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वाराणसी में 'चौकीदार बनाम हवलदार' की लड़ाई, गठबंधन ने क्यों लगाया तेज बहादुर पर दांव

वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आज सपा-बसपा गठबंधन ने सबको चौंकाते हुए अपना उम्मीदवार...
वाराणसी में 'चौकीदार बनाम हवलदार' की लड़ाई, गठबंधन ने क्यों लगाया तेज बहादुर पर दांव

वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आज सपा-बसपा गठबंधन ने सबको चौंकाते हुए अपना उम्मीदवार बदल दिया। नामांकन दाखिल करने के आखिरी दिन शालिनी यादव की जगह बीएसएफ से बर्खास्त जवान तेज बहादुर यादव को उतारा गया। कांग्रेस की तरफ से अजय राय यहां उम्मीदवार हैं।

तेज बहादुर यादव पहली बार तब चर्चा में आए थे जब दो साल पहले उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था। इस वीडियो में तेज बहादुर फौजियों को मिलने वाले खाने की शिकायत कर रहे थे। वह बता रहे थे कि उन्हें खराब क्वालिटी का खाना दिया जाता है। तेज बहादुर ने पहले ही ऐलान किया था कि वह प्रधानमंत्री मोदी को आईना दिखाने के लिए स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ेंगे। लेकिन अचानक गठबंधन ने उन पर भरोसा दिखा दिया। इसके पीछे क्या वजह हो सकती है?

चौकीदार बनाम हवलदार

असल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आजकल अपने भाषणों में राष्ट्रवाद, देशभक्ति और सेना का खूब जिक्र करते हैं। वह सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर बालाकोट एयर स्ट्राइक को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। वह अक्सर कहते हैं कि उन्होंने सेना को मजबूत किया, खुली छूट दी जिसकी बदौलत सेना सर्जिकल स्ट्राइक और एयरस्ट्राइक करने में कामयाब रही। आम जनता भी सेना के नाम से ‘भाव-विभोर’ हो उठती है। इसी को ध्यान में रखते हुए गठबंधन ने यह कार्ड चला है। तेज बहादुर अक्सर कहते रहे हैं कि वह फौज पर राजनीति करने वालों को हराना चाहते हैं। यह वाराणसी में नरेंद्र मोदी के समर्थकों को संकेत देने की कोशिश है कि वह सेना और नेता में किसे चुनेंगे? गठबंधन उन्हें सेना के सिंबल के तौर पर प्रोजेक्ट करना चाह रहा है। प्रधानमंत्री मोदी खुद को चौकीदार बताते हैं। इस तरह यह ‘चौकीदार बनाम हवलदार’ की लड़ाई मानी जा सकती है।

प्रतीकों की राजनीति

तेज बहादुर ने पिछले दिनों कहा था कि सेना और अर्धसैनिक बलों में भ्रष्टाचार पर रोक, अर्धसैनिक बलों के जवानों को भी शहीद का दर्जा दिए जाने, पुरानी पेंशन बहाली, शिक्षा मित्रों के साथ न्याय उनके प्रमुख चुनावी मुद्दे हैं। जाहिर है, गठबंधन ने सेना के नाम पर फैलाए जा रहे राष्ट्रवाद को काउंटर करने के लिए यह कदम उठाया है। तेज बहादुर का हारना-जीतना बाद की बात है लेकिन यह प्रतीकों की राजनीति का एक हिस्सा ज्यादा लगता है।

तेज बहादुर ने मचाई थी हलचल

हरियाणा के रहने वाले तेज बहादुर के उस वीडियो के बाद सेना सहित राजनीतिक गलियारों में कुछ दिन तक हलचल मच गई थी। सेना ने इस मामले की जांच के आदेश दिए थे और बाद में तेज बहादुर को बीएसएफ से निकाल दिया गया था।

उम्मीदवारी घोषित होने से पहले तेज बहादुर ने कहा था, 'पिछले 70 साल में पहली बार एक सेना का जवान प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव में खड़ा हुआ है, यह एक चिंगारी कैसे सैलाब बन जाएगी, आप देखते रह जाएंगे।‘

बर्खास्त जवान ने कहा था, 'मैं हार-जीत के लिए नहीं, बल्कि पीएम मोदी को आईना दिखाने के लिए चुनाव मैदान में उतरूंगा। जनता को बताऊंगा कि सैनिकों का हितैषी होने का दावा करने वाले पीएम मोदी ने सैनिकों से किया गया एक भी वादा पूरा नहीं किया है। पूर्व सैनिक घर-घर जाकर बताएंगे कि मोदी जी ने सैनिकों का क्या हाल कर रखा है। सच्चाई पता चलने पर पब्लिक हमारे साथ खड़ी होगी।'

ओमप्रकाश राजभर के समर्थन का दावा

तेज बहादुर ने दावा किया कि बीजेपी की सहयोगी पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के ओमप्रकाश राजभर, जनशक्ति पार्टी की रेणु चौधरी और आम आदमी पार्टी ने उन्‍हें सर्मथन दिया है। उनका कहना है कि यादव सेना और राम सेना भी साथ है। सैनिक संगठन का भी सहयोग मिल रहा है। गठबंधन से उम्मीदवारी घोषित होने से पहले तेज बहादुर ने कहा था, 'मैं किसान का बेटा हूं। मेरे पास प्रचार में झोंकने के लिए उनकी तरह पैसा नहीं है। मैं डोर टू डोर अपना प्रचार करूंगा।'

यादव रेजिमेंट का किया था समर्थन

तेज बहादुर ने अखिलेश यादव के सेना में अलग 'यादव रेजिमेंट' बनाने का समर्थन किया। उन्‍होंने कहा, 'यदि मैं वाराणसी से जीता तो संसद में इसके लिए आवाज उठाऊंगा।'

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