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पिछले 30 साल में इस बार का चुनाव सबसे कम स्वतंत्र और निष्पक्ष, 64 पूर्व आइएएस का निर्वाचन आयोग को पत्र

हाल में संपन्न हुए आम चुनाव पिछले तीन दशक में सबसे कम स्वतंत्र और निष्पक्ष रहे हैं। चुनाव आयोग पहले जिस...
पिछले 30 साल में इस बार का चुनाव सबसे कम स्वतंत्र और निष्पक्ष, 64 पूर्व आइएएस का निर्वाचन आयोग को पत्र

हाल में संपन्न हुए आम चुनाव पिछले तीन दशक में सबसे कम स्वतंत्र और निष्पक्ष रहे हैं। चुनाव आयोग पहले जिस तरह से निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए प्रयास करता रहा है, वैसे प्रयास करने मे इस बार आयोग विफल रहा। आदर्श चुनाव संहिता का उल्लंघन रोकने और ईवीएम में गड़बड़ियों को लेकर उठी आशंकाओं को निर्मूल साबित करने और आम लोगों को संतुष्ट करने में भी आयोग नाकाम रहा। देश के पूर्व आइएएस अधिकारियों समेत सिविल सेवाओ के 64 पूर्व अधिकारियों ने  अधिकारियों ने आम चुनाव में कई गंभीर अनियमितताओं के आरोप लगाए हैं। सिविल सोसायटी ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर ताजा चुनाव के दौरान उसके ढुलमुल रवैये पर गहरी चिंता जताई है।  

निष्पक्ष चुनाव के लिए आयोग ने पहले जैसे प्रयास नहीं किए

पूर्व अधिकारियों ने कहा है कि पिछले तीन दशकों में ताजा आम चुनाव देश के सबसे कम स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव रहे हैं। इससे पहले आपराधिक तत्वों, बाहुबलियों और भ्रष्ट नेता होने के बावजूद चुनाव आयोग के तत्कालीन अधिकारियों ने यथासंभव स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए पूरे प्रयास किए। लेकिन ताजा चुनाव में इस तरह के संकेत गए कि चुनाव की पवित्रता बनाए रखने की आयोग चुनाव की संवैधानिक शक्तियों को कमजोर किया गया। पूर्व में चुनाव आयोग की निष्पक्षता, विश्वसनीयता और योग्यता पर शायद ही कभी संदेह पैदा हुआ होगा। लेकिन दुर्भाग्यवश इस बार के आम चुनाव के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता है। यही वजह है कि पूर्व चुनाव आयुक्त और राज्यों के निर्वाचन आयुक्त भी संकोच के साथ मौजूदा चुनाव आयोग के फैसलों पर सवाल उठाने को बाध्य हुए।

पीएम की घोषणाओं के लिए चुनाव घोषणा में देरी

पत्र के अनुसार चुनाव तिथियो की घोषणा में ही एक पार्टी के प्रति आयोग का नरम रवैया दिखाई दिया। इस बार चुनाव आयोग की घोषणा करने में भी देरी की गई। ताकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव से पहले नई परियोजनाओं की घोषणा और शिलान्यास कर सकें। इससे पहले कभी इस तरह की देरी नहीं दिखाई दी थी। देश के इतिहास में सबसे लंबी चुनाव प्रक्रिया से भी संदेह पैदा हुआ। अलग-अलग तारीखों में चुनाव तिथियां तय करने की कोई वाजिब वजह नहीं दिखाई दी। तमिलनाडु, केरल और तेलंगाना जैसे राज्य, जहां सत्ताधारी पार्टी कमजोर हैं, वहां एक चरण में चुनाव कराया गया। जबकि लगभग बराबर लोकसभा सीटो वाले दूसरे राज्यों, जहां भाजपा मजबूत हैं, में चुनाव कई तिथियों में कराए गए। प्रधानमंत्री के चुनाव क्षेत्र वाराणसी में मतदान पार्टी सुविधा के अनुसार 19 मई को रखे गए। बड़े पैमाने पर मतदाताओं को सूची से निकालने पर तमाम खबरें मीडिया में आई। सबसे ज्यादा अल्पसंख्यों के नाम मतदाता सूची से हटाए गए। मीडिया की ये खबरें अनिवार्य रूप से सही नहीं हो सकती है लेकिन आयोग को इनकी जांच के लिए तुरंत कदम उठाना चाहए था। पिछले चुनाव में मतदान करने वाले मतदाताओं के भी नाम इस बार सूची से गायब थे। आयोग इन आरोपों पर कदम उठाने में विफल रहा।

