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छत्तीसगढ़ में दंतेवाड़ा उपचुनाव के नतीजे से तय होगी राजनीति की दिशा

वैसे तो 23 सितंबर को होने वाले दंतेवाड़ा उपचुनाव के नतीजे से भाजपा और कांग्रेस दोनों को कोई नफा-नुकसान...
छत्तीसगढ़ में दंतेवाड़ा उपचुनाव के नतीजे से तय होगी राजनीति की दिशा

वैसे तो 23 सितंबर को होने वाले दंतेवाड़ा उपचुनाव के नतीजे से भाजपा और कांग्रेस दोनों को कोई नफा-नुकसान नहीं होना है लेकिन इस चुनाव परिणाम से राजनीति की दिशा तय होगी। यहां के नतीजे से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का राजनीतिक कद भी निर्धारित होगा और दिसंबर-जनवरी में होने वाले नगरीय निकाय चुनाव का रुझान भी साफ हो जाएगा।  भाजपा यह सीट बचाने में कामयाब हो जाती है तो कांग्रेस सरकार पर हमले तेज हो जाएंगे और नौ महीने में विफलता का लेबल भी चस्पा करने में कामयाब हो जाएगी। वहीं कांग्रेस को जीत मिलती है तो नौ महीने के सरकार की उपलब्धि होगी। साथ ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कद भी बढ़ेगा और नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में होने का संकेत भी मिल जाएगा।

विधानसभा चुनाव के छह माह बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने ताकत लगाई लेकिन वह दो सीटों पर अटक गई। देश भर में कांग्रेस की बुरी पराजय और राष्ट्रीय मुद्दों की वजह से सरकार पर आंच नहीं आई लेकिन  भाजपा को जीवन दान मिल गया। डाॅ. रमन सिंह सरकार में ना रहकर भी लोकसभा की नौ सीट जीता ले गए। हाथ किसी का भी हो लेकिन श्रेय उन्हें ही मिला। कहा जा रहा है कि मंतूराम पवार के आरोप दंतेवाड़ा उपचुनाव को ध्यान में रख कर लगाए गए हैं पर ऐसा नहीं लगता कि आरोपों की छाया इस चुनाव में दिखेगी। मंतूराम की विश्वसनीयता ही संदेह के दायरे में दिखाई पड़ रहा है। दूसरी वजह यह है कि यहां मुद्दे को लेकर चुनाव लड़ने से कांग्रेस बच रही है जबकि बीेजेपी विकास की बात कर रही है। कांग्रेस ने चुनाव को आरोप प्रत्यारोप के रंग में रंग दिया है।

भावनात्मक मुद्दे हावी

दंतेवाड़ा में भावनात्मक हवा का थोड़ा बहुत असर है लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी देवती कर्मा के परिवार में ही विवाद से भाजपा को भावनात्मक मुद्दे पर बढ़त दिखाई दे रही है। पूर्व विधायक देवती कर्मा के पति महेंद्र कर्मा और भाजपा प्रत्याशी ओजस्वी मांडवी के पति भीमा मांडवी दोनों ही नक्सली हिंसा के शिकार हुए। यहां जोगी की पार्टी भले जीत दर्ज न कर सके लेकिन कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाने में लगी हुई है। उसके प्रत्याशी सुजीत कर्मा के आडियो जिस तरह से आ रहे हैं, उससे यही अंदाजा लगाया जा सकता है। 25 साल के सुजीत राजनीति की पहली पारी शुरू कर रहे हैं। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद मिली सहायक प्राध्यापक की नौकरी छोड़कर चुनावी मैदान में उतरे हैं। अजीत जोगी विवादों में फंसने के बाद भी दंतेवाड़ा में डेरा डाले हुए हैं।

