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बिहार: राजनीति में मचे सियासी भगदड़ के पीछे कौन, भाजपा का गेम प्लान हो सकता है फेल

बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में एक बार फिर से एनडीए सरकार को बने करीब 5 महीने हो चुके...
बिहार: राजनीति में मचे सियासी भगदड़ के पीछे कौन, भाजपा का गेम प्लान हो सकता है फेल

बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में एक बार फिर से एनडीए सरकार को बने करीब 5 महीने हो चुके हैं लेकिन राज्य की राजनीति में सियासी भगदड़ थमने का नाम नहीं ले रहा है। जनवरी से इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के मुखिया (रालोसपा) उपेंद्र कुशवाहा नीतीश से हाथ मिला सकते हैं लेकिन अभी तक बात बनी नहीं है। लेकिन, इस बीच रालोसपा के 6 दर्जन के करीब नेताओं ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। बताया जा रहा है कि ये नेता पार्टी के जेडीयू में विलय होने की बातों को लेकर नाराज हैं। दरअसल, रालोसपा भी चुनाव के दौरान एनडीए में शामिल होना चाहती थी लेकिन बीजेपी ने पल्ला झाड़ लिया था।

आउटलुक से बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार और बिहार की राजनीति पर लंबे समय से नजर रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक मणिकांत ठाकुर कहते हैं कि जब चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) राज्य एनडीए से अलग हो गई थी और कथित तौर पर आरोप नीतीश कुमार की कार्यशैली पर लगा। बीजेपी ने इसे स्वीकार करते हुए जेडीयू के साथ गठनबंध में रही। नीतीश को सीएम पद का चेहरा फिर से घोषित किया और परिणाम बाद बनाया। इसी तरह से बीजेपी ने भी एनडीए में रालोसपा के शामिल किए जाने पर सहमति नहीं जताई। जिसके बाद सीएम नीतीश के रोलोसपा को जेडीयू में विलय करने का प्रस्ताव रखने की संभावना हैं। लेकिन, किसी पद या अन्य शर्तों की वजह से ये विलय अटका पड़ा है।

सीएम नीतीश की नजर अब राज्य के सवर्ण वोटरों पर भी है जो भाजपा का माना जाता है। बीते दिनों पहली बार जेडीयू में 'सवर्ण प्रकोष्ठ' बनाया गया है। इसके बाद अब राजनीतिक गलियारों से ये आवाज आवाज आने लगी हैं कि जेडीयू भाजपा के वोटरों में सेंध लगाने की तैयारी में है और आगामी चुनाव को लेकर अभी से ही रणनीति बनने शुरू हो गए हैं। लेकिन, वोट शेयरिंग को लेकर मणिकांत ठाकुर सहमत नहीं दिखते हैं। उनका कहना है कि करीब दस साल पहले भी नीतीश ने 'सवर्ण आयोग' का गठन किया था। लेकिन, उसका क्या हुआ। बीजेपी अगड़ों की राजनीति करती है लेकिन, उसने एक पिछड़े को राज्य का नेतृत्व सौंप दिया। इसलिए, अभी ये कहना जल्दीबाजी होगा।

दरअसल, विधानसभा चुनाव परिणाम में जेडीयू को लोजपा की वजह से काफी नुकसाना हुआ है। नीतीश (43 सीट) तीसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गए जबकि आरजेडी (75 सीट) पहले और दूसरे नंबर पर सहयोगी दल भाजपा 74 सीटों के साथ बड़े भाई की भूमिका में उभरने में कामयाब रही। राजनीतिक जानकारों की माने तो सीएम नीतीश बीजेपी से इतर जेडीयू के भविष्य को लेकर रालोसपा को शामिल कर 'लव-कुश' फैक्टर को अपने पाले में लाना चाहते हैं। क्योंकि, राज्य में करीब 8 फीसदी कुर्मी-कोइरी का वोट बैंक है। जबकि बीते महीने नीतीश मंत्रिमंडल विस्तार में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्त और पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन को उद्योग मंत्री बनाकर भाजपा ने अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की है। लेकिन, मणिकांत ठाकुर मानते हैं कि इससे भी भाजपा को कुछ खास फायदा नहीं होने वाला है। क्योंकि, नीतीश को टक्कर देना बिहार की राजनीति में इतना आसान नहीं है।