आचार संहिता उल्लंघन के मामलों को नजरंदाज किया

पत्र में कहा गया है कि आदर्श आचार संहिता का कई उम्मीदवारों खासकर भाजपा के प्रत्याशियों ने खासकर घृणास्पद बयान और भाषण देकर उल्लंघन किया। आयोग ने यह कहकर इन आरोपों को नजरंदाज कर दिया कि उसे कार्रवाई करने के अधिकार नहीं हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कथित तौर पर बयान दिया कि अवैध अप्रवासियों को बंगाल की खाड़ी फेंक दिया जागा। आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों में आयोग ने तभी कार्रवाई जब सुप्रीम कोर्ट ने उसके अधिकार गिनाते हुए कड़ी फटकार लगाई। आयोग ने ऐसे मामलों में सबसे कड़ी कार्रवाई के रूप में कुछ दिनों के लिए प्रत्याशियों के चुनाव प्रचार पर रोक लगाई।

पुलवामा और बालाकोट के दुरुपयोग पर भी आयोग की चुप्पी

पूर्व अधिकारियों ने कहा है कि प्रधानमंत्री ने पुलवामा और बालाकोट का खुला दुरुपयोग करके राष्ट्रवादी उन्माद पैदा कर दिया। मोदी के प्रचार के लिए टीवी चैनल का प्रसारण दूसरा खुलेआम दुरुपयोग था। राज्य निर्वाचन आयुक्तों की रिपोर्टों के बावजूद आयोग ने प्रधानमंत्री को कारण बताओ नोटिस नहीं दिया। पुलवामा और बालाकोट के दुरुपयोग से आचार संहिता के उल्लंघन के सवाल पर आयोग में ही मतभेद पैदा हो गए। आयोग ने सदस्यों के बीच मतभेदों को नजरंदाज करके घटनाओं को खारिज कर दिया। चुनाव आयुक्त अशोक लवासा की प्रतिकूल टिप्पणी न्यायालय की व्यवस्था की तरह सार्वजनिक की जानी चाहिए। पूर्व अधिकारियों का मानना है कि इस तरह आयोग ने संविधान के अनुच्छेद 19 और नागरिकों के सूचना अधिकार का उल्लंघन किया।

पीएम के हैलीकॉप्टर की जांच करने पर पर्यवेक्षक को हटा दिया

प्रधानमंत्री के हैलीकॉप्टर की जांच करने वाले ओडिशा के विशेष चुनाव पर्यवेक्षक मोहम्मद मोहसिन को निलंबन भी आयोग का आपत्तिजनक कदम रहा। सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के मामले में सरकार को दोषमुक्त बताना गंभीर मसला था। मीडिया द्वारा उठाए गए आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों को भी आयोग ने खारिज कर दिया। चुनावी फंडिंग के मामलों में भी आयोग की भूमिका संदिग्ध रही. पिछले चुनाव में 3456 करो़ड़ रुपये की नकदी, सोना और ड्रग्स बरामद की गई। चुनाव बांड के मामले में भी गड़बड़ियां सामने आईं।

ईवीएम पर संदेहों को बिना कारण बताए खारिज किया

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) को लेकर काफी विवाद हुआ। ईवीएम से छेड़छाड़ को लेकर आयोग ने कहा कि मशीनों में कोई गड़बड़ी नहीं हो सकती है। लेकिन इस मामले में वह पारदर्शी नहीं रहा। अगर वोटर वेरिफायएबल पेपर ऑडिट ट्रैल (वीवीपैट) को लेकर आयोग का रुख सहयोगात्मक रहता तो लोगों का भरोसा बढ़ता। ईवीएम और वीवीपैट के मिलान की मांगों का आयोग ने सिरे से खारिज कर दिया।

रिटायर्ड सेनाधिकारियों, जजों और शिक्षाविदों का भी समर्थन

आयोग को पत्र लिखकर अधिकारियों ने आरोप लगाया है कि समय-समय पर चुनावी प्रक्रिया में गड़बड़ियों पर कार्रवाई करने में आयोग विफल रहा है। सिविल सेवाओं के पूर्व अधिकारियों द्वारा उठाए गए मुद्दों को 83 रिटायर्ड सेनाधिकारियों, जजों और शिक्षाविदों ने भी समर्थन किया है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा और  दो अन्य निर्वाचन आयुक्तों को भेजे पत्र में पूर्व अधिकारियों ने कहा है कि आम चुनाव में कई गंभीर अनियमितताएं बरती गई हैं। पूर्व अधिकारियों का यह समूह समय-समय पर देश हित में लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने को अपनी जिम्मेदारी मानते हुए समय-समय पर आयोग का ध्यान खींचता रहा है। पत्र के अनुसार चुनाव प्रक्रिया के दौरान कई समस्याएं और गंभीर मुद्दे सामने आए हैं। समय-समय पर मीडिया में अनियमितताओं की खबरें आती रही हैं। आयोग द्वारा इन खबरों को खारिज न किया जाना अथवा बिना समुचित आधार के उन्हें अस्वीकार किया जाना संतोषजनक नहीं है।

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