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गहलोत, कमलनाथ और भूपेश क्यों पड़े सब पर भारी? इन वजहों ने दिलाया सीएम का ताज

राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा का सफाया कर कांग्रेस सत्ता में आ गई है। तीनों राज्यों में...
गहलोत, कमलनाथ और भूपेश क्यों पड़े सब पर भारी? इन वजहों ने दिलाया सीएम का ताज

राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा का सफाया कर कांग्रेस सत्ता में आ गई है। तीनों राज्यों में बहुमत मिलने के बाद मुख्यमंत्री चुनने को लेकर माथापच्ची का लंबा दौर चला। राजस्थान में जहां अशोक गहलोत और सचिन पायलट बड़े दावेदार थे तो वहीं मध्य प्रदेश में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य  सिंधिया अपनी दावेदारी पेश कर रहे थे। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव, चरणदास महंत और ताम्रध्वज साहू ये चार नेता सीएम पद की दौड़ में बने हुए थे। लेकिन आखिर में गहलोत, कमलनाथ और भूपेश बघेल ने बाजी मार ली। इन तीनों नेताओं को क्रमश: राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ का सीएम चुना गया। आखिर क्या वजह थी जो इन्हें बाकी नेताओं से अलग बनाती है जिसके कारण ये सभी मुख्यमंत्री चुने गए।

अशोक गहलोत

तड़क-भड़क से दूर सादा जीवन शैली मगर राजनीतिक समर्थकों की फौज से घिरे रहने वाले अशोक गहलोत के बारे में कहा जाता है कि वह 24 घंटे अपने कार्यकर्ताओं के लिए उपलब्ध रहते हैं। अशोक गहलोत कांग्रेस के ऐसे नेता हैं, जिन्होंने तीन-तीन प्रधानमंत्रियों के मंत्रिमंडल में काम किया। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और नरसिम्हा राव के मंत्रिमंडल में शामिल रहे। आइए जानते हैं आखिर क्यों गहलोत ने मारी बाजी...

 

गांधी परिवार का खास, तीन प्रधानमंत्रियों के साथ काम का अनुभव

इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और नरसिम्हा राव सरकार में मंत्री रह चुके गहलोत नेहरू-गांधी भरोसेमंद हैं। माना जाता है कि वह कई दफा संगठन की मजबूती के लिए राहुल गांधी को सलाह भी देते हैं। यही कारण है कि इसी साल अप्रैल में उन्हें कांग्रेस का महासचिव बनाकर राहुल गांधी ने अपनी टीम में शामिल किया।

रह चुके हैं राजस्थान के दो बार सीएम

अशोक गहलोत दो बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। पहली बार एक दिसंबर 1998 से आठ दिसंबर 2003 तक सीएम रहे। फिर 2008 से 2013 तक दूसरी बार मुख्यमंत्री रहे। माना जा रहा है इन अनुभवों के चलते कांग्रेस ने तीसरी बार फिर उन्हें कुर्सी पर बैठाने का निर्णय किया।

सोशल इंजीनियरिंग में कुशल

गहलोत को सोशल इंजीनियरिंग में माहिर माना जाता है। जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अशोक गहलोत को महासचिव बनाया था। तब उन्होंने सुपर 7 फार्मूला दिया था। जिसके मुताबिक पार्टी संगठन में पांच वर्गों को कम से कम 50 प्रतिशत स्थान रिजर्व रखने का फार्मूला दिया। इसमें पिछड़ा वर्ग, महिलाएं अनुसूचित जाति, जनजाति, अल्पसंख्यक वर्ग की बात की गई।

साफ सुथरी छवि

गहलोत की साफ सुथरी छवि भी उन्हें सबसे अलग करती है। अशोक गहलोत देश के उन नेताओं में गिने जाते हैं, जिन्होंने चार दशक के लंबे सियासी जीवन में भी अपनी छवि को किसी गहरे दाग-धब्बे से बचाकर रखने में कामयाबी पाई है। किसी बड़े विवाद में गहलोत का नाम नहीं आया।

 

कमलनाथ

मध्य प्रदेश में 15 साल का वनवास खत्म कर कांग्रेस एक बार फिर सत्ता में लौटी है। कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ को राज्य की कमान दे दी गई है। 38 साल पहले वो सांसद चुने गए थे और अब वे सूबे के 31वें मुख्यमंत्री बन गए हैं।

 

इंदिरा गांधी का खास

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उन्हें अपना 'तीसरा बेटा' मानती थीं। दरअसल, एक बार इंदिरा गांधी छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से लड़ रहे कमलनाथ के लिए चुनाव प्रचार करने आई थीं। इंदिरा ने तब चुनावी रैली में लोगों से कहा था, 'कमलनाथ मेरे लिए तीसरे बेटे जैसे हैं। कृपया उन्हें वोट दीजिए।' इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे गांधी-नेहरू परिवार के कितने करीब हैं।

