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क्यों हैदराबाद चुनाव में अमित शाह से लेकर भाजपा ने उतारी पूरी फौज, हजारों करोड़ों का है खेल

बिहार का चुनावी शोर थमने के बाद अब हलचले हैदराबाद में बढ़ गई है। लेकिन, यहां विधानसभा चुनाव...
क्यों हैदराबाद चुनाव में अमित शाह से लेकर भाजपा ने उतारी पूरी फौज, हजारों करोड़ों का है खेल

बिहार का चुनावी शोर थमने के बाद अब हलचले हैदराबाद में बढ़ गई है। लेकिन, यहां विधानसभा चुनाव नहीं, बल्कि नगर निकाय चुनाव होने जा रहा है जिसमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पूरे मूड के साथ चुनाव प्रचार में जुटी हुई है। भाजपा ने अपने कई दिग्गजों को प्रचार करने के लिए मैदान में उतारा है जिसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से लेकर भगवा रंग में नजर आने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं। दरअसल, इसके पीछे नगर निगम का सालाना बजट का खेल है जिसमें सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी पैठ बनाना चाहती है। हैदराबाद का चुनाव इसलिए भी अहम माना जा रहा है क्योंकि यह क्षेत्र ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिम (एआईएमआईएम) प्रमुख और सांसद असदुद्दीन ओवैसी का गढ़ माना जाता है। अब यहां से नगर निगम चुनाव में जीत दर्ज करने में लगी भाजपा ओवैसी के किले में सेंध लगाना चाह रही है।

यदि हम हैदराबाद, मुंबई जैसे महानगरों के सालाना बजट को देखें तो ये कई राज्यों के सालाना बजट के ज्यादा या दोगुना है। हैदराबाद नगर निगम का 2020-21 का बजट करीब 7,000 करोड़ रूपए है। जबकि मुंबई नगर निगम का बजट तो इससे कहीं ज्यादा है। चालू वित्त वर्ष 2020-21 में बीएमसी का सालाना बजट करीब 34 हजार करोड़ का है। वहीं, सिक्किम और मिजोरम जैसे राज्यों के सालाना बजट की बात करें तो यह इन नगर निगमों के सालाना बजट के आधे से भी कम है। सिक्किम और मिजोरम का सालाना बजट 2019-20 करीब 9,000 करोड़ रहा। इन पूरे राजनीतिक शोर के बीच हम बजट और अमीरी के खेल को समझ सकते हैं।

मुंबई नगर निगम सबसे अमीर नगर पालिका है। इसके सालाना बजट को देखें तो सबसे अधिक साला 2016-17 में यह बजट 37,052 करोड़ रुपये था। इस वक्त महाराष्ट्र में शिवसेना और बीजेपी अलग अलग है। 2019 में हुए नगर निगम चुनाव में दोनों पार्टी ने पूरे दांव लगा दिए थे। लेकिन, निगम की कुर्सी पाने में शिवसेना कामयाब रही। इससे पहले भी जब 2017 में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा और शिवसेना साथ थी तो उसने बीएमसी चुनाव में अलग-अलग लड़ने का फैसला किया था हालांकि, इस चुनाव में भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। शिवसेना को 84 और भाजपा को 82 सीटों पर जीत मिली थी। यानी हर पार्टी नगर निगम चुनाव में जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकने में कोई कसर छोड़ना नहीं चाहती है और यही अभी भाजपा हैदराबाद चुनाव में कर रही है।

अब एक दिसंबर को नगर निगम चुनाव के दिन देखना होगा कि योगी का भगवा बाण हैदराबाद की जनता को कितना छूता है। वहीं, वोटों की गिनती चार दिसंबर को होगी और तय हो जाएगा कि क्या बीजेपी ओवैसी के गढ़ में सेंध लगाने में कामयाब हो पाती है। क्योंकि, पिछले चुनाव में बीजेपी को महज चार सीटें हीं मिल पाई थी। जबकि तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) को कुल 150 में से 99 सीटें मिली थी और एआईएमआईएम को 44 सीटें मिली थी।

 

 

 

 

 

 

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