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तेलंगाना में केसीआर को रोक पाएंगे राहुल-नायडू?

देश के सबसे नए-नवेले राज्य तेलंगाना में आज चुनाव प्रचार का आखिरी दिन है। 119 सदस्यीय विधानसभा के लिए 1,821...
तेलंगाना में केसीआर को रोक पाएंगे राहुल-नायडू?

देश के सबसे नए-नवेले राज्य तेलंगाना में आज चुनाव प्रचार का आखिरी दिन है। 119 सदस्यीय विधानसभा के लिए 1,821 उम्मीदवार मैदान में हैं। सात दिसंबर को 2.80 करोड़ मतदाता इनके भाग्य का फैसला करेंगे। कांग्रेस और टीडीपी ने 37 साल पुरानी प्रतिद्वंद्विता भुला जिस तरह हाथ मिलाया है, उसके कारण इन चुनावों पर पूरे देश की नजर टिकी है।

यदि कांग्रेस के नेतृत्व वाला महागठबंधन टीआरएस को सत्ता से बेदखल करने में कामयाब रहा तो इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन बनाने के आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के प्रयासों को धार मिलेगी। महागठबंधन में टीडीपी के अलावा सीपीआइ और टीजेएस भी शामिल हैं। टीजेएस के संस्थापक एम. कोदांदरम तेलंगाना राज्य आंदोलन के दौरान मौजूदा मुख्यमंत्री और टीआरएस सुप्रीमो चंद्रशेखर राव के साथी थे।

महागठबंधन ने समय से पूर्व चुनाव कराने के राव के दांव को उलझा दिया है। महागठबंधन बनने से पहले टीआरएस की सत्ता में वापसी की राह आसान मानी जा रही थी। लेकिन, अब टीआरएस और कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला दिख रहा है।

कांग्रेस और टीडीपी इस मौके को भुनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी खुद तेलंगाना 25 सभाएं कर चुके हैं। इनमें से छह में उन्होंने नायडू के साथ मंच साझा किया है। दूसरी ओर, टीआरएस की उम्मीदें राव पर टिकी है। सौ से ज्यादा रैलियां कर चुके राव लोगों से अपील कर रहे हैं कि पिछले दरवाजे से यदि नायडू को राज्य में पैर जमाने का मौका मिला तो तेलंगाना के हितों की अनदेखी होगी।

वाईएसआर कांग्रेस, एआइएमएम साथ

टीआरएस सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है। 2014 के चुनावों में तीन फीसद वोट के साथ तीन सीटें जीतने वाली वाईएसआर कांग्रेस ने इस बार उसे समर्थन दे रखा है। हैदराबाद की आठ सीटों के अलावा अन्य सीटों पर उसे एआइएमएम का समर्थन भी हासिल है। पिछले चुनाव में एआइएमएम ने सात सीटें जीती थी।

कांग्रेस इस बार 94 सीटों पर लड़ रही है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी जिसने 2014 में 15 सीटें जीती थी, इस बार 13 उम्मीदवार उतारे हैं। 2014 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ-साथ हुए थे। उस समय टीआरएस को 33 फीसदी वोट के साथ 63 सीटें मिली थी। 24 फीसदी वोट के साथ कांग्रेस ने 21 सीटें जीती थी। टीडीपी और उसकी तब की सहयोगी भाजपा ने 21 फीसदी वोट के साथ (टीडीपी 14+भाजपा 7) क्रमशः 15 और 5 सीटें जीती थी।

भाजपा में कितना दम?

तीसरी बड़ी ताकत भाजपा है, लेकिन उसका प्रभाव कुछ क्षेत्रों में ही सीमित है। उसकी उम्मीदें हिंदुत्व के फायरब्रांड परिपूर्णानंद स्वामी पर टिकी है। स्वामी ने पार्टी को 12-15 सीटें दिलाने का वादा किया है। प्रधानमंत्री मोदी भी राज्य में तीन रैली कर चुके हैं। उनके अलावा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी आक्रामक प्रचार कर रहे हैं। पार्टी ने कई केंद्रीय मंत्रियों और भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी मोर्चे पर लगा रखा है।

राष्ट्रीय राजनीति पर असर

राजनीतिक पंडितों के लिए अचरजों से भरे इस चुनाव में हर क्षेत्र के सामाजिक और आर्थिक समीकरण एक-दूसरे से काफी अलग हैं। अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों के मतदाताओं के मिजाज को भांप पाना आसान नहीं है। इसलिए, आंकड़ों के आधार पर अटकलें लगाने से जानकार भी बच रहे हैं। हालांकि इस बात में कोई दो मत नहीं है कि टीआरएस जीते या महागठबंधन इसका राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव पड़ना तय है। 

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