Advertisement

कश्मीर में नजरबंद उमर अब्दुल्ला-महबूबा मुफ्ती पर लगा PSA, चिदंबरम बोले- यह लोकतंत्र का सबसे घटिया कदम

जम्मू-कश्मीर के दो पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए)...
कश्मीर में नजरबंद उमर अब्दुल्ला-महबूबा मुफ्ती पर लगा PSA, चिदंबरम बोले- यह लोकतंत्र का सबसे घटिया कदम

जम्मू-कश्मीर के दो पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) लागू किया गया है। पिछले 6 महीनों से दोनों नेताओं को नजरबंद किया गया है। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से ही दोनों पूर्व मुख्यमंत्री हिरासत में हैं। वहीं, पीएसए लागू होने के साथ ही दोनों नेताओं को बिना ट्रायल के तीन महीने की जेल भी हो सकती है। जानकारी के मुताबिक दोनों नेताओं पर सीआरपीसी की धारा 107 के तहत पीएसए में केस दर्ज किया गया है। वहीं, केंद्र सरकार के इस कदम पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी आनी शुरू हो गई हैं। प्रशासन के इस फैसले पर जहां पीडीपी भड़क उठी है वहीं, पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ने मोदी सरकार पर हमला बोला है।

बता दें कि उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती से पहले, दिन में नेशनल कॉन्फ्रेंस के महासचिव तथा पूर्व मंत्री अली मोहम्मद सागर और पीडीपी के वरिष्ठ नेता सरताज मदनी पर भी पीएसए लगाया गया।

राजनीतिक दलों ने की निंदा

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) लगाने पर पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कहा, “उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और अन्य के खिलाफ पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) की क्रूर कार्रवाई से हैरान हूं। आरोपों के बिना किसी पर कार्रवाई लोकतंत्र का सबसे घटिया कदम है। जब अन्यायपूर्ण कानून पारित किए जाते हैं या अन्यायपूर्ण कानून लागू किए जाते हैं, तो लोगों के पास शांति से विरोध करने के अलावा क्या विकल्प होता है?”

उन्होंने आगे कहा, “ पीएम मोदी का कहना है कि विरोध प्रदर्शन से अराजकता होगी और संसद-विधानसभाओं द्वारा पारित कानूनों का पालन करना होगा। वह इतिहास और महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला के प्रेरक उदाहरणों को भूल गए हैं।”

प्रशासन के इस फैसले पर पीडीपी के प्रवक्ता मोहित भान ने कहा, जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती के खिलाफ पीएसए लगाए जाने की पीडीपी कड़ी आलोचना करती है। प्रवक्ता ने कहा, अगर सरकार का विरोध करने पर मुख्यधारा के नेताओं पर मुकदमे होते हैं तो यह लोकतंत्र की हत्या है।

पीडीपी ने कहा कि इस तरह के 'अलोकतांत्रिक' कदम उठाकर केंद्र लोगों के धैर्य की परीक्षा ले रहा है। पीडीपी के प्रवक्ता ने कहा, ''जम्मू-कश्मीर में यदि सबकुछ सामान्य है तो मुख्यधारा के नेताओं के साथ अपराधियों जैसा बर्ताव क्यों किया जा रहा है?"

दोनों नेताओं को सौंपा गया डॉजियर 

साल 2000 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी मंत्रिमंडल में विदेश राज्य मंत्री तथा वाणिज्य मंत्री रहे उमर को तीन पन्नों का एक डॉजियर सौंपा गया है, जिसमें उनपर अतीत में व्यवस्था के खिलाफ बयान देने का आरोप है। उमर 2009 से 2014 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे। उमर के पिता फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ भी पिछले साल सितंबर में पीएसए के तहत मामला दर्ज किया था, जिसकी दिसंबर में समीक्षा की गई थी।

इसी प्रकार, मजिस्ट्रेट और एक पुलिस अधिकारी ने महबूबा मुफ्ती के सरकारी आवास पर जाकर उन्हें 2010 में दिये गए बयानों को लेकर डॉजियर सौंपा, जिसमें उन भाषणों को उन्हें हिरासत में रखने का कारण बताया। महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी 2014 से भाजपा की सहयोगी पार्टी थी। दोनों ने मिलकर 2018 तक जम्मू-कश्मीर में सरकार चलाई। भाजपा ने अचानक सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिसके बाद वहां राज्यपाल शासन लगा दिया गया।

यह फैसला केंद्र के जम्मू-कश्मीर में सामान्य हालात के दावे पर लगाता है सवालिया निशाना

माकपा की जम्मू-कश्मीर इकाई ने केंद्र के इस कदम की निंदा की। माकपा के वरिष्ठ नेता एम.वाई. तारिगामी ने कहा कि यह फैसला केंद्र के जम्मू-कश्मीर में सामान्य हालात के दावे पर सवालिया निशाना लगाता है। कांग्रेस की जम्मू-कश्मीर इकाई के मुख्य प्रवक्ता रवींद्र शर्मा ने चार नेताओं पर पीएसए लगाने को 'दुर्भाग्यपूर्ण' बताया।

5 अगस्त से हैं नजरबंद

बता दें कि 49 वर्षीय उमर और महबूबा मुफ्ती पांच अगस्त, 2019 से नजरबंद हैं। इसी दिन केन्द्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से विशेष दर्जा वापस लेकर उसे दो केन्द्रशासित प्रदेशों लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में विभाजित कर दिया था।

क्या है यह पीएसए कानून

जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत दो प्रावधान हैं-लोक व्यवस्था और राज्य की सुरक्षा को खतरा। पहले प्रावधान के तहत किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे के छह महीने तक और दूसरे प्रावधान के तहत किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे के दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता है। 

कब आया था यह कानून

जम्मू-कश्मीर में पीएसए को पूर्व मुख्यमंत्री स्व. शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने साल 1978 में लागू किया था। उन्होंने ये कानून उस समय जम्मू-कश्मीर के जंगलों की अवैध कटाई कर रहे लोगों को रोकने के लिए लागू किया था। बाद में इस पीएसए कानून का इस्तेमाल उन लोगों के लिए भी किया जाने लगा, जिससे राज्य की कानून-व्यवस्था के ‌‌लिए संकट माना जाता है।

 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad