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इन वजहों से खास रहा 2019 का लोकसभा चुनाव, जिसे कभी नहीं भूलेंगे आप

17वीं लोकसभा चुनाव के लिए कुल सात चरणों में मतदान खत्म हो गए। 19 मई को हुए आखिरी और सातवें चरण की वोटिंग...
इन वजहों से खास रहा 2019 का लोकसभा चुनाव, जिसे कभी नहीं भूलेंगे आप

17वीं लोकसभा चुनाव के लिए कुल सात चरणों में मतदान खत्म हो गए। 19 मई को हुए आखिरी और सातवें चरण की वोटिंग होते ही तमाम टीवी चैनलों ने एग्जिट पोल के नतीजे जारी किए। एग्जिट पोल के नतीजों में एनडीए सरकार की वापसी के अनुमान लगाए गए हैं। फिलहाल इन सबके बीच आइए एक नजर डालते हैं लोकसभा चुनाव के उन बिंदुओं पर जिसने इस चुनाव को खास बना दिया। ये चुनाव जहां राजनीतिक रूप से ऐतिहासिक माना जा रहा है, वहीं कई विवादों के कारण इसने रिकॉर्ड भी बनाया है। सबसे बड़ा मामला चुनाव के दौरान काले धन के इस्तेमाल का है।

लोकसभा चुनाव में कुल 543 सीटों में से 542 लोकसभा सीटों पर चुनाव हुए हैं। तमिलनाडु के वेल्लोर सीट पर आयोग ने धन-बल के इस्तेमाल की आशंका पर चुनाव रद्द कर दिया था।

पार्टी नहीं, चेहरे पर केंद्रित रहा चुनाव

लोकसभा 2019 का चुनाव के लिए किए गए अभियान व्यक्तिवादी हो गए। पक्ष और विपक्ष दोनों ने व्यक्ति को मुद्दा बनाया जनता के दिलो दिमाग में भी व्यक्ति का ही चेहरा हावी रहा। चुनावों के बीच आरोप प्रत्यारोप,तीखे बयानों और कटाक्षों की बात करें तो यह भी चुनाव अभियान में शायद सभी सीमाएं तोड़ गया।

अप्रैल में जब चुनाव आयोग ने शंखनाद किया था उससे काफी पहले की राजनीतिक आहट तो यह थी कि यह गठबंधन बनाम गठबंधन का चुनाव होगा, लेकिन धीरे- धीरे और खासतौर से बालाकोट की घटना के बाद जिस तरह विपक्षी दलों में बिखराव शुरू हुआ, उससे स्पष्ट हो गया कि कमोबेश यह चुनाव व्यक्ति पर केंद्रित हो गया।

एक व्यक्ति के खिलाफ चुनाव 

केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खड़े हो गए। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में जहां गठबंधन का थोड़ा स्वरूप दिखा भी, वहां के नेताओं ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह एक व्यक्ति के खिलाफ लड़ रहे हैं। सपा और बसपा नेतृत्व की ओर से भी मोदी को ही निशाना बनाया गया। सबसे अलग-थलग होकर चुनाव लड़ी कांग्रेस और राहुल गांधी के निशाने पर भी मोदी रहे। अकेली रह गई आम आदमी पार्टी भी यह बोलने से नहीं बच पाई कि मोदी उसे स्वीकार नहीं।

दरअसल राजग का नेतृत्व कर रही भाजपा यही चाहती भी थी कि चुनावी अभियान का केंद्र बिंदु मोदी बनें। खुद भाजपा के अभियान में ‘मोदी है तो मुमकिन है’, ‘फिर एक बार मोदी सरकार’ जैसे नारे ही गढ़े गए थे। भाजपा में यहां तक ख्याल रखा गया था कि घोषणापत्र के ऊपर कमल निशान के साथ केवल मोदी की फोटो लगाई गई जबकि सामान्यतया ऐसे दस्तावेज पर पार्टी अध्यक्ष की फोटो भी होती है। यही कारण है कि बाद के चरणों में मोदी यह बोलते सुने गए कि जनता का हर वोट सीधे मोदी के खाते में आएगा।

 

मोदी-ममता की लड़ाई 

 

