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सीएए के विरोध में बंंगाल विधानसभा ने भी प्रस्ताव किया पारित, ऐसा करने वाला चौथा राज्य

देश के विभिन्न हिस्सों में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) और नेशनल...
सीएए के विरोध में बंंगाल विधानसभा ने भी प्रस्ताव किया पारित, ऐसा करने वाला चौथा राज्य

देश के विभिन्न हिस्सों में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) का हो रहे विरोध के बीच पश्चिम बंगाल विधानसभा ने सोमवार को सीएए के खिलाफ ममता सरकार द्वारा लाए गए प्रस्ताव को पारित कर दिया है। संसदीय कार्य मंत्री पार्थ चटर्जी द्वारा रखे गए सीएए के खिलाफ प्रस्ताव को कांग्रेस और वाम मोर्चा के सदस्यों ने समर्थन दिया, जबकि भाजपा ने इसका विरोध किया। बता दें कि सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने वाला बंगाल, केरल, पंजाब और राजस्थान के बाद चौथा राज्य बन गया है।

संविधान और मानवता के खिलाफ यह कानून

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रस्ताव पास होने के दौरान कहा कि यह कानून संविधान और मानवता के खिलाफ है। आगे उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि इस कानून को जल्द-से-जल्द निरस्त किया जाए। साथ ही एनपीआर को भी निरस्त किया जाना चाहिए। इससे पहले विधानसभा ने एनआरसी के खिलाफ सितंबर 2019 में एक विरोध प्रस्ताव पास किया था। भाजपा विधायक दल ने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए सदन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि सीएए शरणार्थियों को उनकी नागरिकता दिलाने में मदद करेगा।

केरल, पंजाब और राजस्थान में प्रस्ताव हो चुका हैं पारित

राजस्थान में अशोक गहलोत की अगुआई वाली कांग्रेस सरकार द्वारा 25 जनवरी को विधानसभा में सीएए के विरोध में प्रस्ताव पारित कराया गया था। इससे पहले पंजाब और केरल की सरकार द्वारा राज्य विधानसभा में सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पास किया जा चुका है। 17 जनवरी को पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने कहा था कि उनकी सरकार राज्य में ‘विभाजनकारी सीएए’ को कभी लागू करने की अनुमति नहीं देगी। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार इसके खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख करेगी। इससे पहले इसके खिलाफ विरोध प्रस्ताव पास करने वाला केरल पहला राज्य बना था।

सीएए का हो रहा है विरोध

नागरिकता संशोधन बिल को पिछले महीने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुआई वाली केंद्र सरकार ने 9 दिसंबर को लोकसभा से और 11 दिसंबर को राज्यसभा से पारित कराया था। इसके मुताबिक भारत के तीन पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आए गैर मुस्लिम अल्पसंख्यक शर्णार्थियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी। इसमें हिन्दू, सिख, बौद्ध, पारसी, जैन और ईसाई धर्म के लोगों को शामिल किया गया है। केंद्र सरकार इस कानून को लेकर अधिसूचना जारी कर चुकी है।

सीएए का विरोध कर रहे लोगों का तर्क है कि इससे भारत की धर्मनिरपेक्षता खत्म हो जाएगी और यह संविधान के खिलाफ है। हालांकि, पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने 140 से अधिक दायर की गई याचिका पर सुनवाई के बाद केंद्र सरकार से चार सप्ताह में जवाब मांगते हुए कानून पर फिलहाल रोक लगाने से इनकार कर दिया था।

 

 

 

 

 

 

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