विकट समय में साथ

साल 1979 में कमलनाथ ने मोरारजी देसाई की सरकार से मुकाबला करने में कांग्रेस की मदद की थी। कमलनाथ संजय गांधी के हॉस्टलमेट थे और आपातकाल के बाद मोरारजी देसाई की सरकार में उनके लिए जेल भी गए थे। 39 साल बाद 72 साल के कमलनाथ ने अब इंदिरा गांधी के पोते कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए भी मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में दमदार भूमिका निभाई है।

लंबा राजनीतिक अनुभव

कमलनाथ 9 बार लोकसभा के लिए चुने जा चुके हैं। वह साल 1980 में 34 साल की उम्र में छिंदवाड़ा से पहली बार चुनाव जीते जो अब तक जारी है। 1991 से 1995 तक उन्होंने नरसिम्हा राव सरकार में पर्यावरण मंत्रालय संभाला। वहीं 1995 से 1996 तक वे कपड़ा  मंत्री रहे। लगातार जीत हासिल करने से कमलनाथ का कांग्रेस में कद बढ़ता गया और 2001 में उन्हें महासचिव बनाया गया। वह 2004 तक पार्टी के महासचिव रहे। 2004 में उन्होंने एक बार फिर जीत हासिल की। इस बार मनमोहन सिंह की सरकार में उन्हें वाणिज्य मंत्रालय मिला। 2009 में चुनाव हुआ और एक बार फिर कांग्रेस का यह दिग्गज नेता लोकसभा के लिए चुना गया। फिर मनमोहन सिंह की सरकार में इनको सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय मिला. साल 2012 में कमलनाथ संसदीय कार्यमंत्री बने।

दिग्विजय समेत कई बड़े नेता को साधने में सफल

कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने के पीछे दिग्विजय सिंह का भी समर्थन है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पहले भी यह बयान दे चुके हैं कि कमलनाथ अगर सीएम बनते हैं तो किसी को कोई परेशानी नहीं है। दिग्विजय सिंह हमेशा से ही कमलनाथ को सीएम बनाने के पक्ष में रहे हैं। इसलिए दिग्विजय सिंह ने चुनावों से पूर्व ही मध्य प्रदेश के कई दिग्गज नेता जैसे कि मीनाक्षी नटराजन, अजय सिंह, कांतिलाल भूरिया और अरुण यादव को अपने पक्ष में कर लिया। जिसके कारण ज्योतिरादित्य सिंधिया की मुख्यमंत्री बनने की दावेदारी भी कमजोर पड़ गई।

भूपेश बघेल

छत्तीसगढ़ में पीसीसी अध्यक्ष भूपेश बघेल 2013 में हार की हैट्रिक से हताश हो चुकी कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित हुए. छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2018 के परिणाम ने इनका कद राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ा दिया है। प्रदेश में कमजोर लग रही कांग्रेस के 90 में 68 सीटें जीतने के बाद सीएम पद के दावेदारों में भूपेश बघेल का नाम आगे था। आइए जानते हैं कैसे उन्हे मिला सीएम का ताज..

 

कांग्रेस में जान फूंकी

तेजतर्रार और आक्रामक छवि वाले नेता भूपेश बघेल को दिसंबर, 2013 में कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया। इस समय विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी हार के बाद कांग्रेसी कार्यकर्ता हताश और निराश थे। भूपेश बघेल ने झीरम घाटी में अपने बड़े नेताओं की मौत के बाद बघेल ने कांग्रेस को नेतृत्व संकट से निकाला। विधानसभा चुनाव से पहले बघेल ने प्रदेश के कई हिस्सों में पदयात्रा की, कार्यकर्ताओं को जोड़ा, कांर्यकर्ताओं में जान फूंकी और रमन सरकार के खिलाफ में हवा बनाकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरा।

जातिगत समीकरण भी गया पक्ष में

भूपेश बघेल के पक्ष में जातिगत समीकरण भी बैठा क्योंकि बघेल कुर्मी जाति से आते हैं, जिनकी हिस्सेदारी राज्य की ओबीसी आबादी में लगभग 36 फीसद है। इतना ही नहीं, इस बार के चुनाव में उनकी भागीदारी भी अच्छी रही है। यही वजह है कि अन्य दावेदारों में बघेल आगे निकल गए।

अजीत जोगी किया था पार्टी से बाहर

भूपेश बघेल ने झीरम घाटी में अपने बड़े नेताओं की मौत के बाद कांग्रेस को नेतृत्व संकट से निकाला। एक समय बीजेपी की बी टीम कही जाने वाले अजीत जोगी और उनके बेटे अजीत जोगी तक को उन्होंने पार्टी के बाहर का रास्ता दिखा कर अपने रुख से स्पष्ट कर दिया था कि वह कांग्रेस को मजबूत करने में किसी तरह का समझौता नहीं करेंगे।

टीएस के कारण सीएम बने बघेल?

राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा है कि छत्तीसगढ़ में सीएम पद के चार दावेदार होने के कारण लंबे समय तक सहमति नहीं बन पा रही थी। जिसके बाद टीएस सिंहदेव ने कहा कि उन्हें या बघेल को यदि सीएम बनाया जाता है तो उनको कोई आपत्ति नहीं होगी। सिंहदेव के इस बात ने सीएम चुनने के काम को आलाकमान के लिए और आसान बना दिया।

 

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