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बिहार विधानसभा चुनाव: एनडीए और राजद की चुनावी जंग में डीजीपी सिंघल की 'एंट्री'

भले ही बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा उनके गृह जिले बक्सर से...
बिहार विधानसभा चुनाव: एनडीए और राजद की चुनावी जंग में डीजीपी सिंघल की 'एंट्री'

भले ही बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा उनके गृह जिले बक्सर से चुनाव लड़ने के लिए टिकट से वंचित किए जाने के बाद जमीन से पीछे हट सकते हैं, लेकिन उनके उत्तराधिकारी मौजूदा डीजीपी एस के सिंघल अनजाने में खुद को राज्य में चल रहे विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान एनडीए और राजद के बीच चल रही कड़वाहट के बीच नजर आते हैं।

एस के सिंघल के साथ 24 साल पुरानी घटना, कि 1988 बैच के आईपीएस अधिकारी, जो गुप्तेश्वर पांडे के पिछले महीने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) लिए जाने के बाद राज्य के पुलिस प्रमुख बने। वीआरएस लेने के बाद गुप्तेश्वर पांडे जनता दल-यूनाइटेड में शामिल हो गए। एस के सिंघल अब राष्ट्रीय जनता दल (राजद) पर निशाना साधने के लिए जेडीयू और बीजेपी के काम आने लगे हैं।  

साल 1996 में एसपी सिंघल सिवान के तत्कालीन एसपी थे, जो मोहम्मद शहाबुद्दीन के गुर्गों द्वारा हुए जानलेवा हमले में खुद को बचाकर भागे थे, जबकि वो संसदीय चुनावों के दौरान उनके खिलाफ शिकायत की जांच कर रहे थे। जीरादेई निर्वाचन क्षेत्र से उस समय जनता दल के विधायक रहे शहाबुद्दीन सीवान सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे। सिंघल ने राजनेता के खिलाफ दरौली पुलिस स्टेशन में एक प्राथमिकी दर्ज की थी,  जिसने 2004 तक अपने गढ़ सिवान से लगातार चार संसदीय चुनाव जीते थे, जब तक कि उन्हें कई मामलों में दोषी ठहराए जाने के कारण चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित नहीं किया गया। इसमें सिंघल पर हमला भी शामिल था।

उसके बाद साल 2007 में नीतीश सरकार द्वारा हाई-प्रोफाइल बाहुबलियों से लेकर राजनेताओं के खिलाफ लंबे समय से लंबित मामलों में तेजी लाने के लिए गठित किए गए विशेष अदालत ने शहाबुद्दीन को सिंघल मामले में 10 साल के कारावास की सजा सुनाई।

24 साल बाद सिंघल और शहाबुद्दीन से जुड़े कुख्यात मामले चुनाव प्रचार के दौरान सुर्खियों में आ गया है। शहाबुद्दीन अभी भी जेल में है। विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में चुनावी रैलियों को संबोधित करते हुए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा सहित अन्य पार्टी नेताओं ने मतदाताओं को याद दिलाया कि बिहार के डीजीपी पर शहाबुद्दीन द्वारा हमला किया गया था, जब वो एसपी थे। 

नड्डा ने नवादा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा,  “जिस वक्त गोपालगंज के दलित अधिकारी ( डीएम जी किरनसैय्या) को मौत के घाट उतार दिया गया था और तत्कालीन सीवान के एसपी, जो अब राज्य के पुलिस प्रमुख हैं, पर शहाबुद्दीन ने हमला किया था, लेकिन राजद सरकार ने कुछ नहीं किया।“ उन्होंने कहा, "एनडीए के सत्ता में आने के बाद ही कानून और सुशासन का राज कायम हुआ। उस वक्त अपराधी बिना किसी डर के खुलेआम घूमा करते थे, क्योंकि अधिकारी असहाय थे।"

सिर्फ नड्डा ही नहीं 1990 और 2005 के बीच लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के 15 साल के लंबे शासनकाल के दौरान लचर कानूनी व्यवस्था के मुद्दे को अकेले उठाने वाले हैं। 

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी से लेकर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस तक, जेडी(यू) और भाजपा के लगभग सभी प्रमुख नेता चुनाव प्रचार के दौरान “जंगल राज” का मुद्दा उठा रहे हैं। अपनी अधिकत्तर रैलियों में सीएम नीतीश पूछते नजर आते हैं, "बिहार में पाटी-पाटनी (लालू-राबड़ी) राज के दौरान क्या स्थिति थी?" उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं को मतदाताओं की नई पीढ़ी से अवगत कराने के भी निर्देश दिया है, जिन्हें 'जंगल राज' के बारे में जानकारी नहीं है।

एनडीए नेताओं द्वारा जंगल राज के दिनों को लगातार उठा रहे हैं, जिसने राजद को परेशान किया है। हालांकि, महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी प्रसाद यादव का कहना है कि वर्तमान और भविष्य के बारे में बात करने के बजाय, नीतीश कुमार अभी भी बेरोजगारी और पलायन जैसे वास्तविक मुद्दों से लोगों का ध्यान हटाने के लिए पुरानी कब्र खोद रहे हैं।

तेजस्वी ने संयोगवश, पहले ही अपने माता-पिता के 15 साल के शासनकाल के दौरान किए गए किसी भी कमियों के लिए लोगों से माफी मांगी है, लेकिन एनडीए के नेता स्पष्ट रूप से किसी भी तरह से इन मुद्दों को जाने देने के मूड में नहीं हैं।

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