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अखिलेश गठबंधन के लिए त्याग करने को तैयार, 2-4 सीटें कम पर भी समझौता कर लेंगे

भाजपा को 2019 में हराने के लिए समाजवादी पार्टी किसी भी कीमत पर बहुजन समाज पार्टी का साथ नहीं छोड़ना...
अखिलेश गठबंधन के लिए त्याग करने को तैयार, 2-4 सीटें कम पर भी समझौता कर लेंगे

भाजपा को 2019 में हराने के लिए समाजवादी पार्टी किसी भी कीमत पर बहुजन समाज पार्टी का साथ नहीं छोड़ना चाहती। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा को मात देने के लिए अखिलेश कम सीटों पर भी लड़ने के लिए तैयार हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने रविवार को मैनपुरी में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि गठबंधन के लिए दो-चार सीटें कम पर भी समझौता करना पड़े तो वह पीछे नहीं हटेंगे।

समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक उन्होंने कहा, “बसपा के साथ हमारा गठबंधन जारी रहेगा, 2019 में अगर हमें कुछ सीटें छोड़नी पड़ेगी तो हम इसे करेंगे। हमें भाजपा की हार सुनिश्चित करनी है।”

गौतलब है कि मायावती ने कैराना लोकसभा उपचुनाव के पहले संकेत दिया था कि यदि उन्हें सम्मानजनक सीटें नहीं मिलीं तो उनकी पार्टी अकेले ही चुनाव लड़ेगी। अब मायावती का यह दबाव काम आया है। अब देखना यह है अखिलेश यादव के इस बयान के बाद कितनी सीटों पर दोनों पार्टियों के बीच समझौता होता है।

भाजपा ने कहा, नहीं टिक पाएगा गठबंधन

उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य का कहना है कि एसपी और बीएसपी का साथ लंबा नहीं चलेगा और 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ही यह 'गठबंधन' टूट जाएगा। रविवार को मीडिया से बात करते हुए स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा, “एसपी-बीएसपी एक-दूसरे से लड़ते हुए खत्म हो जाएंगी। यह चुनावी समझौता मुद्दों पर आधारित नहीं हैं, ऐसे में इसका लंबे समय तक चलना संभव नहीं है। लोकसभा चुनाव से पहले-पहले इनके बीच की समझ खत्म हो जाएगी।”

सीटों का समीकरण

उत्तर प्रदेश में कुल 80 संसदीय सीटें है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन ने 73 सीटों पर जीत पाई थी। सपा को 5 और कांग्रेस को 2 सीटें मिली थी। जबकि बसपा का खाता भी नहीं खुल सका था। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में सपा ने बसपा से ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब रही थी। लेकिन पहले एक दूसरे के खिलाफ लड़ने वाली दोनों पार्टियों ने भाजपा को हराने के लिए फूलपुर-गोरखपुर उपचुनाव में एक दूसरे का समर्थन किया था। इसका परिणाम था कि भाजपा को करारी हार मिली। इसके बाद से दोनों पार्टियां की नजदीकियां बढ़ी हैं। यही कारण है कि अखिलेश यादव बसपा के लिए सीटें कुर्बान करने को भी तैयार हैं।

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