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कैबिनेट गठन में शिवराज दिखे कमजोर, कई खास को नहीं बना पाए मंत्री

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने नैनो मंत्रिमंडल में अपनी पसंद के लोगों को मंत्री...
कैबिनेट गठन में शिवराज दिखे कमजोर, कई खास को नहीं बना पाए मंत्री

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने नैनो मंत्रिमंडल में अपनी पसंद के लोगों को मंत्री नहीं बना सके। भाजपा हाईकमान और ज्योतिरादित्य सिंधिया की पसंद पर कैबिनेट बनाया गया है। भाजपा के कोटे से नरोत्तम मिश्रा, कमल पटेल और मीना सिंह के मंत्री बनने से साफ़ लग रहा है कि कैबिनेट गठन में शिवराज की नहीं चली। शिवराज की पहली पसंद भूपेंद्र सिंह थे, लेकिन शिवराज विरोधी माने जाने वाले कमल पटेल मंत्री बन गए। पहली ही खेप में कमल पटेल के मंत्री बनने से लोगों को आश्चर्य भी हो रहा है, क्योंकि कमल पटेल अपने पुत्र की वजह से विवादों में भी रहे। नरोत्तम मिश्रा की केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से सीधी पकड़ है। मीना सिंह को भी शिवराज विरोधी माना जाता है। सिंधिया ने छोटे मंत्रिमंडल में अपने दो खास समर्थकों तुलसी सिलावट और गोविन्द राजपूत को जगह दिलवाकर ताकत दिखा दी।

चौथी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान शपथ लेने के 28 दिन बाद भले अपनी पसंद का, और भारी-भरकम मंत्रिमंडल नहीं बना सके, लेकिन इसमें बड़ी सोशल इंजीनियरिंग नजर आ रही है। शिवराज के मंत्रिमंडल में प्रदेश हर वर्ग को साधने की कोशिश की गई है। इसमें ब्राह्मण, ठाकुर, ओबीसी , दलित और आदिवासी वर्ग के नेताओं को मंत्री बनाया गया है। सोशल इंजीनियरिंग की वजह से भाजपा में मंत्री बनने की आस लगाए बैठे कई वरिष्ठ नेताओं को नैनों मंत्रिमंडल में तरजीह नहीं दी गई। भाजपा सूत्रों का कहना है कि दो दिन पहले तक मंत्रिमंडल में गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह को शामिल किया जाना तय माना जा रहा था, लेकिन सोमवार देर शाम तक दोनों को होल्ड कर दिया गया। कहा जा रहा है कि वे जातिगत और क्षेत्रीय संतुलन के चलते छोटे मंत्रिमंडल में नहीं आ पाए। अगर शिवराज अपने मंत्रिमंडल में पार्टी के वरिष्ठ नेता गोपाल भार्गव को शामिल करते तो उनके मंत्रिमंडल में दो ब्राह्मण मंत्री होते। यदि भूपेंद्र सिंह को शामिल किया जाता तो गोविंद सिंह राजपूत को मिलाकर दो ठाकुर मंत्री होते। इसके अलावा दूसरी वजह जो बताई जा रही है, उसके अनुसार अकेले सागर संभाग से ही तीन मंत्री बनने से भी पद की आस लगाए विधायकों और ज्योतिरादित्य खेमें के पूर्व मंत्रियों को अच्छा संदेश नहीं जाता।

इन समीकरणों का रखा गया ध्यान

दतिया से विधायक नरोत्तम मिश्रा भाजपा के कद्दावर नेता और पार्टी के ब्राम्हण चेहरे हैं। वे शिवराज सरकार के पिछले 3 कार्यकाल में भी मंत्री रह चुके हैं और कांग्रेस के भीतर तोड़फोड़ में इनकी अहम भूमिका रही। मुख्यमंत्री की कुर्सी की दौड़ में नरोत्तम मिश्रा का नाम भी शामिल था। मुख्यमंत्री नहीं बन पाने के कारण इनका उप मुख्यमंत्री बनना तय माना जा रहा था। फिलहाल तो इन्हें मंत्री पद देकर शांत कर दिया गया है। हरदा से विधायक कमल पटेल ओबीसी वर्ग से आते हैं। ये पहले भी मंत्री रह चुके हैं। कहा जाता है, इनके लिए भाजपा की एक ओबीसी नेता ने पूरी ताकत लगा दी, जिसके बाद पार्टी हाईकमान को उनके नाम के लिए हरी झंडी देनी पड़ी। आदिवासी बाहुल्य उमरिया जिले से विधायक मीना सिंह अनुसूचित जनजाति वर्ग से आती हैं। शिवराज के नैनो मंत्रिमंडल में ये महिला और आदिवासी वर्ग का प्रतिनिधित्व करेंगी। इन्हें भी भाजपा हाईकमान की पसंद बताया जा रहा है। कल देर रात तक आदिवासी कोटे से कांग्रेस से भाजपा में आये बिसाहूलाल सिंह का नाम चला था, लेकिन उमरिया जिले को छोड़कर शेष विंध्य में भाजपा विधायकों की संख्या ज्यादा है, इस कारण भाजपा ने मीना सिंह का नाम तय कर दिया। मीना सिंह को मंत्री बनाये जाने से कैबिनेट में महिला और आदिवासी वर्ग का प्रतिनिधित्व हो गया। कहा जा रहा है शिवराज सिंह अपने पुराने साथी रामपाल सिंह, विजय शाह को मंत्री बनाये जाने के पक्ष में थे, पर ऐसा नहीं हो पाया। अगले विस्तार में इन लोगों को मौका मिल सकता है।