लोकसभा चुनाव की शुरुआत के साथ ही लग रहा था कि इस चुनाव की असली लड़ाई नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बीच ही है और अंत तक उन्हीं के बीच रहेगी। भाजपा बनाम कांग्रेस की इस लड़ाई में बालाकोट, राफेल डील दो अहम चुनावी मुद्दे थे। लेकिन चुनाव के अंत से ठीक पहले सारा फोकस ममता बनर्जी और नरेंद्र मोदी के बीच हो गया यानी ये लड़ाई न सिर्फ राहुल और पीएम मोदी की रही बल्कि मोदी और ममता की भी रही। इस लड़ाई की पृष्ठभूमि में है एक हिंसक आंदोलन जो भाजपा और टीएमसी के कार्यकर्ताओं के बीच अलग-अलग पोलिंग दिनों पर छिड़ी।

तृणमूल प्रमुख व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भाजपा की कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा है। अब तक जितने भी लोकसभा चुनाव हुए यह पहली बार है कि देश के किसी प्रधानमंत्री ने बंगाल में इतनी अधिक 17 चुनावी सभाएं की। ममता ने बंगाल की 42 में 42 सीटें जीतने का दावा कर रही है तो भाजपा 23 सीटों पर। हर चरण में बंगाल में कुछ चुनावी मुद्दे समान रहे और कुछ परिवर्तित होते रहे। जैसे-जैसे दक्षिण बंगाल की ओर चुनाव मुड़ा चुनाव मोदी बनाम ममता हो गया। तीखी नोंकझोक लोकतंत्र का तमाचा, कान पकड़ कर उठक बैठक, गुंडा, गब्बर, जेल से लेकर स्टीकर, स्पीड ब्रेकर दीदी व जागीर तक पहुंच गई। लोकसभा के चुनावी इतिहास में पहला मौका है जब आयोग को बंगाल में अनुच्छेद 324 के तहत प्रचार पर रोक लगानी पड़ी।

पश्चिम बंगाल में संघर्ष

चुनावी हिंसा के बीच बंगाल मतदान के मामले में अव्वल रहा। प्रथम छह चरणों में बंगाल में 80 फीसद से अधिक वोट पड़े। वहीं प्रथम से लेकर सातवें चरण तक हर मतदान के दिन बम, गोली, संघर्ष से लेकर चुनावी धांधली भी हुई। तीसरे चरण में मतदान के दिन बूथ के निकट एक हत्या कर दी गई। इन सात चरणों के मतदान में सौ से अधिक लोग जख्मी हुए हैं। बंगाल ने हिंसा के मामले में भी रिकॉर्ड बना दिया। हर चरण के बाद चुनाव आयोग केंद्रीय बलों की संख्या बढ़ाता गया। बावजूद इसके हिंसा नहीं रुकी।

पांचवें, छठे व सातवें चरण में तो सौ फीसद बूथों पर केंद्रीय बल की तैनाती सुनिश्चित की गई, लेकिन हिंसा नहीं रुकी। सातवें चरण में दूर दराज के ग्रामीण इलाके ही नहीं, कोलकाता में भी बमबाजी की गई। इसमें एक वोटर जख्मी हो गया। विरोधी दलों खासकर भाजपा प्रत्याशियों को हर चरण में निशाना बनाया गया। जहां भी भाजपा प्रत्याशी पहुंचे, उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा। अंतिम चरण में तो जुबानी जंग के साथ-साथ हिंसा की ऐसी घटनाएं हो गईं कि चुनाव आयोग को प्रचार पर निर्धारित समय से 19 घंटे पहले रोक लगानी पड़ी। इसी चरण में कोलकाता में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो के दौरान जमकर बवाल हुआ और महान विद्वान व समाज सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर की प्रतिमा तोड़ दी गई।

विवादों में और निशाने पर रहा चुनाव आयोग

चुनाव आयोग पर सवालिया निशान लगने के मामले में भी यह लोकसभा चुनाव ऐतिहासिक कहा जाएगा। पूरे चुनाव के दौरान चुनाव आयोग पर पक्षपात करने के आरोप लगे। पीएम मोदी और अमित शाह के खिलाफ शिकायतों में उन्हें क्लीन चिट दिए जाने पर विपक्ष ने आयोग पर सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में काम करने का आरोप लगाया और आयोग को कठपुतली बताया। वहीं पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा पर रोक लगाने में अक्षमता के लिए खुद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने आयोग को आड़े हाथों लिया। आचार संहिता उल्लंघन के फैसलों को लेकर खुद आयोग के अंदर की लड़ाई सार्वजनिक मंच पर आ गई और अपने अधिकारों को लेकर आयोग फिर से बेचारा ही साबित हुआ।  

