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संपादक की कलम से: फिरहाद के 5 लाख रुपये से शुभेंदु के 5 लाख की कीमत कम है क्या?

सोमवार को पश्चिम बंगाल के चार राजनेताओं, जिनमें दो मंत्री और एक विधायक भी शामिल हैं, की सीबीआइ...
संपादक की कलम से: फिरहाद के 5 लाख रुपये से शुभेंदु के 5 लाख की कीमत कम है क्या?

सोमवार को पश्चिम बंगाल के चार राजनेताओं, जिनमें दो मंत्री और एक विधायक भी शामिल हैं, की सीबीआइ गिरफ्तारी का पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनके अनियंत्रित समर्थकों ने जिस तरह मुखर विरोध किया, उसके विपरीत मुझे उन नेताओं की गिरफ्तारी में लेने में कोई समस्या नहीं दिखी। मुझे उन नेताओं को असहज देखकर थोड़ी राहत मिली, हालांकि उन्हें जल्द ही जमानत पर छोड़ दिया गया।

आखिरकार कानून उन नेताओं को करीब 5 साल बाद पकड़ने में कामयाब रहा जो स्टिंग ऑपरेशन में रिश्वत लेते कैद हुए थे। इन नेताओं की गिरफ्तारी न्याय प्रणाली में हमारे विश्वास को पूरी तरह से खत्म होने से बचाती है। नए घटनाक्रम से हमारी यह उम्मीद बढ़ती है कि न्याय में देरी का हमेशा मतलब न्याय से वंचित होना नहीं होता।

इसके बावजूद जिस तरह से बंगाल में न्याय किया जा रहा है, वह व्यवस्था पर हमारे विश्वास को कम करता है। गिरफ्तारियां बेहद चुनिंदा हैं और ऐसा लगता है कि विशेष रूप से एक राजनीतिक दल को निशाना बनाया गया है। इस मामले में तृणमूल कांग्रेस निशाने पर है। यह भी प्रतीत होता है कि हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में शर्मनाक हार के कारण भाजपा के इशारे पर ‘पिंजरे में बंद तोता’ सीबीआइ, तृणमूल पार्टी के नेताओं को परेशान कर रही है।

इस लंबी कहानी का सार यह है कि लगभग एक दर्जन प्रभावशाली राजनेताओं और एक वरिष्ठ पुलिसकर्मी को एक पत्रकार द्वारा स्टिंग ऑपरेशन के जरिए नकद लेते हुए दिखाया गया था। ऐसा करने के लिए पत्रकार ने नेताओं के सामने अपने आपको एक व्यापारी के रूप में पेश किया था। इस पूरे ऑपरेशन को नारद स्टिंग के रूप में जाना जाता है।

सभी नेता उस वक्त तृणमूल कांग्रेस में थे। खुलासे के बाद उनकी सख्ती से जांच होनी चाहिए थी और बिना देर किए उनके खिलाफ मामला दर्ज किया जाना चाहिए था। लेकिन इन प्रभावशाली लोगों की जमीन से जुड़ी ममता बनर्जी राजनीतिक कीमत जानती थीं। इसलिए उन्होंने इन नेताओं को बचाने की पुरजोर कोशिश की। हर समय, दागी राजनेता फलते-फूलते रहे और मंत्री और विधायक बनते रहे। और जैसा कि राजनीति में अक्सर होता है, उनमें से कुछ ने ममता का साथ छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा में शामिल होने वाले नेताओं को उम्मीद थी कि नई पार्टी में उन्हें बेहतर मौका मिलेगा।

मौजूदा व्यवस्था में भरोसे का संकट इसी वजह से खड़ा हुआ है क्योंकि जो नेता ममता के साथ हैं और जो अब भाजपा के साथ हैं, दोनों के साथ अलग तरह से व्यवहार किया जा रहा है। जिन लोगों को सोमवार को गिरफ्तार किया गया उनमें मंत्री फिरहाद हाकिम और सुब्रतो मुखर्जी भी शामिल हैं, जिन्हें टेप में पांच-पांच लाख रुपये लेते देखा गया था।

लेकिन यही तो शुभेंदु अधिकारी ने भी किया था, उन्होंने भी तो पैसे लिए थे। वे कभी ममता के भरोसेमंद सहयोगी थे और अब भाजपा के चहेते हैं। उन्होंने हाल ही नंदीग्राम में हाई-वोल्टेज चुनावी लड़ाई में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को हराया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या शुभेंदु को कथित तौर पर दिए गए पांच लाख रुपये की कीमत हकीम या मुखर्जी को दिए गए पांच लाख रुपये से कम है?

इस मामले में स्टिंग को अंजाम देने वाले पत्रकार मैथ्यू सैमुअल ने दोहराया है कि उन्होंने एक बिचौलिए के जरिए मुकुल रॉय को 15 लाख रुपये दिए थे, जिसकी रिकॉर्डिंग अब जांच का हिस्सा है। इसके बावजूद आश्चर्यजनक रूप से रॉय बेदाग बने हुए हैं और बंगाल में भाजपा के लिए सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक हैं।

कोलकाता के पूर्व मेयर और कभी ममता के सबसे करीबी रहे सोभन चटर्जी की गिरफ्तारी भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। चुनावों से पहले चटर्जी ने ममता का साथ छोड़ दिया था और अपना भविष्य सुरक्षित करने के लिए भाजपा में चले गए थे। लेकिन विधानसभा चुनावों में अपनी पसंद का टिकट हासिल नहीं कर पाने की वजह से उन्होंने भगवा पार्टी का साथ छोड़ दिया। अब सीबीआइ ने जिस तरह से सुबह की छापेमारी में उन्हें हिरासत में लिया उससे लगता है कि उनको भाजपा का साथ छोड़ना महंगा पड़ गया।

इन चुनिंदा गिरफ्तारियों से राजनीतिक प्रतिशोध साफ तौर पर दिखता है। भाजपा राज्य के चुनावों में बुरी तरह से हार गई। हार पर उसकी प्रतिक्रिया खीझ के रूप में दिख रही है। चुनावी लड़ाई हारने के बाद ममता की साख बिगाड़ने के लिए एक काफी शोर-शराबे वाला अभियान शुरू हो गया है।

हार के बाद सबसे पहले भाजपा के नेताओं ने विजयी तृणमूल कांग्रेस पार्टी पर अपने कार्यकर्ताओं पर हिंसा का आरोप लगाए। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इन चुनावों में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी। लेकिन उस रक्तपात में भाजपा की प्रतिक्रिया भी तृणमूल के लिए कम हिंसक नहीं थी। उसकी हिंसा में भी तृणमूल कार्यकर्ताओं के मारे जाने के आरोप हैं।

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