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आदित्य ठाकरे ने वर्ली से पर्चा दाखिल किया, बड़ा दांव शिवसेना के लिए कितना अहम

आदित्य ठाकरे को चुनावी मैदान में उतारकर ठाकरे परिवार ने आखिर चुनावी राजनीति में कदम रख ही दिया।...
आदित्य ठाकरे ने वर्ली से पर्चा दाखिल किया, बड़ा दांव शिवसेना के लिए कितना अहम

आदित्य ठाकरे को चुनावी मैदान में उतारकर ठाकरे परिवार ने आखिर चुनावी राजनीति में कदम रख ही दिया। आदित्य ने मुंबई की वर्ली विधानसभा सीट से अपना पर्चा दाखिल किया है। आदित्य ने गुरुवार को विशाल जुलूस निकालकर अपना शक्ति प्रदर्शन किया। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के बड़े बेटे 29 वर्षीय आदित्य को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद के दावेदार के तौर पर भी देखा जा रहा है, लेकिन यह देखना दिलचस्प है कि शिवसेना का यह दांव उसे कितना सियासी फायदा दिलाता है।

सीएम पद के दावे पर आदित्य की चुप्पी

गुरुवार को वर्ली क्षेत्र से पर्चा भरने के लिए जाते समय संवाददाताओं ने जब सवाल पूछा तो आदित्य ठाकरे ने मुस्कराकर सवाल टाल दिया और कहा कि वह हमेशा जनता की सेवा करते रहे हैं। सेवा करने के लिए ही वह चुनाव में खड़े हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि लोगों का समर्थन देखकर उत्साहित हैं। वर्ली से खड़े होने पर उद्धव ठाकरे के एक नजदीकी सहयोगी ने कहा कि यह सीट शिवसेना का मजबूत क्षेत्र है। ऐसे में आदित्य को यहां से जीतने में कोई कठिनाई नहीं होगी। वैसे आज जुलूस की भीड़ देखकर कार्यकर्ताओं का भी कहना था कि आदित्य न सिर्फ इस सीट से जीत जाएंगे, बल्कि उनकी मौजूदगी से दूसरी सीटों पर भी फायदा होगा।

शिवसेना के प्रति भाजपा का रुख

आदित्य के जुलूस में भाजपा और रिपब्लिकन पार्टी इंडिया (ए) के सदस्यों ने भी हिस्सा लेकर अपना समर्थन दिखाया। अभी शिवसेना के नेता सुशील शिंदे वर्ली सीट से विधायक हैं। शिंदे ने कहा कि आदित्य के चुनाव लड़ने से पार्टी में नई ऊर्जा का संचार होगा और चुनाव में फायदा मिलेगा। उनके लिए सीट छोड़ना उनके लिए खुशी की बात है। इस बीच, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और भाजपा नेता देवेंद्र फड़नवीस ने फोन करके आदित्य को चुनाव में खड़े होने के लिए शुभकामनाएं दीं।

शिवसेना की सोची-समझी रणनीति

शिवसेना ने आदित्य को उतारकर सधी चाल चली है। उनकी उम्मीदवारी की घोषणा से ठीक पहले उद्धव ठाकरे ने एक कार्यक्रम में कहा था कि उन्होंने अपने पिता बाल ठाकरे को वचन दिया है कि एक दिन कोई शिवसैनिक महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनेगा। इस बयान के बाद आदित्य के चुनाव लड़ने की घोषणा से उनके मुख्यमंत्री पद के दावेदार होने की अटकलें तेज हो गईं।

पहली बार ठाकरे परिवार चुनावी मैदान में

शिवसेना में खास बात यह रही है कि उसके प्रथम परिवार यानी ठाकरे परिवार के किसी भी सदस्य ने पिछले पांच दशकों में कभी चुनाव नहीं लड़ा। 2014 में शिवसेना से अलग हुए मजबूत नेता और राज ठाकरे ने अपनी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ने के संकेत दिए थे लेकिन आखिरी क्षण में उन्होंने अपना इरादा बदल दिया। 

सीएम के पद के लिए खींचतान के संकेत

शिवसेना पिछले कुछ महीनों से कहती रही है कि भाजपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने पर जिस पार्टी को ज्यादा सीटें मिलेंगी, मुख्यमंत्री उसी पार्टी का होना चाहिए। जबकि भाजपा जोर देकर कह रही है कि अगला चुनाव देवेंद्र फड़नवीस को आगे करके ही लड़ा जाना चाहिए। माना जा रहा है कि शिवसेना की ओर से मुख्यमंत्री बनने के योग्य चेहरा उतारने की खातिर आदित्य को पेश किया गया है।

सीटों पर आखिर बनी बात

शिवसेना और भाजपा के बीच आगामी विधानसभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे पर भी खासी खींचतान रही। शिवसेना बराबर सीटों की मांग कर रही थी जबकि भाजपा ज्यादा सीटों पर दावा कर रही थी। अंत में दोनों पार्टियों के बीच सीटों के लिए समझौता हो गया। भाजपा 125 और शिवसेना 124 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। महाराष्ट्र विधानसभा में कुल 288 सीटें हैं। बाकी सीटें गठबंधन के छोटे दलों को मिलेंगी।

पिछले चुनाव में शिवसेना को लगा झटका

पिछले विधानसभा चुनाव में झटका खाने के बाद शिवसेना के लिए इस बार के चुनाव बहुत महत्वपूर्ण हो गए हैं। करीब तीन दशक के गठबंधन में शिवसेना बड़े भाई से छोटे भाई की हैसियत में चली गई। पिछले चुनाव में तकरार के चलते शिवसेना अलग हो गई थी। अलग-अलग चुनाव लड़ने के बाद शिवसेना सिकुड़ गई और भाजपा का विस्तार हो गया। 2014 के चुनाव में भाजपा की सीटे 46 से बढ़कर 122 हो गईं जबकि शिवसेना की सीटें 45 से बढ़कर 63 तक ही पहुंच सकी। आखिर चुनाव के बाद भाजपा और शिवसेना में फिर से समझौता हो गया।

भाजपा बड़ी चुनौती है शिवसेना के लिए

इस बार शिवसेना और भाजपा के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर शुरूआती खींचतान के बाद जल्दी ही सहमति बन गई। लेकिन शिवसेना के लिए बड़ी चुनौती है कि वह भाजपा के उभार के बीच अपने राजनीतिक आधार को कैसे बचाए। यही वजह है कि ठाकरे परिवार को जनप्रतिनिधियों पर नियंत्रण रखने की परिपाटी को त्यागकर सीधे चुनाव मैदान में उतरने का फैसला करना पड़ा। वैसे तो आदित्य को शिवसेना के गढ़ वर्ली से उतारा गया है लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि वह पूरे महाराष्ट्र में शिवसेना के प्रदर्शन को किस हद तक सुधार पाते हैं। मुख्यमंत्री पद के दावेदार होने के नाते यही उनकी बड़ी परीक्षा होगी।

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