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राजस्थान में मुद्दे कहीं पीछे छूटे, सत्ता की संभावनाओं पर रणनीति तेज

राजस्थान में नई सरकार चुनने के लिए भारी मतदान हुआ है। छिटपुट घटनाओं को छोड़कर मतदान शांतिपूर्ण रहा।...
राजस्थान में मुद्दे कहीं पीछे छूटे, सत्ता की संभावनाओं पर रणनीति तेज

राजस्थान में नई सरकार चुनने के लिए भारी मतदान हुआ है। छिटपुट घटनाओं को छोड़कर मतदान शांतिपूर्ण रहा। मतदान से उत्साहित कांग्रेस को लगता है पांच साल बाद वो सत्ता में वापस लौट रही है। मगर सत्तारूढ़ बीजेपी का दावा है कि वो जीत रही है। इन सबके बीच दोनों पार्टियों ने एक दूसरे पर मतदान में गड़बड़ी के आरोप लगाए हैं। मतदान के दौरान मतदान केन्द्रों पर भीड़ उमड़ी और लोगों ने उत्साह से वोट डाले।

चुनाव आयोग के मुताबिक, राज्य में 73.85 प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है। लेकिन शाम मतदान का वक्त खत्म होने के समय तीन लाख लोग वोट डालने के लिए कतार में खड़े थे। अभी उनका हिसाब लगाया जा रहा है। इससे मतदान का प्रतिशत बढ़ने की सम्भावना है। आयोग जल्द ही मतदान के आंकड़ों की अंतिम तस्वीर पेश करेगा। वोटों की गिनती 11 दिसंबर को होगी।

दोनों तरफ जीत के दावे

मतदान के बाद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मदन लाल सैनी ने मीडिया से कहा, 'बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिलेगा। सैनी ने कहा, 'मुझे कार्यकर्ताओं से फीडबैक मिला है कि लोगों ने बीजेपी के कामकाज को ध्यान में रखकर मतदान किया है। मगर इसके उलट कांग्रेस के राजस्थान प्रभारी अविनाश पांडे ने आउटलुक  से कहा, 'राज्य भर से जो सूचनाएं मिली हैं, उसके मुताबिक कांग्रेस भारी बहुमत से सरकार बनाएगी। राज्य में दो सौ में से 199 विधानसभा सीटों के लिए शुक्रवार को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में वोट डाले गए। राज्य में अलवर जिले में रामगढ़ विधानसभा सीट पर बसपा प्रत्याशी लक्ष्मण सिंह के निधन के कारण चुनाव स्थगित कर दिया गया है।

प्रचार में मुद्दे कहीं पीछे छूटे

इन चुनावो में प्रचार शुरू होने के वक्त बीजेपी और कांग्रेस, दोनों पार्टियों ने मुद्दे आधारित प्रचार की बात कही थी। मगर जैसे-जैसे चुनाव प्रचार परवान चढ़ा, मुद्दे पीछे छूट गए और इसमें नामदार, चौकीदार, मंदिर-मस्जिद, जाति-धर्म और देशभक्ति के बीच ही बहस घूमती रही। लेकिन मतदान के दौरान वोट डालकर निकले अनेक मतदाताओं ने कहा कि उन्होंने रोजगार और विकास को जेहन में रखकर वोट डाले हैं। इस बार बीस लाख युवा मतदाताओं को भी वोट डालने का अधिकार मिला था। इनमें से एक जयपुर में अन्नू मीणा के लिए यह पहला मौका था जब उसने अपना वोट डाला। अन्नू कहती हैं, 'मेरे लिए रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा है। मैंने यही ध्यान में रखकर मताधिकार का प्रयोग किया है। कुछ मतदाताओं ने कहा कि उन्होंने पार्टी को केंद्र में रख कर वोट डाला है जबकि कुछ ने उम्मीदवार को प्राथमिकता दी है।‘