भाजपा के पास थी यह सीट

दंतेवाड़ा की यह सीट भाजपा के पास थी। यदि कांग्रेस इसे अपने पक्ष में कर लेती है तो आने वाले निकाय और पंचायत चुनाव में कांग्रेस की उम्मीद पर पंख लग जाएंगे। कांग्रेस आदिवासियों को जमीन वापस लौटने और कर्जा माफी जैसी बात कर रही है। भूपेश सरकार ने  दंतेवाड़ा से पोषण आहार और मोबाइल मेडिकल सुविधा भी शुरू की है लेकिन मुद्दों की जगह चुनाव आरोप-प्रत्यारोप के बीच सिमट कर रह गया है। आम लोगों की धारणा बनती जा रही है कि सरकार विकास से ज्यादा जांचों में उलझ कर रह गई है, जिसके कारण जनता में अपनी मजबूत छाप भी नहीं छोड़ पा रही है। यह भी कहा जा रहा है कि सरकार का सारा पाॅवर एक जगह सिमट गया। अन्य मंत्री सिर्फ नाम के मंत्री है। नौकरशाह उनकी सुनते नहीं। इस वजह से प्रदेश में काम काज ठप हैं। डाॅ रमन सिंह ने अपने कार्यकाल में दंतेवाड़ा के लिए जो काम किए हैं, उसका लाभ बीजेपी को मिलता है या फिर कांग्रेस को नरवा, घुरवा, बाड़ी और गोठान के नारे से वोट मिलता है।  

आदिवासियों के हक की बात नहीं

दंतेवाड़ा में आम आदिवासी के हक की बात इस उप चुनाव में कोई भी बड़ी पार्टी नहीं कर रही है। यह चुनाव सिर्फ आरोप और प्रत्यारोप तक ही सिमट गया है। दरअसल कांग्रेस को पता है कि उसने अपने आठ माह की सरकार में दंतेवाड़ा के लिए ऐसा कोई काम नहीं किया है, जिसे वो हवा दे सके। न तो पलायन रोकने का उसके पास कोई योजना है। न ही बेरोजगारी दूर करने की कोई ठोस योजना है। सरकार बेरोजगारी भत्ता यहां के बेरोजगारों को कब देगी तय नहीं है। बेवजह जेलों में बंद आदिवासियों को कब छोड़ा जायेगा, उसकी तारीख भी तय नहीं। सिर्फ घोषणाओं की बात है और इस बात को नक्सली भी तूल दे रहे हैं कि कांग्रेस सरकार ने वायदा तो किया था लेकिन पहल अभी तक नहीं की। दंतेवाड़ा के ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को लाल पानी पीना अब भी मजबूरी है। उन्हें मीठा पानी कब और कैसे मिलेगा, इसकी बात कांग्रेस के किसी भी मंत्री ने नहीं की। नक्सली आम आदमी कोे मौत के घाट उतारने से बाज नहीं आये। दूसरी तरफ पुलिस पर आरोप है कि उसने आदिवासियों को इनामी नक्सली बताकर भून दिया। जबकि वहां के लोगों का दावा है कि मारे गये लोग नक्सली नहीं हैं। ऐसी वारदातों से सवाल यह उठता है कि दंतेवाड़ा उपचुनाव से इस विधान सभा के लोगों को क्या मिलेगा?

खूनी खेल कितने चुनाव तक

सरकार और पुलिस दोनों यह बताने केा तैयार नहीं है कि कितने इनामी नक्सली हैं। भीमा मंडावी की हत्या नक्सलियों ने की। चुनाव तक और चुनाव के बाद भी न जाने कितने लोग नक्सली बारूद और गोली के चपेट में आयेंगे सरकार को भी पता नहीं। लग रहा है कि सरकार किसी भी पार्टी की हो, यहां के आदिवासी को हर हाल में मरना ही है। चाहे नक्सली मार दें या फिर पुलिस नक्सली बताकर मार दे। यह खेल कब  तक चलेगा, यह कोई कह नहीं सकता।

दंतेवाड़ा  उपचुनाव  23 सितंबर को

23 सितंबर को दंतेवाड़ा के सभी मतदान केंद्रों में मतदान होगा। 27 सितंबर को वोटों की गिनती होगी।  दंतेवाड़ा उपचुनाव में कुल 1 लाख 88 हजार 263 मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे। इसमें पुरुष 89,747 और महिला 98,876 हैं। यहां कुल 273 मतदान केन्द्र हैं, जिनमें 5 पिंकबूथ स्थापित किए जाएंगे। कुल 256 सेवा मतदाताओं को मतपत्र जारी किए जाएंगे। 2018 में हुए चुनावों में भाजपा के भीमा ने कांग्रेस की तत्कालीन विधायक देवती कर्मा को 2172 वोटों से हराया था। यह बस्तर में भाजपा की एक मात्र जीती हुई सीट थी।

 

 

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