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खरीफ फसलों की एमएसपी में मामूली बढ़ोत्तरी की तुलना में लागत दर बढ़ने से किसान पर दोहरी मार - हुडडा

चंडीगढ,  पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सरकार द्वारा खरीफ सीजन के लिए...
खरीफ फसलों की एमएसपी में मामूली बढ़ोत्तरी  की तुलना में लागत दर बढ़ने से किसान पर दोहरी मार - हुडडा

चंडीगढ,  पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सरकार द्वारा खरीफ सीजन के लिए घोषित फसलों के समर्थन मूल्य में वृद्धि को नाकाफी बताया है। उनका कहना है कि पिछले एक साल में जिस तरह किसान की लागत बढ़ी है उसके मुकाबले ये बढ़ोत्तरी ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि सरकार ने फसलों के रेट में सिर्फ 1 से लेकर 6 प्रतिशत तक बढ़ोत्तरी की है। जबकि, एक साल के भीतर किसानों की लागत कई गुणा बढ़ चुकी है। सिर्फ तेल की महंगाई पर नजर डाली जाए तो पेट्रोल के रेट में एक साल के भीतर करीब 35 प्रतिशत और डीजल के दाम में करीब 25 प्रतिशत तक का इजाफा हो चुका है। सामान्य तौर पर भी हर साल किसान की लागत करीब 10 प्रतिशत बढ़ जाती है। लेकिन पिछले साल में तो लागत में असामान्य बढ़ोत्तरी हुई है। मंहगाई दर और फसल लागत के मुकाबले में सरकार द्वारा एमएसपी में आधी भी बढ़ोत्तरी नहीं की गई।

उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार के दौरान यूपीए सरकार की तुलना में एमएसपी की सालाना औसत वृद्धि दर आधी भी नहीं रही है। जबकि मजदूरी, ट्रांसपोर्ट, सिंचाई, बुआई, कढाई और कटाई की लागत में यूपीए सरकार के मुकाबले कहीं ज्यादा वृद्धि हो रही है। इतना ही नहीं, बीजेपी देश की पहली सरकार है जिसने खेती पर टैक्स लगाया है। खाद पर 5%, कीटनाशक दवाई पर 18% और ट्रैक्टर व खेती उपकरणों पर 12% तक टैक्स लगाया गया है। इससे लगातार खेती की लागत बढ़ती जा रही है।

हुड्डा का कहना है कि सरकार लगातार किसानों की उपेक्षा कर रही है। ऐसा लगता है कि सरकार का विचार प्रकोष्ठ किसानों, मजदूरों और गरीबों के जीवन में कठिनाइयां बढ़ाने के लिए नई-नई योजनाएं, प्रयोग, प्रावधान और तरीके ढूंढने में व्यस्त है। सरकार की सोच लोगों के जीवन में संकट और संघर्ष की स्थिति पैदा करने की है। उनकी समस्याओं के समाधान, उनकी जिंदगी को आसान, सुखी और बेहतर बनाने की बजाए सरकार आम जनता को पूरी तरह निर्धन, निर्बल और नि:सहाय बनाना चाहती है।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि सरकार की तरफ से ऐलान की गई एमएसपी से स्पष्ट हो गया है कि वो ना तो किसानों की आय दोगुनी करना चाहती है और ना ही स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करना चाहती है। इसीलिए ना तो उसने एमएसपी को दोगुना किया है, ना लागत को आधा किया और ना ही सी2 फार्मूले के तहत एमएसपी का ऐलान किया। इससे लगता है कि 2022 में सरकार के दोनों वादे सिर्फ जुमला ही साबित होंगे।

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