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कैलाश विजयवर्गीय और मुकुल रॉय: ‘दीदी’ के गढ़ में सेंध लगाने वाले शाह के दो सेनापति

लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बड़ी जीत तो हासिल की ही लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा है...
कैलाश विजयवर्गीय और मुकुल रॉय: ‘दीदी’ के गढ़ में सेंध लगाने वाले शाह के दो सेनापति

लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बड़ी जीत तो हासिल की ही लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा है पश्चिम बंगाल की। बंगाल में भाजपा दो से 18 सीटों पर पहुंच गई। इसके बाद भी एक दिलचस्प घटनाक्रम आज हुआ। पश्चिम बंगाल से तीन विधायक और 50 से ज्यादा पार्षद भाजपा में शामिल हो गए। इनमें दो विधायक टीएमसी और एक विधायक सीपीएम-एमएल के हैं। टीएमसी के दो विधायक शुभ्रांशु रॉय और तुषारशक्ति भट्टाचार्जी और सीपीएम-एमएल विधायक देवेंद्र रॉय हैं। शुभ्रांशु भाजपा नेता मुकुल रॉय के बेटे हैं। शुभ्रांशु को कुछ दिनों पहले टीएमसी से निलंबित किया गया था। मुकुल रॉय भी टीएमसी छोड़कर भाजपा में आए थे।

इस दौरान भाजपा के दो बड़े चेहरे मौजूद थे, जिन्होंने ममता बनर्जी के गढ़ में सेंध लगाने में बड़ी भूमिका निभाई। भाजपा महासचिव और बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय और मुकुल रॉय की मौजूदगी में इन लोगों ने भाजपा का दामन थामा। आगे भी विधानसभा चुनाव तक इन दोनों की क्या भूमिका रहने वाली है, वो विजयवर्गीय के इस बयान से समझा जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘आज तीन विधायक और 50-60 पार्षद भाजपा में शामिल हुए हैं। आगे भी ये सिलसिला जारी रहेगा।‘

याद कीजिए जब प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि दीदी (ममता) के 40 विधायक मेरे संपर्क में हैं। तभी से ममता भाजपा पर हॉर्स ट्रेडिंग के आरोप लगा रही हैं और कह रही हैं कि भाजपा यहां जोड़-तोड़ की राजनीति कर रही है।

इन सबके बीच कैलाश विजयवर्गीय और मुकुल रॉय के बारे में आपको बताते हैं, जिन्होंने अमित शाह की रणनीति में अहम भूमिक निभाई-

कैलाश विजयवर्गीय- कार्यकर्ताओं में जगाया भरोसा

पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस की आक्रामकता के जवाब में अमित शाह ने कैलाश विजयवर्गीय को मोर्चे पर लगाया। विजयवर्गीय की छवि एक आक्रामक नेता की मानी जाती है। भाजपा का यह दांव सफल रहा। 2015 में पश्चिम बंगाल प्रभारी की कमान संभालने के बाद कैलाश विजयवर्गीय ने सबसे पहले राज्य में हिंसा में मारे गए और घायल हुए पार्टी कार्यकर्ताओं के घर जाना शुरू किया। इससे कार्यकर्ताओं के परिवारों को भी लगा कि पार्टी उनके साथ है। जिससे स्थानीय संगठन में नई ऊर्जा और जोशोखरोश का संचार हुआ।

विजयवर्गीय ने कार्यकर्ताओं को सत्ताधारी टीएमसी के खौफ से बाहर निकाला। दौरे पर दौरा करते हुए विजयवर्गीय ने व्यापक जनसंपर्क अभियान चलाया। एक साल बाद ही मेहनत रंग लाई, जब 2016 के विधानसभा चुनावों में कैलाश विजयवर्गीय की सफलता तीन विधानसभा सीटों के अंकों में तब्दील हो चुकी थी। इससे उनका उत्साह बढ़ा और वे पार्टी का विस्तार करने लगे। टीएमसी के असंतुष्ट नेताओं और कार्यकर्ताओं को बीजेपी में लाने की कोशिश में जुट गए। यहीं एंट्री होती है टीएमसी खेमे से मुकुल रॉय की, जिनका आना बीजेपी के लिए संजीवनी से कम नहीं था।

मुकुल रॉय- टीएमसी का राजदार जो बना भाजपा की संजीवनी

मुकुल रॉय को ममता बनर्जी का राइट हैंड कहा जाता था। जो तृणमूल कांग्रेस आज पश्चिम बंगाल में सत्ता में है, उसके संस्थापक सदस्य रह चुके हैं। जिस वक्त मुकुल रॉय ने टीएमसी छोड़ी, उस वक्त तक उनकी पार्टी में नंबर दो की हैसियत रही। कांग्रेस से अलग होने के बाद जनवरी 1998 में ममता बनर्जी के साथ पार्टी की स्थापना के वक्त मुकुल रॉय भी शामिल थे।

जब 2011 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी की जीत पर ममता बनर्जी मनमोहन सरकार में रेल मंत्री का पद छोड़कर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनने जा रहीं थीं, तब उन्होंने मुकुल रॉय को ही रेल मंत्री बनवाया था मगर कुछ मतभेदों के कारण में दोनों नेताओं के रिश्तों में तल्खी आ गई। आखिरकार 25 सितंबर 2017 को मुकुल रॉय ने पार्टी छोड़ दी तो फिर उनका बीजेपी ने पार्टी में स्वागत किया। मुकुल रॉय टीएमसी की भीतरी बातें और गुर अपने साथ लाए।

अमित शाह और कैलाश विजयवर्गीय ने मुकुल रॉय को मास्टर प्लान तैयार करने का जिम्मा दिया। लोकसभा चुनाव नजदीक आया तो उन्हें इलेक्शन कमेटी का इंचार्ज बना दिया। पश्चिम बंगाल की हर सीट के समीकरणों से वाकिफ मुकुल रॉय ने मास्टर प्लान तैयार किया। टीएमसी के हजार से भी अधिक तेजतर्रार कार्यकर्ताओं की फौज को उन्होंने भगवा खेमे से जोड़ दिया।

पश्चिमि बंगाल में भाजपा की बड़ी जीत

इस बार के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने बड़ी जीत हासिल की है और 2014 में मात्र 2 सीटों पर सिमटी बीजेपी इस बार 18 सीटें जीत कर आई है। पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ घमासान के बावजूद 22 सीटें जीतीं। वहीं, कांग्रेस को दो सीटें मिली। इसे भाजपा का फायदा और टीएमसी का नुकसान माना गया। इसका असर आने वाले विधानसभा चुनाव में भी दिखायी देगा।

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