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अब मूर्तियों के मंच पर माया से दो-दो हाथ

उत्तर प्रदेश में भाजपा की योगी आदित्यनाथ सरकार अब मायावती की बहुजन समाज पार्टी को मूर्तियों के मंच पर टक्कर देगी। हाल के विधानसभा चुनावों में मायावती के पाले से बसपा के कई नेताओं और गैर-जाटव वोट बैंक को तोड़कर भाजपा ने अपने लिए एक नया जनाधार कायम किया था। लेकिन अब शायद उसे लगता है कि दलित गौरव के नाम पर बने आंबेडकर पार्कों और स्मारकों की भी सोशल इंजीनियरिंग जरूरी है। सो, अब योगी सरकार इन पार्कों में अति पिछड़े समाज और ऊंची जाति के महानायकों की भी मूर्तियां लगाएगी।
अब मूर्तियों के मंच पर माया से दो-दो हाथ

इसकी शुरुआत लखनऊ के आंबेडकर पार्क में 11वीं सदी के राजभर समाज के नायक सुहेलदेव की मूर्ति लगाने के साथ होगी। यह भी गौर करें कि डॉ. भीमराव आंबेडकर, कांशीराम और अन्य महानायकों की सात फुट ऊंची संगमरमर की मूर्तियां लगी हैं लेकिन सुहेलदेव की संगमरमर और कांस्य प्रतिमाएं 16-18 फुट ऊंची होगी। यानी होड़ कई स्तरों पर है।
 
यह बात दीगर है कि भाजपा कभी मायावती की मूर्तियों और स्मारकों की सियासत की कटु आलोचक रही है। वह इसे राज्य के खजाने को ‘‘पत्थर पर लुटाने’’ का आरोप लगाती रही है। योगी सरकार इन स्मारकों और पार्कों के निर्माण में अनियमितताओं पर जांच भी बैठा चुकी है। मायावती ने 2007-2012 के अपने कार्यकाल में लखनऊ में आंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल बनाया था, जिसमें डॉ. आंबेडकर, कांशीराम और मायावती के अलावा संत रविदास, कबीरदास, रमाबाई आंबेडकर, छत्रपति साहूजी महाराज, ज्योतिबा फुले, बिरसा मुंडा, नारायण गुरु, गुरु घासीराम जैसे दलित-आदिवसी और पिछड़े समाज के नायकों की मूर्तियां लगाई गई हैं। कई चबुतरे खाली भी रखे गए हैं। अब इन्हीं में से एक चबुतरे पर सुहेलदेव की विशाल प्रतिमा स्थापित करने की योजना है।
 
योगी कैबिनेट में ऐसा प्रस्ताव लाने वाले पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि सुहेलदेव के अलावा अहिल्याबाई होलकर, सावित्री फुले, दक्ष प्रजापति, गुहराज निषाद जैसे अति पिछड़ा समाज के नायकों के साथ महाराणा प्रताप तथा पृथ्वीराज चौहान सरीखे ऊंची जाति के नायकों की भी मूर्तियां लगाई जाएंगी। भाजपा की सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्टï्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के मुताबिक देश की आजादी की लड़ाई के सभी नायकों और समाज सुधारकों सक्वमानित किया जाएगा। ओमप्रकाश राजभर ने रविवार को आंबेडकर स्थल का दौरा भी किया। 
 
जाहिर है, इसके सामाजिक-सियासी समीकरण भी होंगे ही। इसका कुछ संकेत राजभर ने यह कहकर दिया कि मायावती के स्मारकों का पहले विरोध इसलिए हुआ था कि एक जाति विशेष के नायकों की मूर्तियां ही लगाई गई थीं। यानी भाजपा अपने जनाधार में जातियों के मिश्रण के हिसाब से स्मारकों को नया रूप देना चाहती है। हालांकि इन पार्कों और मूर्तियों की आलोचना समाजवादी पार्टी भी करती रही है लेकिन पांच साल (2012-2017) के राज में अखिलेश यादव सरकार ने स्मारकों और पार्कों से कोई छेड़छाड़ नहीं की। शायद सपा सरकार को एहसास था कि इन स्मारकों को बसपा ने दलित अस्मिता और गौरव का प्रतीक बनाया, जिससे दलित और हाशिए के समाजों में सक्वमान का भाव जगा है।
 
हालांकि मायावती की अपनी मूर्ति लगाने की आलोचना तो की ही जा सकती है। इसी आलोचना को समझकर मायावती ने हाल के चुनावों में कहा था कि अब और मूर्तियों पर जोर नहीं दिया जाएगा।
 
असल में भाजपा भी मूर्तियों की राजनीति से बखूबी परिचित है। प्रधानमंत्री बनने के पहले गुजरात के मुख्यमंत्री के नाते नरेंद्र मोदी गुजराती अस्मिता के लिए वहां सरदार पटेल की सबसे ऊंची मूर्ति लगाने की मुहिम चला चुके हैं। यह अलग बात है कि अब उसकी ज्यादा चर्चा नहीं होती। महाराष्ट्र में देवेंद्र फडऩवीश सरकार शिवाजी की मूर्ति की सबसे ऊंची मूर्ति भी लगा ही चुकी है जिसका अनावरण खुद मोदी ने किया। लेकिन उत्तर प्रदेश में तो मूर्तियों के जरिए भी मायावती की सियासत में कुछ और सेंध लगाने की कोशिश दिखती है।      

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