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मध्यप्रदेश में आसान नहीं कैबिनेट का विस्तार, शिवराज के सामने कई परेशानी

  एक तरफ मध्यप्रदेश कोरोना का जबर्दस्त संकट झेल रहा है, दूसरी तरफ यहाँ राजनीतिक उठापटक भी चरम पर है।...
मध्यप्रदेश में आसान नहीं कैबिनेट का विस्तार, शिवराज के सामने कई परेशानी

एक तरफ मध्यप्रदेश कोरोना का जबर्दस्त संकट झेल रहा है, दूसरी तरफ यहाँ राजनीतिक उठापटक भी चरम पर है। शिवराज मंत्रिमंडल का विस्तार भाजपा के लिए गले का फ़ांस जैसा बन गया है। भाजपा के कई विधायक मंत्री बनना चाहते हैं, तो दूसरी तरफ पुराने चेहरों के खिलाफ आवाज भी उठने लगी है। कांग्रेस से भाजपा में आए नेता भी मंत्री बनने की कतार में खड़े हैं।  सिंधिया समर्थकों ने अपने नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को केंद्र में मंत्री बनाने की मांगकर आग में घी डाल दिया है। ऊपर से उपचुनाव वाले 24 सीटों का राजनीतिक समीकरण भाजपा के पेशानियों पर बल डाल दिया। सत्ता से बेदखल होने का दुःख झेल रही कांग्रेस को भाजपा के भीतर मंत्री बनने के लिए चल रहा सिर फुटौव्वल मुद्दे के रूप में मिल गया है। 

मंत्रियों के चयन में शिवराज के छूट रहे पसीने

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अभी पांच मंत्रियों से काम चला रहे हैं। पांच मंत्री भी वे शपथ लेने के 29 दिन बाद बना पाए थे। इससे साफ़ है कि मंत्रियों के चयन में उनके पसीने छूट रहे हैं। इसमें भी कई दिग्गज छूट गए और कुछ अप्रत्याशित नाम आ गए। भाजपा मंत्री बनाने में जातीय समीकरण के साथ क्षेत्रीय संतुलन भी साधना चाहती है। विंध्य इलाके से पुराने विधायक केदारनाथ शुक्ला और गिरीश गौतम ने इस बार मंत्री बनने के लिए पूरा जोर लगा दिया है। शिवराज कैबिनेट में लंबे समय तक मंत्री रहे राजेंद्र शुक्ल फिर मंत्री बनने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं, लेकिन इस बार उनका खुलकर विरोध भी शुरू हो गया है। बुंदेलखंड से सिंधिया समर्थक गोविंद सिंह राजपूत मंत्री बन गए, लेकिन यहाँ से पार्टी के दिग्गज नेता गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह में मुकाबला है। यहाँ से विधायक शैलेन्द्र जैन का नाम चलने लगा है। शिवराज के पिछली कैबिनेट में जैन समुदाय से चार मंत्री थे। 

मंत्री बनने को लेकर कई नाम कतार में

भोपाल से विश्वास सारंग की जगह रामेश्वर शर्मा का नाम सामने आ रहा है। भाजपा के पुराने नेता कैलाश सारंग के पुत्र  विश्वास लंबे समय तक  शिवराज के कैबिनेट में मंत्री रहें  हैं।  मध्यप्रदेश में खासकर भोपाल में कायस्थ वोटर काफी हैं , ऐसे में कायस्थ समाज के विश्वास सारंग का पत्ता काटना भाजपा के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रही है। बालाघाट इलाके के पवार नेता और पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन को फिर मंत्री बनाने का विरोध हो रहा है। बालाघाट-सिवनी क्षेत्र से निर्दलीय विधायक प्रदीप जायसवाल भाजपा के समर्थन में आ गए हैं।  ये कमलनाथ सरकार में मंत्री थे। लेकिन बालाघाट-सिवनी क्षेत्र में बड़ी संख्या में पवार वोटर हैं, जिन पर भाजपा-कांग्रेस दोनों की नजर रहती है और जो राजनीतिक समीकरण बदलने की ताकत रखते हैं , ऐसे में पवार समाज के नेता की उपेक्षा भाजपा के लिए आसान नहीं है। 

16 सीटों पर होने  हैं उपचुनाव

भाजपा के लिए ज्यादा मुश्किल ग्वालियर -चंबल संभाग को लेकर है। यहाँ की 16 सीटों पर उपचुनाव होने हैं। इन विधानसभा क्षेत्रों  के प्रतिनिधि कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आ गए हैं , इनमें अधिकांश सिंधिया समर्थक हैं। इमरती देवी, प्रद्युमन सिंह तोमर और महेंद्र सिंह सिसौदिया कांग्रेस सरकार में मंत्री थे, लेकिन कांग्रेस छोड़ने के दो महीने बाद भी मंत्री नहीं बनने से इनमें बेचैनी की स्थिति है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बी डी शर्मा से इमरती देवी की मुलाक़ात  को  ऐसी नजरिये से देखा जा रहा है। कांग्रेस प्रवक्ता भूपेंद्र गुप्ता का कहना है - भाजपा डेढ़ महीने बाद भी मंत्रिमंडल नहीं बना पा रही है।