दुनिया का सबसे खर्चीला चुनाव रहा 2019 का मतदान

नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (सीएमएस) के अनुसार सात चरणों में कराए गए इस चुनाव का कुल खर्च 50 हजार करोड़ रुपये (सात अरब डॉलर) है। ओपेन सीक्रेट. ओआरजी के अनुसार 2016 में हुए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का खर्च इससे कम करीब 6.5 अरब डॉलर था।

सीएमएस के अनुमान के अनुसार 2014 के लोकसभा चुनाव का खर्च करीब 5 अरब डॉलर था। पांच साल बाद 2019 में हो रहे 17वें लोकसभा चुनाव में इस खर्च में 40 फीसद इजाफा हो चुका है। सर्वाधिक खर्च सोशल मीडिया, यात्राएं और विज्ञापन के मद में किया गया है। 2014 में सोशल मीडिया पर महज 250 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे, इस बार यह खर्च बढ़कर पांच हजार करोड़ रुपये जा पहुंचा है।

17वें लोकसभा चुनाव में 26 अरब रुपये सिर्फ विज्ञापन के मद में खर्चे जा सकते हैं। चुनाव आयोग के अनुमान के मुताबिक 2014 में दोनों मुख्य पार्टियों ने विज्ञापन पर करीब 12 अरब रुपये खर्च किए थे।

शिकायतों के मामले में भी ऐतिहासिक चुनाव

इस लोकसभा चुनाव के दौरान पूरे देश से चुनाव आयोग को आचार संहिता की 500 शिकायतें मिलीं। ये शिकायतें नेताओं और लोकसभा उम्मीदवारों द्वारा हेट स्पीच देने और अन्य विवादित बयान देने के खिलाफ की गईं। आयोग को इन पर कार्रवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट तक ने फटकार लगाई। खास बात ये है कि इस चुनाव में केवल पीएम मोदी के खिलाफ आधा दर्जन से ज्यादा शिकायतें दर्ज हुईं। हालांकि सभी में आयोग ने उन्हें क्लीन चिट दे दी।

वीआइपी सीटों की वजह से अधिक गहमागहमी

पांचवें चरण में कई वीआइपी सीटों की वजह से अधिक गहमागहमी देखने को मिली। इसमें गृहमंत्री राजनाथ सिंह, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को जिताने के लिए बड़े नेताओं का जमावड़ा हुआ। छठे चरण में केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी और आजमगढ़ में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के क्षेत्र में जातीय समीकरण और उभरकर सामने आए। मेनका अपने बयान को लेकर विवादों में भी रहीं। सातवें चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क्षेत्र वाराणसी में प्रियंका वाड्रा ने भी पहुंचकर हलचल बढ़ाई। इस चरण में गोरखपुर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी सीट वापस भाजपा की झोली में डालने के लिए पूरी तकत झोंकी।

ऐसे रहे थे 2014 के नतीजे

2014 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा केवल 31 फीसदी वोट लाकर 282 सीटें ले आई थीं। इतने कम वोट पर इतनी ज्यादा सीटें लाकर पहली बार कोई नेता देश का प्रधानमंत्री बना। कांग्रेस 1996 से 2004 के बीच 145 के आसपास सीटें जीतती रहीं। 1999 में अपवाद रहा, जब पार्टी ने 114 सीटें जीतीं। 2009 में कांग्रेस की 206 सीटें आईं। 2004 में कांग्रेस 145 सीटें लेकर आई थी और पूरे पांच साल सत्ता में रही। इसके अगले चुनाव में भी उसकी सरकार बनी। 2014 में भाजपा 426 सीटों पर लड़ी थी। 31 फीसदी वोट लेकर 282 सीटें जीतीं। एनडीए को 38.5 फीसदी वोट मिले थे और 336 सीटें आई थीं। इंदिरा-नेहरू ने जब बड़ी जीत हासिल की थी, तब भी उनकी सीटें 350 के करीब रहीं थीं और 42 फीसदी वोट शेयर के साथ।

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