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राजनीतिक दलों को डिजिटल लेनदेन से परहेज

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड समेत पांच प्रदेशों में विधानसभा चुनावों में कभी भी चुनाव की घोषणा हो सकती है लेकिन पिछले एक दशक से प्रमुख राजनीतिक दल चुनावी चंदे के रूप में मिली नकदी की घोषणा करने से बचते रहे हैं। यूं कहें कि राजनीतिक दल डिजिटल लेनदेन से परहेज करते आ रहे हैं। पिछले एक दशक में इन दलों ने चुनावों के लिए 63 फीसदी चंदा नकद ही लिया है।
राजनीतिक दलों को डिजिटल लेनदेन से  परहेज

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) के हालिया खुलासे से स्पष्ट हुआ है कि इन दलों ने एक दशक में 37 फीसदी चंदा ही चेक से लिया है। चुनाव सुधार पर काम करने वाली इस संस्था ने राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे पर तैयार रिपोर्ट में बताया है कि 2004 से 2015 तक कुल 71 विधानसभा चुनाव हुए जिनके लिए 152 राजनीतिक दलों ने 2107 करोड़ रुपये का नकद चंदा लिया जबकि 1244 करोड़ का चंदा चेक से लिया। इनमें से उन्होंने 65 प्रतिशत चंदा ही चुनावों में खर्च किया।

    
वर्ष 2013 में सबसे ज्यादा चंदा नकद इकट्ठा किया गया। 18 राजनीतिक दलों ने करीब493 करोड़ रुपये नकद और 199 करोड़ रुपये चेक से जुटाए। वहीं 2012 में 13 राजनीतिक दलों को सबसे ज्यादा 695 करोड़ का चंदा मिला। इनमें से 370 करोड़ नकद और 325 करोड़ रुपये चेक से प्राप्त हुए।।
  
शीर्ष पांच क्षेत्रीय दलों समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल, शिव सेना और ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस ने 2004 से 2015 तक विधानसभा चुनावों में113 करोड़ रुपये नकद और 179 करोड़ चेक से जुटाए। इसमें समाजवादी पार्टी को सबसे ज्यादा 90 करोड़ और सबसे कम आम आदमी पार्टी को पौने दो करोड़ रुपये का चंदा नकद मिला। खर्च की बात करें तो सिर्फ 13 करोड़ नकद और 144 करोड़ चेक से चंदे का खर्चा चुनावों में किया।रिपोर्ट के मुताबिक एक दशक के दौरान विधानसभा चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों की संख्या बढ़ती चली गई। वर्ष 2005 के चार विधानसभा चुनावों में 65 दलों ने हिस्सा लिया जबकि 2006 के पांच विधानसभा चुनाव में 82 दलों ने चुनाव लड़ा। सबसे ज्यादा 120 दलों ने 2008 के 10 विधानसभा चुनावों में हिस्सा लिया।

नियम के तहत राजनीतिक दल 20 हजार से कम चंदे का ब्योरा बताने के लिए बाध्य नहीं हैं। आरटीआई के दायरे में आने के बावजूद भाजपा, कांग्रेस, बसपा, एनसीपी,सीपीएम और सीपीआई कोई सूचना नहीं देते हैं। चुनाव जीतने वाले सांसदों और विधायकों के शपथ पत्रों की स्वत: जांच करने का कोई प्रावधान नहीं है। 

किसी व्यक्ति द्वारा शिकायत करने व सबूतों के आधार पर ही उनके शपथ पत्रों की जांच होती है। सांसदों की संपत्ति की जानकारी मिल सकती है लेकिन उनकी संपत्ति कहां से आई और उनकी कमाई का जरिया क्या है, इस बारे में आयकर विभाग आरटीआई के तहत भी नहीं देता है। (एजेंसी)

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