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कांग्रेस को नए अवतार में लाने की है राहुल की रणनीति, क्या इस्तीफा बदलेगा पार्टी का भविष्य

चारों ओर से त्याग पत्र वापस लेने की अपीलों को खारिज करके राहुल गांधी ने आखिर इस्तीफा दे ही दिया। सवाल...
कांग्रेस को नए अवतार में लाने की है राहुल की रणनीति, क्या इस्तीफा बदलेगा पार्टी का भविष्य

चारों ओर से त्याग पत्र वापस लेने की अपीलों को खारिज करके राहुल गांधी ने आखिर इस्तीफा दे ही दिया। सवाल है कि आखिर कांग्रेस और गांधी परिवार की रणनीति क्या है। क्या गांधी परिवार से निकालकर कांग्रेस को नए अवतार में प्रभावशाली राजनीतिक दल के तौर पर उभरने में सफलता मिलेगी। कांग्रेस का इतिहास बताता है कि उसने हर बार संकटों से उभरकर मजबूती से वापसी की है। इस बात की संभावना है कि गांधी परिवार से बाहर का व्यक्ति पार्टी की बागडोर संभालेगा लेकिन आंतरिक तौर पर पार्टी पर गांधी परिवार का असर रहेगा।

कांग्रेस की तात्कालिक चुनौती

ताजा आम चुनाव में करारी हार की नैतिक जिम्मेदारी लेकर ही राहुल ने इस्तीफा देने की न सिर्फ घोषणा की बल्कि अपने इस फैसले पर अड़े रहे। कांग्रेस की पराजय के अलावा राहुल गांधी के लिए अमेठी से हारना भी उनकी प्रतिष्ठा को भारी धक्का लगा। अमेठी में गांधी परिवार का प्रवेश 1975 में तब हुआ जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे और राहुल के चाचा संजय गांधी ने इसके अति पिछड़े गांव खेरौना में युवा कांग्रेसियों के साथ श्रमदान करके राजनीति में आने का बिगुल बजाया। इसके बाद संजय गांधी के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और यूपीए प्रमुख सोनिया गांधी ने भी अमेठी का प्रतिनिधित्व किया। पिछले तीन दशक से ज्यादा की अवधि में गांधी परिवार के सदस्यों ने ही सबसे ज्यादा समय अमेठी के लोगों का प्रतिनिधित्व किया। ऐसे में राहुल गांधी की हार ने उनकी अमेठी में प्रासंगिकता पर ही सवाल खड़ा कर दिया। इसी तरह पार्टी स्तर पर कांग्रेस के महज 52 सीटों पर सिमटने से उसकी राजनीतिक प्रतिष्ठा पर गंभीर सवाल खड़ा हो गया।

आखिर क्या है कांग्रेस की रणनीति

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह समेत भाजपा नेताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी पर नामदार कहकर तीखा हमला बोला और बार-बार परिवारवाद का आरोप लगाते हुए उन्हें घेरा। भाजपा ने यह संकेत देने का प्रयास किया कि गांधी परिवार के बिना कांग्रेस चल नहीं पाएगी। जबकि राहुल गांधी लगातार यह कहते रहे हैं कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस पहले ही तरह इस बार भी संकट से न सिर्फ उभरेगी बल्कि और मजबूत होकर वापसी करेगी। माना जाता है कि राहुल ने भाजपा के इस राजनीतिक हथियार को बेअसर करने के लिए अध्यक्ष पद त्यागने का फैसला किया है। उन्हें उम्मीद है कि पार्टी में अनुभवी और कुशल नेताओं की कोई कमी नहीं है। गांधी परिवार के नाम बिना भी मजबूती से आगे बढ़ सकती है।

