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बिहार में गठबंधन इन वजहों से मोदी-नीतीश लहर में बहा

बिहार की 40 लोकसभा सीटों में 39 एनडीए गठबंधन के खाते में जाती दिख रही है। बिहार में एनडीए गठबंधन के तहत...
बिहार में गठबंधन इन वजहों से मोदी-नीतीश लहर में बहा

बिहार की 40 लोकसभा सीटों में 39 एनडीए गठबंधन के खाते में जाती दिख रही है। बिहार में एनडीए गठबंधन के तहत भाजपा और नीतीश कुमार की जेडीयू 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। जबकि रामविलास पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी (एलजेपी) छह सीटों पर चुनाव लड़ थी। चुनाव आयोग की वेबसाइट के मुताबिक, एनडीए गठबंधन 39 सीटों पर जीत रही है या उसे बढ़त है। इसमें भाजपा सभी 17 सीटें जीतती दिख रही है, तो जेडीयू 16 सीटों पर आगे है। वहीं, एलजेपी भी सभी छह सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। बिहार में सिर्फ एक सीट किशनगंज पर कांग्रेस के डॉक्टर जावेद ने करीबी मुकाबले में जीत दर्ज की है। पाटलिपुत्र सीट से लालू यादव की बेटी मीसा भारती को फिर एक बार हार का सामना करना पड़ा। इस सीट से बीजेपी के रामकृपाल यादव ने लगभग 40 हजार वोटों के अंतर से जीत दर्ज की है। इस नतीजे को बिहार में आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव की विरासत संभालने की तैयारी कर रहे तेजस्वी यादव के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। इन नतीजों के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जनता को बधाई दी। उन्होंने कहा चुनावों के दौरान मेरे बारे में क्या-क्या नहीं कहा गया, लेकिन मैं पूरे चुनाव प्रचार के दौरान चुप रहा। मैंने सोचा जनता वोट दे फिर बोलूंगा। उन्होंने कहा कि जनता ने महागठबंधन को सिरे से नकारने के साथ मोदी और मेरे काम पर जनता ने जनादेश दिया है।

महागठबंधन की महाचूक

बिहार के नतीजों के लेकर शुरू से इस तरह के कयास लगाए जा रहे थे। एग्जिट पोल में भी कमोबेश इसी नतीजे को दिखाया गया। बिहार में पहले हुए चुनावी नतीजों को देखें, तो नीतीश कुमार का फैक्टर बहुत बड़ा रहा है। जिस भी गठबंधन के साथ नीतीश रहे, उसकी जीत लगभग तय रह है। 2010 में बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू और भाजपा साथ लड़े थे, तो भाजपा को 91 और जेडीयू को 115 सीटें मिली थी। इसके बाद 2015 के चुनाव में नीतीश लालू प्रसाद यादव की राजद के साथ महागठबंधन के तहत चुनाव लड़े और महागठबंधन की जीत हुई। राजद को 81, तो जेडीयू को 70 सीटें मिली थीं। यानी पिछले चुनाव के नतीजे में नीतीश एक बड़े फैक्टर के तौर पर उभरे। इसके अलावा विपक्ष ने महागठबंधन बनाया, लेकिन वह रणनीतियों और सीट बंटवारे को लेकर आखिर तक उलझी रही। कई मजबूत दावेदारों के टिकट काटे गए, जिससे एक खेमे में नाराजगी भी देखी गई. मधुबनी से कांग्रेस के शकील अहमद का टिकट कटा, तो राजद ने अपने दिग्गज मोहम्मद अली अशरफ को टिकट देने से मना कर दिया। इसके अलावा, राजद में यादव बंधुओं तेजप्रताप और तेजस्वी के बीच मनमुटाव की खबरों ने भी विपक्ष के विरोध में हवा तेज की। तेजप्रताप अपने ही ससुर और सारण से उम्मीदवार चंद्रिका राय के खिलाफ प्रचार में भी उतरे। सारण से राय को हार का सामना भी करना पड़ा। 

सीटों के बंटवारे में पेच

महागठबंधन के लिए सबसे बड़ा झटका लगने की एक बड़ी वजह रही, सीटों के बंटवारे में राजद की तरफ से सहयोगियों को उनकी क्षमता से अधिक भाव देना। महागठबंधन में राजद 40 में सिर्फ 19 सीटों पर लड़ी और 9 सीटें कांग्रेस, उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी को पांच, जीतनराम मांझी की हम को 3 और मुकेश सहनी की वीआईपी को तीन सीटें दीं। इनमें से मुकेश सहनी 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ चुनावी पारी की शुरुआत की थी। हालांकि, तब उन्होंने अपनी पार्टी नहीं बनाई थी। लेकिन, सहनी के साथ की वजह से भी भाजपा को फायदा नहीं हुआ। इसके बावजूद भाजपा ने सहनी को अपनी टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया था, जिसे उन्होंने मना कर दिया औऱ अपनी पार्टी बनाकर महागठबंधन के साथ हो गए। इसी तरह जीतन राम मांझी विधानसभा चुनाव में दो सीटों से लड़े, लेकिन एक सीट पर हार का सामना करना पड़ा था। फिर भी उन्हें तीन सीटें दी गईं। कुशवाहा की पार्टी एनडीए से नाता तोड़ने से पहले ही बिखर गई थी और उसके कुछ विधायक जेडीयू में शामिल हो गए थे।

केंद्र और राज्य की योजनाओं का लाभ

केंद्र सरकार की अगर जिन चुनिंदा योजनाओं ने धरातल पर काम किया, उनमें उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, घर-घर शौचालय प्रमुख थीं। लोगों में इससे एक संदेश गया कि सरकार उनके लिए कुछ काम कर रही है। इसके अलावा नीतीश कुमार ने सूखा राहत के तहत किसानों के खाते में एक निश्चित राशि का भुगतान किया, जिसका जमीनी स्तर पर असर देखने को मिला।

जाति फैक्टर बेअसर

नतीजों से साफ जाहिर है कि बिहार में जाति फैक्टर की भूमिका लगभग न के बराबर रही। महागठबंधन में राजद का वोटबैंक यादव और मुस्लिम माना जाता रहा है। वहीं, कांग्रेस का वोटबैंक सवर्ण और मुस्लिम रहा है। लेकिन, दोनों ही दलों ने अपने प्रमुख मुस्लिम नेताओं को टिकट न देकर मुसलमानों के एक वर्ग को नाराज किया। वहीं, उपेंद्र कुशवाहा खुद को कुशवाहा वोट के हितैषी कहते रहे हैं, लेकिन इस वोट बैंक के लिए उनकी टक्कर नीतीश कुमार से थी, जिनका शुरू इस वोटबंक पर बड़ा प्रभाव रहा है। इसी तरह मांझी दलित और मुकेश सहनी निषाद वोट भी अपना-अपना वोट ट्रांसफर कराने में असफल रहे। यह नतीजों से भी साफ होता है कि किस तरह जाति के फैक्टर को बिहार ने नकारा। राजद, वीआईपी, आरएलएसपी और हम का खाता भी नहीं खुल पाया।

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