कुछ साल पहले रालोसपा प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री कुशवाहा ने मोदी सरकार से इस्तीफा दे दिया था और अपनी पार्टी के एनडीए से अलग होने की घोषणा कर दी थी। अलग होते हुए कुशवाहा ने आरोप लगाया था कि मोदी सरकार ओबीसी समुदाय के हितों की अनदेखी कर रही है और संघ के एजेंडे को लागू किया जा रहा है। दरअसल, 2019 लोकसभा चुनाव में दो से ज्यादा सीटें नहीं मिलने के भाजपा के संकेतों के बाद से ही कुशवाहा नाराज थे। दूसरी ओर भाजपा और जदयू के बीच बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने की सहमति बनी थी। अब कुशवाहा का नीतीश के साथ जाने की पुख्ता अटकलें फिर से एनडीए के भीतर की कलह को सामने ला सकती है। क्योंकि, नीतीश भी फिर से सीएम बनने के बाद कहा था कि उन्हें पद की लालसा नहीं थी और वो हिंदुत्व की लीक से हटकर राजनीति करते देखे जाते हैं। जबकि, भाजपा इसमें संलिप्त दिखती है।

एक तरफ नीतीश कुमार को एनडीए में दूसरे नंबर पर होने का टीस है वहीं, कुशवाहा भी बिहार की राजनीति में प्रासंगिक बने रहना चाहते हैं। क्योंकि, लाख जतन के बाद भी रालोसपा को बीते विधानसभा चुनाव में एक भी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई है। अागामी विधानसभा चुनाव में करीब चार साल से अधिक का समय बचा है लेकिन अभी से ही जेडीयू और भाजपा, दोनों ने सियासी पकड़ मजबूत करनी शुरू कर दी है। क्योंकि, नए साल की शुरूआत में ही जब दोनों उपमुख्यमंत्री रेणु देवी और तारकिशोर प्रसाद दिल्ली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मिलने गए थे तो साफ तौर पर दोनों ने कहा था कि राज्य में हो रहे विकास के कामों में भाजपा की भी भागीदारी दिखनी चाहिए। इसको लेकर आउटलुक से बातचीत में जेडीयू के प्रवक्ता अजय आलोक ने कहा था कि हर पार्टी अपने नेतृत्व को मजबूत करना चाहती है। गठबंधन फायदे के लिए किया जाता है। जेडीयू भी अपनी कमियों को लेकर मंथन कर रही है और आगामी विधानसभा चुनाव भी सीएम नीतीश के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। दो उपमुख्यमंत्री बनाए जाने और हुसैन की बिहार की राजनीति में एंट्री भाजपा की आगामी रणनीति को लेकर कुछ और संकेत दे रही है।

यदि ऐसा होता है तो संभवत: बीजेपी अपने पत्ते चिराग के साथ खोलकर अलग हो सकती है और जेडीयू आरजेडी के साथ मैदान में उतर सकती है। क्योंकि, अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए ही बीजेपी ने सुशील मोदी और नीतीश कुमार की जोड़ी को तोड़ा है। अब तक राज्य में सुशील मोदी भाजपा को वो पहचान दिलाने में नाकामयाब रहे हैं, जिसके दम पर बीजेपी राज्य में चुनावी ताल ठोक सके। मणिकांत ठाकुर मानते हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन की तरफ सीएम नीतीश को राष्ट्रीय राजनीति में किस्मत आजमाने का ऑफर किया जा सकता है। बशर्तें शर्त ये हो सकता है कि नीतीश आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को राज्य के चेहरे के तौर पर समर्थन करें।

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