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सरकार के 100 दिन, आर्थिक मोर्चे पर सरकार को हाथ लगी सिर्फ नाकामी

नरेंद्र मोदी सरकार ने दूसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरे कर लिए हैं। भाजपा को इस बार 2014 की तुलना में ज्यादा...
सरकार के 100 दिन, आर्थिक मोर्चे पर सरकार को हाथ लगी सिर्फ नाकामी

नरेंद्र मोदी सरकार ने दूसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरे कर लिए हैं। भाजपा को इस बार 2014 की तुलना में ज्यादा सीटें मिलीं इसलिए लोगों की उम्मीदें भी ज्यादा थीं। इन 100 दिनों में सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करके उसे केंद्रशासित प्रदेश बनाने, तीन तलाक और अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट (यूएपीए) कानून जैसे बड़े फैसले लिए लेकिन आर्थिक मोर्चे पर सभी खबरें सरकार के लिए सिरदर्द बनी रहीं।

कर संग्रह में लक्ष्य की तुलना में सिर्फ एक तिहाई बढ़ोतरी

सरकार के लिए सबसे बुरी खबर विकास दर की रही। अप्रैल-जून 2019 की तिमाही में जीडीपी विकास दर सिर्फ 5 फीसदी रह गई, जो 25 तिमाहियों में सबसे कम है। 2018 की इसी तिमाही में जीडीपी का आकार 8 फीसदी बढ़ा था। सबसे बड़ी समस्या निवेश और मांग में गिरावट है। पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) में वृद्धि दर 11.7 फीसदी से घटकर सिर्फ 4 फीसदी रह गई। इसी तरह निजी खपत में बढ़ोतरी 7.3 फीसदी की बजाय 3.1 फीसदी हुई। ऐसी अवस्था में सरकार को ही आगे बढ़कर खर्च करना पड़ता है, ताकि अर्थव्यवस्था में मांग बढ़े। लेकिन उसकी गुंजाइश भी नहीं है, क्योंकि 2019-20 के पहले चार महीने में कर संग्रह सिर्फ 6.6 फीसदी बढ़ा है। सरकार ने इसमें 18.3 फीसदी बढ़ोतरी का लक्ष्य रखा है। रिजर्व बैंक ने 1.76 लाख करोड़ रुपये सरप्लस सरकार को ट्रांसफर करने का निर्णय लिया है। इससे सरकार को मांग बढ़ाने में थोड़ी मदद मिल सकती है।

महंगाई और व्यापार घाटा कम, लेकिन कारण मांग में गिरावट

आंकड़ों के लिहाज से देखें तो महंगाई और व्यापार घाटा, दोनों कम हैं। लेकिन खुश होने के बजाय ये भी चिंताजनक खबरें हैं, क्योंकि महंगाई में गिरावट कम मांग की वजह से आई है। खुदरा महंगाई लगभग एक साल से चार फीसदी से नीचे बनी हुई है। इसी तरह मांग के अभाव में आयात में गिरावट आई है। निर्यात में बढ़ोतरी भी कम है, इसलिए व्यापार घाटा कम नजर आ रहा है। जुलाई में यह घाटा 13.43 अरब डॉलर का था, जो जुलाई 2018 में 18.63 अरब डॉलर था।

ऑटो सेक्टर में नौकरियों पर संकट सबसे ज्यादा

आम चुनाव के नतीजे आने के बाद सरकार ने स्वीकार किया था कि बेरोजगारी दर 45 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। उसके बाद से स्थिति और विकट ही हो रही है। खासकर मैन्युफैक्चरिंग में जबरदस्त गिरावट के चलते। आउटलुक हिंदी ने देश के करीब दर्जन भर इंडस्ट्री क्लस्टर में बात की तो पता चला कि हर जगह एमएसएमई के सामने बंदी का डर है। हर जगह लोग बेरोजगार हो रहे हैं। यात्री वाहनों की बिक्री दो दशक के निचले स्तर पर पहुंच जाने के कारण ऑटोमोबाइल सेक्टर में नौकरियों पर सबसे ज्यादा संकट है।

तीन महीने में 17 लाख करोड़ रुपये घट गया बीएसई का मार्केट कैप

सरकार गठन के बाद शेयर बाजार के इंडेक्स 8 से 10 फीसदी नीचे आ चुके हैं। इसमें अर्थव्यवस्था की खराब हालत के अलावा बजट की कुछ घोषणाओं का भी योगदान रहा। विदेशी निवेशक (एफपीआई) इस दौरान भारतीय बाजारों से करीब 30,000 करोड़ रुपये निकाल चुके हैं। 3 जून को शेयर बाजार शीर्ष पर था। तब से अब तक बीएसई में लिस्टेड कंपनियों का मार्केट कैप 17 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा घट चुका है। अगस्त के आखिरी हफ्ते में डॉलर के मुकाबले रुपया भी 2019 में पहली बार 72 के स्तर को पार करता हुआ 72.25 पर पहुंच गया।

सरकार ने किए ये उपाय, विशेषज्ञ बता रहे नाकाफी

लगातार बुरी खबरों से चेती वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले महीने उद्योग प्रतिनिधियों से बात करना शुरू किया और लगातार कुछ घोषणाएं भी कीं। लेकिन स्थिति सुधारने के लिए अभी तक जो भी कदम उठाए गए हैं, विशेषज्ञ उन्हें नाकाफी बता रहे हैं। जो उपाय किए गए हैं, उनमें प्रमुख हैं- विदेशी और घरेलू निवेशकों के लिए बजट में बढ़ाए गए सरचार्ज तरी को वापस लेना, स्टार्टअप्स के लिए एंजेल टैक्स खत्म करना, बैंकों को 70,000 करोड़ रुपये की पूंजी उपलब्ध कराना, हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों को 20,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त पूंजी देना, बीएस-4 मानक वाले वाहनों को पूरी रजिस्ट्रेशन अवधि तक चलाने की अनुमति देना, वाहनों पर मार्च 2020 तक अतिरिक्त 15 फीसदी मूल्यह्रास की इजाजत देना, सरकारी विभागों में वाहनों की खरीद पर रोक खत्म करना और एमएसएमई को 30 दिनों में जीएसटी का रिफंड देना। इसके अलावा चार बड़े सरकारी बैंकों में छह छोटे बैंकों के विलय का भी फैसला हुआ है।

 

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