सिंधिया समर्थकों की मांग

सिंधिया समर्थक भाजपा में दर -दर भटक रहे हैं।  सवाल यह है कि भाजपा सिंधिया समर्थकों को मंत्री पद और उपचुनाव की टिकट से नवाजती  है , तो भाजपा के पुराने दिग्गजों का क्या होगा ? पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया, रुस्तम सिंह, पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा और दूसरे भाजपा नेता कितना सहन कर पाते हैं ? शिवराज मंत्रिमंडल में स्थान पाने के लिए सिंधिया समर्थकों के साथ कमलनाथ कैबिनेट में मंत्री नहीं बनाये जाने से  दुखी होकर कांग्रेस छोड़ने वाले  एदलसिंह कंसाना, राज्यवर्धन सिंह, हरदीप सिंह डंग और बिसाहूलाल सिंह भी लाइन में हैं।  शिवराज सिंह और बी डी शर्मा से भेंटकर एदलसिंह कंसाना अपनी इच्छा जाहिर कर चुके हैं। कांग्रेस विधायकों के तोड़फोड़ में आगे रहने वाले अटेर के भाजपा विधायक अरविन्द सिंह भदौरिया भी प्रबल दावेदार हैं। 

मंत्री की रेस में ये भी नाम

भाजपा में मंत्री की दौड़ में ब्राम्हण और ठाकुर विधायक आगे और ज्यादा भी हैं। सभी दिग्गज भी हैं। ऐसे में भाजपा नए चेहरे को मौका देने के फार्मूले पर सोच रही है। पुराने और दिग्गज नेताओं के  विरोध को  इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। मालवा अंचल से अभी सिंधिया समर्थक तुलसी सिलावट को मंत्री बनाया गया है, लेकिन यहाँ से कैलाश विजयवर्गीय  साथी विधायक रमेश मेंदोला भी मंत्री की दौड़ में हैं।  मालिनी गौड़ का नाम भी सामने आ रहा है।  साँची से विधायक रहे सिंधिया समर्थक  डॉ. प्रभुराम चौधरी के मंत्री बनने से भाजपा नेता डॉ. गौरीशंकर शेजवार और उनके पुत्र का राजनीतिक भविष्य दांव पर लग जाएगा। 

24 विधानसभा सीटों पर चुनाव की घोषणा अभी नहीं हुई

मध्यप्रदेश में 24 विधानसभा सीटों पर चुनाव की घोषणा अभी नहीं हुई है।  चुनाव आयोग ने प्रारंभिक तैयारियों के साथ उपचुनाव वाले इलाकों से सरकारी अधिकारियों -कर्मचारियों के तबादले न करने के आदेश जारी कर दिए हैं।  ज्योतिरादित्य चाहते हैं उपचुनाव से पहले उनके कम से कम छह समर्थक मंत्री बन जाए। भाजपा की अपनी समस्या है।  भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बी डी शर्मा कहते है- भाजपा एक परिवार है,  सब मिलजुलकर काम करेंगे और जो जिम्मेदारी मिलेगी, उसका निर्वाह  करेंगे। मंत्रिमंडल नहीं बना पाने के लिए कांग्रेस  के नेता भाजपा को घेर  रहे हैं और पुराने भाजपा के लोगों की उपेक्षा को मुद्दा बना, लेकिन भाजपा के भीतर सहमति नहीं बन पा रही । सिंधिया का राज्यसभा जाना अभी अटका है,  पर उनके लोग उन्हें केंद्र में मंत्री बनाने की मांग कर रहे हैं।

कांग्रेस ने उपचुनाव की तैयारी शुरू की

 

कहते हैं भाजपा प्रवेश के शर्त के मुताबिक कांग्रेस से आए 10 लोगों को मंत्री बनाना होगा, लेकिन उसे मानती है या नहीं उस पर ही निर्भर करेगा, क्योंकि सिंधिया के एक समर्थक को उप मुख्यमंत्री बनाए की भी बात थी , पर ऐसा हुआ नहीं।  तुलसी सिलावट कैबिनेट मंत्री ही बन पाए। भाजपा अपने मुताबिक ही काम करती है। मध्यप्रदेश में 34 मंत्री बनने है , ऐसे में 10  मंत्री सिंधिया से बनते हैं तो भाजपा अपने 24 लोगों को ही मंत्री बना सकती है। चर्चा है कि कांग्रेस से भाजपा आए सभी को  टिकट दिया जाएगा, इसकी भी कोई गारंटी नहीं है। कांग्रेस ने उपचुनाव की तैयारी शुरू कर दी है और जीत सकने वाले नए चेहरे की तलाश में लग गई है।   कमलनाथ और दिग्विजय सिंह इस उपचुनाव के बहाने सिंधिया को सबक सिखाना चाहते हैं।  भाजपा अभी दो फार्मूले पर काम कर रही है।  एक तो जीत सकने वाले उम्मीदवार देख रही है, दूसरा कांग्रेस से आये लोगों को टिकट देकर जिताने की जिम्मेदारी 2018 के चुनाव हारे प्रत्याशियों को ही सौंप दे। 

सरकार तो बनी पर मुश्किल अभी और

भाजपा ने सरकार तो बना ली, पर परिस्थितियां देख लगता नहीं कि  शिवराज और भाजपा के लिए सरकार चलाना  सरल होगा। खटपट टालने के रास्ते  तलाशने में लगी है।  अब देखना होगा कि भाजपा क्या फार्मूला अपनाती है। कांग्रेस कह रही है कि  उपचुनाव के बाद उसकी सरकार बन जाएगी , पर मंजिल इतना आसान भी नहीं है।  देखते हैं आने वाले दिनों में दोनों दल किस तरह का पासा फेंकते है।     

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