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सामान्य वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण देने की राह में कई रोड़े, जानिए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील की राय

नया साल शुरू होते ही लोकसभा चुनाव की आहट साफ सुनाई देने लगी है। पार्टियां जनता को अपनी तरफ खींचने की...
सामान्य वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण देने की राह में कई रोड़े, जानिए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील की राय

नया साल शुरू होते ही लोकसभा चुनाव की आहट साफ सुनाई देने लगी है। पार्टियां जनता को अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रही हैं। इसी सिलसिले में मोदी सरकार ने सामान्य वर्ग को लेकर बड़ा फैसला लिया है। कैबिनेट ने सामान्य जातियों को आर्थिक आधार पर सरकारी नौकरियों और शिक्षा में दस फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया है। माना जा रहा है कि एससी-एसटी एक्ट और दलित आंदोलन के बाद सामान्य भाजपा से नाराज था, जिसे साधने के लिए यह कदम उठाया गया है। लेकिन संविधान के वर्तमान नियमों के अनुसार आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की राह मोदी सरकार के लिए आसान नहीं है। संवैधानिक संशोधन के लिए लोकसभा और राज्यसभा में सरकार को पूर्ण बहुमत (50 प्रतिशत से अधिक) के अलावा विशेष बहुमत (उपस्थित और वोट करने वालों का 2/3) की जरूरत होगी। 

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील केटीएस तुलसी ने ‘आउटलुक’ को बताया, ‘चुनावों तक संशोधन द्वारा आरक्षण लागू करना सरकार के लिए मुश्किल है। राज्यसभा में भी भाजपा के पास बहुमत नहीं है। अपर कास्ट नाराज है इसलिए उसे संतुष्ट करने के लिए यह दांव चला गया है। भाजपा अगर इसमें असफल होती है तो विपक्ष पर आरोप लगाएगी।‘

साथ ही तुलसी हर वर्ग के लिए आर्थिक आधार पर आरक्षण की वकालत करते हैं। उनका कहना है कि इस फैसले के बाद एससी-एसटी भी नाराज होंगे और उन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। वह कहते हैं कि इससे आर्टिकल 15 और 16 पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि संविधान में आर्थिक आधार पर समानता की बात नहीं है।

मोदी सरकार के सामने क्या है चुनौती?

मोदी सरकार के सामने फिलहाल कई चुनौतियां हैं, जिन्हें संविधान में संशोधन कर दूर करना होगा। पहली यह कि सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तय कर रखी है और संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का प्रावधान नहीं है। दूसरा यह है कि संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में केवल सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े होने की बात है।

हालांकि संविधान में कोई परिवर्तन करने के लिए भी सरकार के लिए दोनों सदनों से बहुमत प्राप्त करना भी मुश्किल का काम होगा। माना जा रहा है कि सरकार संसद में आर्थिक आधार पर आरक्षण की नई श्रेणी के प्रावधान वाला विधेयक ला सकती है।

अभी किसको कितना आरक्षण?

साल 1963 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आमतौर पर 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। पिछड़े वर्गों को तीन कैटेगरी अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में बांटा गया है।

अनुसूचित जाति (SC)- 15 %

अनुसूचित जनजाति (ST)- 7.5 %

अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)- 27 %

कुल आरक्षण- 49.5 %

क्या कहता है संविधान?

संविधान के अनुसार, आरक्षण का पैमाना सामाजिक असमानता है और किसी की आय और संपत्ति के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जाता है। संविधान के अनुच्छेद 16(4) के अनुसार, आरक्षण किसी समूह को दिया जाता है और किसी व्यक्ति को नहीं। इस आधार पर पहले भी सुप्रीम कोर्ट कई बार आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के फैसलों पर रोक लगा चुका है। अपने फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाना समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन है।

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