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नसीमुद्दीन सिद्दीकी: एक राष्ट्रीय खिलाड़ी कैसे बना मायावती का सबसे खास मंत्री

यूपी की राजनीति में नसीमुद्दीन सिद्दीकी एक बड़े मुस्लिम नेता माने जाते हैं। यूपी के 2017 विधानसभा चुनावों में बसपा ने उन्हें टिकट बांटने से लेकर अपने स्टार प्रचारकों में शामिल किया था। बसपा सुप्रीमो मायावती ने उनसे सभी बड़े विभाग और अधिकार छीन कर सबको चौका दिया।
नसीमुद्दीन सिद्दीकी: एक राष्ट्रीय खिलाड़ी कैसे बना मायावती का सबसे खास मंत्री

राष्ट्रीय खिलाड़ी थे नसीमुद्दीन सिद्दीकी

नसीमुद्दीन सिद्दीकी का जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के सेवरा गांव में हुआ था। उनके पिता कमरुद्दीन एक किसान थे। नसीमुद्दीन शुरुआत से ही खेलों में बहुत अच्छे थे,वो राष्ट्रीय स्तर पर वॉलीबॉल खिलाड़ी रह चुके हैं। अपनी कैरियर की शुरुआत में उन्होंने एक रेलवे ठेकेदार के रूप में काम भी किया था।

राजनीति में कब आये नसीमुद्दीन सिद्दीकी 

अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत उन्होंने 1988 में बांदा नगर निगम के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ कर की। उन्हें इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। इसी साल नसीमुद्दीन बसपा में शामिल हो गए। जिसके बाद 1991 में उन्हें फिर से बसपा से विधायकी का टिकट मिला जिसमे उन्हें सफलता मिली। लेकिन दो साल बाद 1993 में हुए चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

 जब मायावती 1995 में पहली बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं तब नसीमुद्दीन को कैबिनेट मंत्री बनाया गया। इसके बाद उन्‍हें फिर से 21 मार्च 1997 से 21 सितंबर 1997 तक मायावती की अल्पकालीन सरकार में मंत्री बनाया गया। 3 मई 2002 से 29 अगस्त 2003 तक एक साल के लिए भी वो कैबिनेट का हिस्सा रहे।

इसके बाद 13 मई 2007 से 7 मार्च 2012 तक मायावती की पूर्णकालिक सरकार में मंत्री रहे। मायावती जब-जब मुख्यमंत्री बनी तब-तब वो कैबिनेट मंत्री रहें।

2017 यूपी विधानसभा चुनावों में नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने अपने बड़े पुत्र अफजल को चुनावी मैदान में उतारा था। अफजल को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों को लामबंद करने की जिम्मेदारी दी गयी थी। गौरतलब है कि इससे पहले अफजल 2014 में फतेहपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था।

विवाद और नसीमुद्दीन सिद्दीकी

विवादों से भी नसीमुद्दीन का नाता रहा है। यूपी 2017 विधानसभा चुनाव के दौरान भी नसीमुद्दीन सिद्दीकी को बीजेपी नेता दयाशंकर की पत्नी और बच्चों के खिलाफ अभद्र भाषा के प्रयोग के चलते काफी विरोध का सामना करना पड़ा था। उन पर दयाशंकर की पत्नी स्वाती सिंह ने पाक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करवाया था।

 

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