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बजटः कृषि, महिला, मनरेगा को नहीं मिला समुचित ध्यान

केंद्रीय बजट में सरकारी दावों के उलट जमीन पर सक्रिय संगठनों ने उठाए बुनियादी सवाल, आलोचना के स्वर गहराए
बजटः कृषि, महिला, मनरेगा को नहीं मिला समुचित ध्यान

वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा आज पेश किए गए आम बजट को लेकर मिली-जुली प्रत्किया आ रही है। एक तरह सरकारी पक्ष, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कॉरपोरेट घरानों सहित कई खेमों ने इस बजट की तारीफ की, वहीं दूसरे हिस्से से इसकी तीखी आलोचना के स्वर सामने आए। इस बजट में वंचित समुदायों का प्रतिशत भी घटा है। कुल बजट में से दलितों को केवल 1.96, आदिवासियों को 1.2, अल्पसंख्यकों के लिए 0.19  और महिलाओं को 4.58 फीसदी ही मिला है।

मनरेगा

बड़ी संख्या में दलों और संगठनों ने सरकार के इस दावे से असहमति जताई इस बजट में किए गए दावों को गलत बताया गया, खासतौर से ग्रामीण भारत से संबंधित दावों को लेकर तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है। इस बजट को लेकर केंद्र सरकार का दावा है कि इसमें महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के लिए अब तक का सबसे अधिक आवंटन किया है। इसे जमीन पर काम कर रहे लोगों ने गलत बताया। मजदूर किसान शक्ति संगठन की अरुणा राय और निखिल डे ने आउटलुक को बताया कि सरकार का दावा गलत है। अभी तक सबसे अधिक आवंटन वर्ष 2010 में किया गया था, 40 हजार करोड़ रुपये। इस बार मुद्रास्फीति को देखते हुए मनरेगा के लिए कम से कम 65 हजार करोड़ रुपये का होना चाहिए था, लेकिन सरकार ने सिर्फ 38,500 करोड़ रुपये आवंटित किए। इसमें भी पिछले साल के मनरेगा के तहत काम करने वालों के 6,000 करोड़ रुपये की मजूरी बकाया है। यानी इस साल के लिए आवंटित 38,500 हजार करोड़ रुपये में , छह हजार करोड़ रुपये तो बकाया भुगतान को निपटाने में चला जाएगा। इस वित्त वर्ष के लिए सिर्फ 32 हजार करोड़ रुपये, जो पूरे साल के लिए बेहद कम है।

ग्रामीण भारत की अनदेखी

इसके साथ ही किसानों और खेती की तेजी बिगड़ती स्थिति को देखते हुए यह उम्मीद की जा रही थी इस बारे में जनता दल (यूनाइटेड) के सासंद केसी. त्यागी का कहना है कि देश में 55 फीसदी से अधिक कृषि योग्य जमीन सिंचाई की सुविधा से वंचित है और हजारों की तादाद में किसान हर साल आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं ऐसे में केंद्रीय बजट में खाली खोखले वादे किए गए हैं। वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करना ऐसा ही जुमला है। यहां तक की खेती बीमा के लिए 5500 करोड़ रुपये बेहद कम हैं।

दलितों के विकास के लिए कार्यरत संगठनों के समूह नेकडोर का आंकलन है कि इस बजट में महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के साथ नाइंसाफी हुई है। उधर जाने-मान अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने वित्त मंत्री के बजट भाषणा में इस्तेमाल किए गए शब्दों का बेहद दिलचस्प विश्लेषण किया है। इसके आधार पर उन्होंने यह साबित करने की कोशिश की है कि यह बजट सामाजिक विकास, समाज की बुनियादी जरूरतों, मानव विकास सूंचकांक के महत्वपूर्ण कारकों की खुली अवहेलना करता है। ज्यां द्रेज ने अरुण जेटली द्वारा पेश किए बजट की तुलना 2014 के बजट में इस्तेमाल किए गए शब्दों से की है। जैसे 2014 में निवेश शब्द का इस्तेमाल बजट के भाषण में 34 बार किया गया था, इस बार 23 बार। वृद्धि का जिक्र 2014 में 31 बार था इस दफा 20 बार, नरेगा का 2014 में 2 बार, तो इस बार घटकर 1 बार, पोषण, सामाजिक सुरक्षा, बाल विकास, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा इस बार के बजट में कोई जिक्र नहीं है।

वित्त मंत्री के बजट भाषण में अहम शब्द

ज्यां द्रेज

 शब्द

कितनी बार बोले गए  

2014

2016

निवेश

34

23

वृद्धि

31

20

मनरेगा

2

1

पोषण

2

0

सामाजिक सुरक्षा

1

0

बच्चे

0

0

आईसीडीएस

0

0

मध्याहन भोजन

0

0

मैटरनिटी

0

0

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा

0

0

पेंशन

0

0

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन

0

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