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चुनाव से पहले फेरबदल से भाजपा को कितना फायदा, मुख्यमंत्रियों से लेकर संगठन में भी हेरफेर; जानें- इसकी इनसाइड स्टोरी

विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा अपनी रणनीति में कई अहम बदलाव कर रही है। राज्यों में शासित मुख्यमंत्रियों...
चुनाव से पहले फेरबदल से भाजपा को कितना फायदा, मुख्यमंत्रियों से लेकर संगठन में भी हेरफेर; जानें- इसकी इनसाइड स्टोरी

विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा अपनी रणनीति में कई अहम बदलाव कर रही है। राज्यों में शासित मुख्यमंत्रियों के साथ-साथ संगठन में भी बड़े फेरबदल किए जा रहे हैं। रविवार को गुजरात के नए मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल बनाए गए हैं। शनिवार को पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने अचानक सीएम पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद विधायक दलों की बैठक में पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया। माना जा रहा है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा ने ये बदलाव किए हैं।

इससे पहले भी पार्टी ने उत्तराखंड और कर्नाटक में मुख्यमंत्री चेहरे को बदले हैं। सबसे पहले उत्तराखंड में भाजपा ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को सीएम पद से हटाया। उसके बाद तीरथ सिंह रावत को कुर्सी सौंपी गई। लेकिन, तीरथ सिंह रावत कुछ महीने ही मुख्यमंत्री रह पाएं। अपने कई अटपटे बयानों को वो सुर्खियों में रहें। जिसके बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि, इसके पीछे रावत ने संवैधानिक कारणों का हवाला दिया। रावत ने कहा कि वो विधानसभा के सदस्य नहीं हैं और अब राज्य में उपचुनाव नहीं कराए जा सकते हैं क्योंकि अगले साल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। वहीं, रावत को हटाकर पुष्कर सिंह धामी को सीएम बनाया गया। अब त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पिछले दिनों पार्टी के  हाईकमानों से पूछा था कि उन्हें क्यों हटाया गया।

उत्तराखंड के बाद कर्नाटक में भी बड़े बदलाव करते हुए भाजपा ने बीएस येदियुरप्पा को पद से हटाकर बसवराज बोम्मई को राज्य की कमान सौंपी है। यहां तक कि बोम्मई मंत्रिमंडल में येदियुरप्पा के बेटे को भी जगह नहीं मिली है। अगले साल एक साथ पांच राज्यों में- पंजाब, मणिपुर, गोवा, यूपी और उत्तराखंड में चुनाव होने हैं। वहीं, गुजरात और कर्नाटक में भी अागामी साल के अंत में चुनाव होने हैं।

पार्टी मुख्यमंत्री चेहरे को बदलने के साथ-साथ संगठन में भी पार्टी कई बदलाव कर रही है। एक महीने पहले ही बिहार बीजेपी में संयुक्त सचिव रत्नाकर को पार्टी ने गुजरात इकाई का महासचिव बनाया था। रत्नाकर ने भीखू भाई दलसानिया की जगह ली थी, जो इस पद पर सबसे लंबे समय तक बने रहे। दलसानिया साल 2005 से 2021 तक महासचिव (संगठन) रहे और इस दौरान उनका बीजेपी के हर बड़े नेता के साथ उठना-बैठना रहा। अब दलसानिया को बिहार भेज दिया गया है।

बीजेपी के इस बड़े फेरबदल में उत्तराखंड की राज्यपाल बेबी रानी मौर्या का इस्तीफा भी अहम है। बेबी रानी एक दलित नेता हैं जो आगरा की मेयर भी रह चुकी हैं।खबर है कि अब पार्टी उन्हें उत्तर प्रदेश में अहम जिम्मेदारी दे सकती है। बीजेपी संगठन में बीते साल नवंबर माह में बड़े फेरबदल हुए थे। राधा मोहन सिंह को यूपी का प्रभारी बनाया गया, भूपेंद्र यादव को गुजरात और अरुण सिंह को कर्नाटक का जिम्मा दिया गया।

प्रभारी के पदों पर कुछ नए चेहरों को भी बीजेपी ने शामिल किया है। इनमें गोवा के सीटी रवि, उत्तराखंड और पंजाब के दुष्यंत गौतम, त्रिपुरा के विनोद सोनकर, हिमाचल प्रदेश के अविनाश राय खन्ना और मणिपुर के संबित पात्रा भी शामिल हैं। भूपेंद्र यादव और सुधीर गुप्ता को जहां गुजरात का सह-प्रभारी बनाया गया है तो वहीं गुप्ता को उत्तर प्रदेश के कानपुर क्षेत्र में इलेक्शन इंचार्ज की जिम्मेदारी भी दी गई है।

उत्तर प्रदेश में राधा मोहन सिंह के अंतर्गत सत्य कुमार, सुनील ओझा और संजीव चौरसिया को सह प्रभारी नियुक्त किया गया है, जिन्हें पीएम मोदी का करीबी तो माना ही जाता है, साथ में चुनावी प्रबंधन में महारत के लिए भी जाना जाता है। सत्य कुमार को तो हर उस चुनावी राज्य में नियुक्त किया जाता है जहां जंग मुश्किल मानी जाती है।

इस साल जनवरी में पीएमओ में पूर्व नौकरशाह अरविंद कुमार शर्मा को यूपी बीजेपी इकाई में शामिल किया गया था। उत्तराखंड बीजेपी अध्यक्ष को भी इसी साल मार्च में बदला गया था। मदन कौशिक की जगह बंसी धर भगत को कमान सौंपी गई थी। वहीं, जून में पार्टी ने शारदा देवी को मणिपुर का नया अध्यक्ष बनाया था क्योंकि पूर्व अध्यक्ष एस टीकेंद्र की कोरोना से मई में मौत हो गई थी।

अब देखना होगा कि अगले साल होने वाले पांच राज्यों के चुनाव में इस फेरबदल से बीजेपी को कितना फायदा पहुंचता है। दरअसल, भाजपा के अंदरखाने से ये बातें हर चुनाव से पहले निकलकर आती रही है कि दिल्ली के शीर्ष आलाकमान फीडबैक के बाद उन चेहरों पर भरोसा जताते हैं। हालांकि, पार्टी की तरफ से इस वक्त सर्वमान्य चेहरा के तौर पर पीएम मोदी हैं लेकिन राज्य में मजबूत पकड़ बनाए रखने के लिए पार्टी ये रणनीति अपना रही है।

 

 

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