Advertisement

मणिपुरः नाकेबंदी में फंसी भाजपा की उम्मीद

मणिपुर विधानसभा चुनाव में नगा संगठनों की नाकेबंदी की वजह से भारतीय जनता पार्टी की उम्मीद फंस गई है। जबकि इस बार वहां पर मुख्यमंत्री इबोबी सिंह के शासनकाल के दौरान सरकारी योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार और पिछड़ेपन की वजह से भाजपा की संभावना दिख रही थी।
मणिपुरः नाकेबंदी में फंसी भाजपा की उम्मीद

लेकिन एक नवंबर, 2016 से यूनाईटेड नगा काउंसिल के आर्थिक अवरोध का लाभ अब कांग्रेस के पक्ष में जाता दिखाई दे रहा है। मणिपुर की 60 विधानसभा सीटों के लिए 4 और 8 मार्च को चुनाव होना है।
मणिपुर की घाटी में 40 सीटें हैं और पहाड़ी इलाके में 20 सीटें हैं। घाटी में मैतेय मतदाता हैं, जबकि पहाड़ी जिले नगा बहुल हैं, कूकी आबादी भी है। 11 सीटों पर नगाओं की बहुलता है। नगा संगठन मणिपुर के नगा बहुल चारों पहाड़ी जिले को ग्रेटर नगालैंड में शामिल करने की मांग करते रहे हैं, जबकि घाटी के मैतेई क्षेत्रीय अखंडता के साथ किसी भी तरह का समझौता करने के पक्ष में नहीं हैं। इसके लिए वे मरने-मारने को उतावले रहते हैं।
यूनाईटेड नगा काउंसिल की 1 नवंबर से जारी आर्थिक नाकेबंदी की वजह से मणिपुर जाने वाले दोनों राष्ट्रीय मार्ग बंद हैं। इससे मणिपुर घाटी में सामान्य जिंदगी अस्त-व्यस्त है। पेट्रोल भी हवाई जहाज से भेजना पड़ा है। नगा संगठन पहाड़ी क्षेत्र में सात नए जिले के गठन से नाराज हैं। जबकि पहाड़ के कूकी संगठन कूकी बहुल इलाके में नए जिले के गठन के लिए आंदोलन कर रहे थे। नए जिलों के गठन से नगाओं का प्रशासनिक विभाजन हो गया है। वे इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। इसलिए उन्होंने आर्थिक नाकेबंदी की घोषणा कर दी। चुनाव की घोषणा के बाद भी नगा संगठन आर्थिक नाकेबंदी उठाने को तैयार नहीं हैं।
मणिपुर घाटी में कांग्रेस यह प्रचार करने में सफल रही है कि भाजपा ने नगा संगठनों से दोस्ती कर ली है। यदि भाजपा जीती तो मणिपुर विभाजित हो जाएगा। इसके पहले तक भाजपा इोबोबी सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप प्रचारित करने में सफल रही थी। भाजपा दो रणनीतियों पर चल रही है। घाटी में वह हिंदू मतदाताओं को रिझाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उपयोग कर रही है, जबकि पहाड़ी जिले में नगा संगठनों के साथ अपना आधार तैयार कर रही है। संघ नेताओं के साथ भाजपा महासचिव राम माधव मणिपुर में जमे हुए हैं।
आर्थिक नाकेबंदी को तोडऩे के लिए गृह मंत्रालय ने नई दिल्ली में त्रिपक्षीय बैठक भी बुलाई थी, लेकिन वह असफल रही। उसके बाद कांग्रेस ने प्रचारित कर दिया कि भाजपा नगा संगठनों से मिली हुई है और केंद्र सरकार आर्थिक नाकेबंदी हटाने में आनाकानी कर रहा है। इस वजह में मणिपुर घाटी के 40 सीटों में क्षेत्रीय अखंडता का मुद्दा प्रमुख हो गया और भ्रष्टाचार तथा सरकारी निकम्मेन जैसे मुद्दे पीछे हो गए हैं। जबकि पहाड़ी जिले के 20 में से 11 नगा बहुल सीटों पर नगाओं की एकता मुख्य मुद्दा है। 20 से 19 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं।
भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस ने जान-बूझकर विधानसभा चुनाव के कुछ माह पहले नए जिलों का गठन करके आफत मोल ली है। इबोबी सिंह लगातार तीन बार मुख्यमंत्री रहे हैं। इसमें दो राय नहीं कि उनके शासनकाल में भ्रष्टाचार फला-फूला है। इबोबी सरकार बेहतर प्रशासन देने में भी विफल रही है। भाजपा इसी मुद्दे पर कांग्रेस को घेर रही थी। भाजपा नेता राम माधव ने कहा कि भाजपा सरकार मणिपुर को बंद और नाकेबंदी से मुक्त राज्य देगी। राज्य का विकास होगा। भाजपा के प्रचार का असर आरंभ में दिख रहा था। लेकिन आर्थिक नाकेबंदी ने उसकी उम्मीद पर पानी फेर दिया है।
लेकिन कांग्रेस ने क्षेत्रीय अखंडता का नारा उछाल दिया है। उसने केंद्र सरकार और एनएससीएन (आईएम) के बीच प्रारूप समझौते की नीयत पर भी सवाल खड़ा किया है। कांग्रेस का आरोप है कि केंद्र उस समझौते का खुलासा नहीं कर रहा है। उधर अनवरत अनशन से राजनीति में आई इरोम शर्मिला ने यह कहकर घाटी में भाजपा के लिए परेशानी बढ़ा दी है कि भाजपा ने इबोबी सिंह के खिलाफ चुनाव लडऩे के लिए एक बड़ी राशि देने का प्रस्ताव दिया था। इरोम अपने तरीके से इबोबी के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं। भाजपा उम्मीद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली के लाभ पर टिकी है। (समाप्त)

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad