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भ्रष्टाचार की मदद के लिए आरटीआई कानून कमजोर किया जा रहा है: राहुल गांधी

सूचना के अधिकार (आटीआई) कानून में संशोधन से जुड़ा विधेयक पिछले दिनों संसद से पारित होने के बाद अब...
भ्रष्टाचार की मदद के लिए आरटीआई कानून कमजोर किया जा रहा है: राहुल गांधी

सूचना के अधिकार (आटीआई) कानून में संशोधन से जुड़ा विधेयक पिछले दिनों संसद से पारित होने के बाद अब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शनिवार को भाजपा सरकार पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि भ्रष्टाचार की मदद करने के मकसद से इस कानून को कमजोर किया जा रहा है।

राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा, '' सरकार आरटीआई को कमजोर कर रही है ताकि भ्रष्टाचार को मदद दी जाए। '' गांधी ने यह भी कहा, ''अजीब बात है कि आमतौर पर शोर मचाने वाली भ्रष्टाचार विरोधी भीड़ अचानक से गायब हो गयी है।''

गौरतलब है कि सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक को पिछले दिनों संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के भारी विरोध के बीच पारित किया गया। विपक्ष और कई आरटीआई कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सरकार इस संशोधन के जरिये आरटीआई कानून को कमजोर कर रही है। दूसरी तरफ, सरकार का कहना है कि वह पारदर्शिता, जन भागीदारी और सरलीकरण के लिए प्रतिबद्ध है तथा यह संशोधन भी इसी क्रम में लाया गया है।

इससे पहले यूपीए प्रमुख सोनिया गांधी ने एक बयान जारी कर सूचना का अधिकार कानून में बदलाव का विरोध किया था। सोनिया गांधी ने कहा था कि वर्तमान केंद्र सरकार आरटीआई कानून को एक बाधा के रूप में देखती है और केंद्रीय सूचना आयोग की स्थिति और स्वतंत्रता को नष्ट करना चाहती है। उन्होंने अपने बयान में कहा,  “यह बेहद चिंता का विषय है कि केंद्र सरकार ऐतिहासिक सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 को पूरी तरह से ध्वस्त करने पर आमादा है। यह कानून, व्यापक परामर्शों के बाद तैयार किया गया और संसद द्वारा सर्वसम्मति से पारित किया गया, जो अब समाप्ति की कगार पर है।”

उन्होंने कहा, “पिछले एक दशक में  हमारे देश के 60 लाख लोगों ने आरटीआई का उपयोग किया है और सभी स्तरों पर पारदर्शिता और जवाबदेही प्रशासन की एक नई संस्कृति में प्रवेश करने में मदद की है। परिणामस्वरूप हमारे लोकतंत्र की नींव अथाह रूप से मजबूत हुई है। कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों द्वारा आरटीआई के सक्रिय उपयोग से समाज के कमजोर वर्गों को बहुत फायदा हुआ है।”

अपने बयान में गांधी ने आगे कहा,  “यह स्पष्ट है कि वर्तमान केंद्र सरकार आरटीआई अधिनियम को एक बाधा के रूप में देखती है और केंद्रीय सूचना आयोग की स्थिति और स्वतंत्रता को नष्ट करना चाहती है जिसे केंद्रीय चुनाव आयोग और केंद्रीय सतर्कता आयोग के साथ रखा गया था। केंद्र सरकार अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अपने विधायी बहुमत का उपयोग कर सकती है लेकिन इस प्रक्रिया में वह इस देश के हर नागरिक को अशक्त बना रही है।”

 

 

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