पहले भी संकटों से उबरी है कांग्रेस

ऐसा नहीं है कि कांग्रेस पहले भी संकटों में फंसी और उनसे उभरकर देश के राजनीतिक पटल पर मजबूत नेतृत्व देने को तैयार हुई। आजादी के बाद वैसे तो कांग्रेस में कई संकट आए लेकिन सबसे गंभीर संकट तब पैदा हुआ जब 1975 में आपातकाल लागू करने के बाद वह अत्यधिक अलोकप्रिय हो गई। आपातकाल खत्म होने के बाद हुए चुनाव में वह सत्ता से बाहर हो गई और उसकी सीटें 350 से घटकर 153 रह गईं। खुद इंदिरा गांधी रायबरेली सीट हार गईं। लेकिन जनता पार्टी की अल्पकालिक सरकार के बाद 1980 में कांग्रेस दोबारा सत्ता में आ गई। 1984 में इंदिरा गांधी की नृशंस हत्या के बाद सहानुभूति की लहर में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस 401 सीटें जीतकर सत्ता में फिर से आ गई। लेकिन उसके बाद पांच साल में पार्टी का फिर से पतन हुआ। बोफोर्स कांड के चलते पार्टी फिर से संकट में आ गई और गैर कांग्रेस पार्टियां एक बार फिर एकजुट होकर सत्ता में आ गई। इस बार गैर कांग्रेस पार्टियों की सरकार अल्पकालिक साबित हुई। 1991 में चुनाव के दौरान ही राजीव गांधी की हत्या के बाद पार्टी फिर से सत्ता में लौट आई। 1996 में भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते कांग्रेस फिर से सत्ता से बाहर हो गई। इसके बाद गैर कांग्रेसी दलों के तीन नेता प्रधानमंत्री बने। आखिर 1991 से लेकर 1998 तक गांधी परिवार से बाहर के नेता कांग्रेस प्रमुख बने। लेकिन वे पार्टी के एकजुट रख पाने में ज्यादा सफल नहीं हो पाए। तब सोनिया गांधी ने तमाम अपीलों के बाद पार्टी की बागडोर संभाली। 1999 में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को सत्ता मिली। कार्यकाल पूरा होने के बाद 2004 में हुए चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए को जनादेश मिला। 2009 में भी यूपीए सत्ता बरकरार रखने में सफल रही। 2014 के बाद इस बार फिर से कांग्रेस की हार और सीटें पचास के आसपास रह जाने से इस बार का संकट सबसे ज्यादा गंभीर है लेकिन इतिहास बताता है कि वह हर बार मजबूती के साथ उभरी है।

कांग्रेसियों को नेतृत्व के लिए गांधी परिवार से ही उम्मीद क्यों

राहुल गांधी के आज के फैसले से पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मंगलवार को कहा था कि कांग्रेस को राहुल गांधी नेतृत्व दे सकते हैं। यही नहीं, कांग्रेस के तमाम दूसरे नेता एक स्वर में राहुल से इस्तीफा वापस लेने के लिए अपीलें करते रहे। यहां तक कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने भी उनके इस्तीफे को एकमत से खारिज कर दिया। आजादी के बाद के इतिहास पर नजर डालें तो यह साफ हो जाता है कि पार्टी में स्थिरता सिर्फ गांधी परिवार के ही नेतृत्व में रही। जब भी गांधी परिवार से बाहर का व्यक्ति पार्टी के शीर्ष पद पर पहुंचा, किसी न किसी वजह से वह लंबे समय तक सभी को साथ लेकर चलने में विफल रहा। इस वजह से विरोधियों को यह कहने का मौका मिल जाता है कि कांग्रेस गांधी परिवार के प्रभाव से कभी बाहर नहीं आ सकती है।  

क्या होगा कांग्रेस का नया मॉडल

समय-समय पर पार्टी के भीतर भी ये मांग उठती रही कि आंतरिक चुनाव समुचित तरीके से कराए जाएं और किसी को भी चुनाव में न सिर्फ खड़े होने की अनुमति दी जाए बल्कि इसके लिए माहौल बनाया जाए। माना जा रहा है कि कांग्रेस इस बार इसी रणनीतिक पर काम कर रही है। राहुल गांधी के अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद हो सकता है कि कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए पूरे विधि-विधान से चुनाव होंगे और जो भी जीत कर आएगा, उसे अध्यक्ष बनाया जाएगा।

फिर गांधी परिवार की क्या होगी भूमिका

यह सवाल सबसे बड़ा है कि गांधी परिवार की पार्टी में क्या भूमिका रहेगी। इस बार की संभावना बहुत ज्यादा है कि इस बार पार्टी का संचालन यूपीए की सरकारों की तरह होगा। इसका आशय है कि अध्यक्ष औपचारिक रूप से पार्टी का संचालन करेगा लेकिन अनौपचारिक रूप से गांधी परिवार पार्टी पर नियंत्रण रखेगी और समय-समय पर कामकाज में दखल देगा।

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