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कश्मीर और एनआरसी के मुद्दे पर माकपा का मोदी सरकार पर निशाना, कहा- हो रहा संविधान पर हमला

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) पोलित ब्यूरो ने मोदी सरकार पर निशाना साधा है। पार्टी ने...
कश्मीर और एनआरसी के मुद्दे पर माकपा का मोदी सरकार पर निशाना, कहा- हो रहा संविधान पर हमला

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) पोलित ब्यूरो ने मोदी सरकार पर निशाना साधा है। पार्टी ने जम्मू-कश्मीर और एनआरसी के मुद्दे पर कहा कि मोदी सरकार भारत के संविधान पर हमला कर रही है। पार्टी का कहना है कि जम्मू-कश्मीर को राज्य के दर्जे से वंचित कर दिया जिसके चलते संचार और परिवहन पर बुरा असर पड़ा है। दुकानें और स्कूल बंद हो गए। खासतौर पर घाटी में सामान्य जनजीवन पर असर पड़ा है। बावजूद इसके सरकार हालात सामान्य होने का दावा कर रही है जबकि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने जमीनी हकीकत को पूरी तरह विरोधाभासी बताया है।

दिल्ली में पोलित ब्यूरो की दो दिन चली बैठक देश के हालात को लेकर यह विचार व्यक्त किए गए। पोलित ब्यूरो का कहना है कि देश के गृह मंत्री लगातार बयानबाजी कर संविधान की मूल अवधारणाओं का ही उल्लंघन कर रहे हैं। उनके एक देश एक भाषा के बयान का व्यापक विरोध हुआ है। उन्होंने देश में बहुदलीय व्यवस्था पर सवाल खड़ा किया है। यह सीधे तौर पर लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, संघवाद, मानवाधिकार और नागरिक स्वतंत्रता पर हमला है।

'एनआरसी प्रक्रिया में न हो भेदभाव'

पार्टी ने कहा कि भाजपा शासित विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अपने राज्यों में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) की मांग की है। असम समझौते के अनुसार एनआरसी असम का हिस्सा था और खासतौर से असम राज्य के लिए ही था। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत यह प्रक्रिया अपनाई गई। करीब 20 लाख लोग असम में एनआरसी से बाहर हो गए हैं। किसी भी सही भारतीय नागरिक को इससे बाहर नहीं रखा जा सकता। इससे छूटे सभी लोगों की अपील पर विचार किया जाना चाहिए और इस न्यायिक प्रक्रिया में बिना किसी भेदभाव के शामिल किया जाना चाहिए।

'एनपीआर की तैयारी बेमानी'

माकपा ने कहा कि सरकार ने राष्ट्रीय आबादी रजिस्टर (एनपीआर) को तैयारियों की फिर से जांच कराने की बात की है। इस बारे में गजट नोटिफिकेशन के जरिए घोषणा की गई है कि अगले साल अप्रैल से सितंबर के बीच घर घर जाकर गणना की जाएगी। एनपीआर की शुरुआत नागरिकता कानून और नियमों में संशोधन करके 2003 में वाजपेयी सरकार के समय की गई थी। सरकार बदलने के बाद भी यह प्रक्रिया जारी रही लेकिन जब आधार का मुद्दा आया और इसका कार्यान्वयन शुरु हुआ तो एनपीआर को छोड़ दिया गया क्योंकि यह इसकी पुनरावृत्ति ही था। लेकिन अचानक यह फिर से शुरु कर दिया गया है।

