14 फरवरी को होने वाले नगर निगम, नगर पंचायत तथा नगर परिषद के चुनाव पंजाब बीजेपी के लिए चुनौती है। बीजेपी अगर प्रदर्शन नहीं कर पाई तो फिर 2022 के चुनावों में उसका अकेले सरकार बनाने का सपना टूट जाएगा। बीजेपी पहली बार पंजाब में 1991के बाद अकाली दल से गठबंधन के बिना चुनाव लड़ने जा रही है। जो अकाली दल कभी भाजपा के लिए वोट मांगता था, वह इन चुनावों में न केवल अपने उम्मीदवार हर सीट पर खड़े करने जा रहा है

भाजपा इससे पहले प्रदेश में 23.विधानसभा सीटों पर ही चुनाव लड़ती रही है तथा कई सीटों पर नगर निगम, नगर परिषद और नगर पंचायतों में वह बड़े भाई के रूप में चुनाव लड़ती रही है लेकिन इस बार भाजपा के लिए जमीन इतनी आसान नहीं है क्योंकि प्रदेश के हाईकमान को बड़ी जोर-शोर से यह बात बताते रहे कि अगर भाजपा प्रदेश में कोई भी चुनाव अकेले लड़े तो वह भारी जीत दर्ज कर सकती है। इसी चक्कर में हाईकमान ने भी कृषि कानूनों को लेकर अकाली दल की नाराजगी को दरकिनार करते हुए उसे गठबंधन से अलग हो जाने दिया, लेकिन अब प्रदेश के नेताओं को इस बात की जानकारी है कि अगर उन्होंने इन चुनावों में अच्छा प्रदर्शन न किया तो उन्हें हाईकमान के गुस्से का शिकार भी होना पड़ सकता है।

वैसे भी इस समय प्रदेश में किसान आंदोलन को लेकर भाजपा का जोरदार विरोध किया जा रहा है। भाजपा नेताओं का जगह-जगह घेराव हो रहा है तथा कई गांवों में तो लोगों ने फ्लैक्स बोर्ड लगा दिए हैं कि उनके गांव में भाजपा नेताओं का आना मना है। कई जगहों पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अश्वनी कुमार सहित अन्य नेताओं का इतना विरोध किया गया कि पुलिस को उन्हें सुरक्षित वहां से निकालने में भारी मशक्कत करनी पड़ी। पूर्व कैबिनेट मंत्री तीक्ष्ण सूद के निवास स्थान पर तो नाराज किसान गोबर की ट्राली ही उड़ेल गए। इससे साफ है कि भाजपा के लिए हालात इस बार आसान नहीं है। भाजपा के कई नेता किसान आंदोलन के पक्ष में पार्टी को त्यागपत्र दे चुके हैं तथा आने वाले दिनों में यह सिलसिला और भी बढ़ सकता है। अगर नगर निगम के चुनावों में भाजपा आशा के अनुरूप प्रदर्शन न कर पाए तो कांग्रेस के साथ-साथ उसे अकाली दल के तेवर भी सहने पढ़ेंगे क्योंकि अकाली नेता तो पहले ही जोर-शोर से कह रहे हैं कि प्रदेश में भाजपा का कोई जनाधार नहीं है।

प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल आम आदमी पार्टी के लिए भी यह चुनाव एक चुनौती होंगे। पार्टी पहली बार अपने सिंबल पर चुनाव लड़ने जा रही है। पार्टी को उम्मीद है कि इन चुनावों में आशा अनुरूप प्रदर्शन कर विधानसभा चुनावों के लिए अपनी जमीन तलाशेंगे, लेकिन इन चुनावों के लिए कांग्रेस के लिए स्थिति कुछ आसान है। लोगों का ध्यान गैस, डीजल व पैट्रोल की बढ़ती हुई कीमतों के साथ-साथ लगातार बढ़ रही महंगाई की तरफ है जिसके लिए वह केंद्र की भाजपा सरकार को आरोपी मान रही है।

दूसरी तरफ किसान आंदोलन का समर्थन करने को लेकर किसानों का एक बड़ा वर्ग कांग्रेस का समर्थन करने का मन बनाए बैठा है। प्रदेश में बंटा हुआ विपक्ष कांग्रेस के लिए वरदान साबित हो सकता है क्योंकि आम आदमी पार्टी, भाजपा और अकाली दल कांग्रेस विरोधी मतों को आपस में बांटेंगे। ऐसे में कांग्रेसी उम्मीदवारों की लॉटरी लग सकती है। कांग्रेस का प्रयास रहेगा कि कैप्टन अमरेंद्र सिंह की छवि तथा प्रदेश में करवाए गए कुछ कार्यों के बल पर वह इन चुनावों में भारी जीत दर्ज कर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए अच्छा माहौल बना सकें। इस बात के कयास भी लगाए जा रहे हैं कि अगर इन चुनावों में कांग्रेस को लोगों का जोरदार समर्थन मिला तो वह विधानसभा चुनाव भी समय से पहले करवाने का दाव खेल सकती है।

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