सिंधिया के खास लोगों को जगह

ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे खास व्यक्ति माने जाने वाले तुलसी सिलावट अनुसूचित जाति वर्ग से आते हैं। मालवा क्षेत्र के बड़े नेताओं में शुमार हैं। कमलनाथ सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रह चुके हैं। सिंधिया खेमे के डॉ. प्रभुराम चौधरी भी इसी वर्ग से आते हैं। सिंधिया ने तुलसी सिलावट को प्राथमिकता दी। लेकिन वे तुलसी सिलावट को उप मुख्यमंत्री नहीं बनवा सके। युवक कांग्रेस से राजनीति शुरू करने वाले गोविंद सिंह राजपूत बुंदेलखंड के बड़े ठाकुर नेताओं में एक हैं। सागर जिले की सुरखी विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं। सिंधिया खेमे के रसूखदार ठाकुर नेता होने की वजह से मंत्री बनाए गए। कमलनाथ सरकार में ये राजस्व मंत्री रह चुके हैं। गोविंद सिंह राजपूत के कारण मंत्रिमंडल से शिवराज के करीबी भूपेंद्र सिंह का पत्ता पहली खेप में कट गया। हालांकि सिंधिया अपने गढ़ ग्वालियर - चम्बल संभाग से फिलहाल किसी को मंत्री नहीं बनवा सके हैं। लाक डाउन के बाद होने वाले विस्तार में ग्वालियर - चम्बल के साथियों को कैबिनेट में स्थान दिला दें। सूत्रों का कहना है कि आने वाले समय में सबसे ज्यादा राजनीतिक धमासान ग्वालियर-चंबल संभाग में ही देखने को मिल सकता है। ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के जो विधायक कमलनाथ सरकार में मंत्री थे, उनका मंत्री बनना तय है। इसमें से चार ग्वालियर-चंबल संभाग से ही आते हैं। इसके अलावा एंदल सिंह कंसाना और रघुराज कंसाना सिंधिया समर्थक तो नहीं हैं, लेकिन कांग्रेस छोड़कर मंत्री बनाए जाने आश्वासन पर ही भाजपा में आए। ऐसे में यहां भाजपा नेताओं का क्या होगा और उनकी अगली रणनीति क्या होगी, इस पर भी कयास लगाए जा रहे हैं। ग्वालियर के ही कुछ वरिष्ठ नेता सिंधिया समर्थकों के पार्टी में आने और उन्हें मत्री बनाए जाने से खुश नहीं हैं।

मध्य प्रदेश में भाजपा को छोटा मंत्रिमंडल बनाना मज़बूरी थी। क्योंकि बिना विधायक कितने लोगों को एक साथ मंत्री बनाया जा सकता था। भोपाल के अधिवक्ता जेपी धनोपिया का कहना है कि बिना विधायक मंत्री बनाना लोकतंत्र का अपमान है। इन विधायकों ने जिस सदन से त्यागपत्र दिया और उसी सदन में बिना विधायक के मंत्री बना कर लोकतंत्र को लज्जित किया है, क्योंकि इन विधायकों ने काँग्रेस पार्टी से नहीं बल्कि विधान सभा की सदस्यता से त्यागपत्र दिया था ।इसलिए नैतिकता तो अपनी जगह है लोकतांत्रिक नियमों के अनुरूप भी मंत्री बनाकर लोकतंत्र को शर्मिन्दा कर दिया है क्योंकि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार किसी व्यक्ति विशेष को इस प्रतियासा में मंत्री बनाया जा सकता है कि वो छह माह के अंदर विधायक निर्वाचित हो जायेगा जबकि मध्यप्रदेश में अभी कोरोना की महामारी की वजह से निकट भविष्य में चुनाव होना संदेहास्पद लग लग रहा है, ऐसे में भाजपा ने प्रदेश में गैर विधायकों को जानबूझकर लोकतंत्र को धोखा देने के लिए मंत्री बनाया है। मध्यप्रदेश में दिग्विजय मंत्रिमंडल में इब्राहीम कुरैशी बिना विधायक के छह माह तक मंत्री रह चुके हैं, बाद वे विधानसभा से चुनकर नहीं आये, तो कैबिनेट से हटा दिया गया। कहा जाता है संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि बिना विधायक कितने लोगों को कैबिनेट में रखा जा सकता है। बिना विधायक अभी तो दो मंत्री बने हैं अब देखते हैं , आगे विस्तार में कितने बिना विधायक मंत्री बनते हैं।

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