पार्टी का कहना है कि एनपीआर के आधार पर देश भर में एनआरसी की की तैयारी की जा रही है। देश के कई ग्रामीण और अंदरूनी हिस्सों में इस प्रक्रिया को अपनाना असंभव है जिससे काफी लोग छूट जाएंगे। मतदाताओं के पास पहले से मतदाता कार्ड और मतदाता सूची में नाम दर्ज है। ईवीपी की प्रक्रिया भी एक बार फिर सरकार के निहित लक्ष्यों को दर्शाने वाली प्रक्रिया है। साथ ही गृहमंत्री ने घोषणा की है कि संसद के अगले सत्र में नागरिकता संशोधन विधेयक (कैब) पास कर दिया जाएगा। इससे एनआरसी से छूट गए गैर-मुस्लिमों को आश्वासन मिलता है कि उन्हें गारंटी के साथ नागरिकता मिलेगी लेकिन मुस्लिमों को यह नकारता है बेशक चाहे वह यही पैदा हुए सही नागरिक हो और पीढ़ियों से देश में रह रहे हों।

'किया जा रहा है टारगेट'

पार्टी ने कहा कि इन सभी चारों प्रक्रियाओं को एक साथ लाए जाने से साफ संकेत मिलता है कि ध्रुवीकरण को तेजी से बढ़ाने के लिए एक समुदाय के लोगों को टारगेट किया जा रहा है। धर्म के आधार पर नागरिकता देना भारतीय संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन है जो न केवल नागरिकता की गारंटी देता है बल्कि  जाति, धर्म और लिंग भेदभाव के बिना मूल अधिकार भी प्रदान करता है।

'सारी कवायद गैर-जरूरी'

पार्टी ने कहा कि देश में सार्वभौमिक तौर पर आधार कार्ड आने के बाद यह सारी कवायद गैर-जरूरी हैं। देश के मतदाताओं का नाम मतदाता सूची में फोटो के साथ दर्ज है और हर साल इसे संशोधित किया जाता है। जब यह सारी चीजें पहले से मौजूद हैं तो फिर असम के अलावा एनआरसी का विस्तार, एनपीआर, ईवीपी और कैब पारित करने के सभी प्रयास आरएसएस के वोट बैंक को साधने के लिए तेजी से ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने की ओर इशारा करते  हैं। जब पहले से आधार, मतदाता कार्ड जैसे तंत्र मौजूद हैं तो फिर नई  चीजों को दोहराना गैर जरूरी है इससे न केवल करोड़ों की लागत अनावश्यक तौर पर खर्च की जा रही है बल्कि यह सभी प्रयास आर्थिक मंदी को बढ़ावा देते हैं जिन पर रोक लगाई जानी चाहिए।

'खाद्यान में बढ़ोतरी पर सवाल'

माकपा ने कहा कि 19 अगस्त की रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी गोदामों खाद्यान का भंडार 713 लाख टन के रिकॉर्ड स्तर पर रहा। यह सभी रिपोर्ट असल आमदनी में गिरावट और बढ़ते कुपोषण की की ओर संकेत करती हैं जबकि ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2018 में 119 देशों में भारत की रैंक 103 है। साफ है कि बड़ी संख्या में लोग भूखे मर रहे हैं। पोलित ब्यूरो ने मांग की है सरकार को कम से कम 35 किलो प्रति परिवार की कीमत पर घोषणा करनी चाहिए।

लिंचिग को लेकर सवालों में सरकार

पार्टी ने कहा कि लिंचिग और निर्दोष लोगों की हत्या के गुनाहगारों के पकड़ने के मामलों में सरकार और इसकी एजेंसियों की भूमिका सवालों के घेरे में रही। हिंसा और महिलाओं के गैंग रेप के आरोपियों को संरक्षित किया जा रहा है। महिलाओं पर अत्याचार बढ़ रहे हैं जैसे कि दलितों और अल्पसंख्यकों पर अभूतपूर्व तरीके से हमले हुए। 2016 से सरकार ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों का कोई आंकड़ा तक जारी नहीं किया। पोलित ब्यूरो ने मांग  की है कि कानून के अनुसार दोषियों को दंडित किया जाना चाहिए और मोदी सरकार को इस तरह के अपराधियों के संरक्षण पर रोक लगानी चाहिए।

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