कांग्रेस को एंटी इन्कम्बेंसी की उम्मीद

राज्य में चार करोड़ 74 लाख मतदाताओं के मानस पर अपनी छाप छोड़ने के लिए सियासी दलों ने वो सारे रंग बिखेरे जिसके लिए भारत की सियासत को जाना जाता है। बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान में बारह सभाएं सम्बोधित कीं जबकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी नौ स्थानों पर अवाम से मुखातिब हुए। बीजेपी की तरफ से प्रचार को एक खास दिशा देने के लिए यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राजस्थान में करीब दो दर्जन स्थानों पर सभाएं कीं। इन दोनों दलों ने ना केवल नेताओं का सहारा लिया बल्कि फिल्मी सितारों को भी मंच दिया। बीजेपी ने कांग्रेस के मुकाबले बहुत व्यवस्थित ढंग से प्रचार किया। कांग्रेस को शायद 'एंटी इन्कम्बेसी' से मदद की बड़ी उम्मीद है।

सत्ता की संभावनाओं पर रणनीति शुरू              

मतदान के बाद शुक्रवार को पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जोधपुर से दिल्ली रवाना हो गए। समझा जा रहा है कि वे दिल्ली में तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के लिए आगे पार्टी की रणनीति बनाने में सहयता के लिए गए हैं। क्योंकि मतदान बाद के सर्वेक्षणों में कांग्रेस को बीजेपी से आगे बताया गया है। दोनों ही पार्टियों ने अभी से किसी भी संभावना को ध्यान में रखकर अपनी रणनीति बनाने का काम शुरू कर दिया है। राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट ने पत्रकारों से कहा, ‘कांग्रेस भारी बहुमत के साथ सत्ता में लौट रही है।‘

अन्य दल प्रभावित कर सकते हैं समीकरण

इन चुनावों में इन मुख्य दलों के अलावा बसपा सहित अन्य राष्ट्रीय पार्टियां भी मैदान में थीं। वामपंथी दलों  ने समान विचारधारा वाली पार्टियों से तालमेल कर उम्मीदवार खड़े किए थे। इन चुनावों में पहली बार जनजाति वर्ग में भारतीय ट्राइबल पार्टी ने आदिवासी बहुल क्षेत्र में 11 प्रत्याशी खड़े कर सियासी पार्टियों को चौंका दिया। प्रेक्षक कहते हैं यह नई पार्टी भले ही जीते न सही पर चुनाव समीकरणों को जरूर प्रभावित करेगी। ऐसे ही बसपा और दलितों की रहनुमाई करने वाले समूह भी चुनाव नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं। विश्लेषकों की नजर निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक पार्टी पर भी है। इस पार्टी ने जाट बहुल इलाकों में अपनी मौजूदगी का एहसास करवाया है। प्रेक्षकों की निगाह दोनों पार्टियो के उन विद्रोही उम्मीदवारों पर भी है जो अपने अपने क्षेत्रो में मजबूत स्थिति में है।

दोनों पार्टियों ने साधा जातीय गणित

बीजेपी और कांग्रेस ने प्रभावशाली जातियों को उम्मीदवारी में खास तवज्जो देकर संतुलन अपने पक्ष में करने की कोशिश की। बीजेपी और कांग्रेस ने जाट समुदाय के प्रत्याशियों को 33-33 स्थानों पर उम्मीदवारी दी। राजपूत समाज की नाराजगी दूर करने के लिए बीजेपी ने 26 राजपूत उम्मीदवार मैदान में उतारे जबकि कांग्रेस ने इस समुदाय के लिए 15 स्थान सुरक्षित रखे। बीजेपी के खाते में 23 ब्राह्मण जबकि कांग्रेस ने 21 ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट दिए थे। राज्य में अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय की आबादी दस फीसदी मानी जाती है। लेकिन बीजेपी ने इस समुदाय को एक टिकट ही दिया जबकि कांग्रेस ने 15 मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारे।

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