Advertisement

कैराना में भाजपा पर भारी पड़ सकता है सियासी गणित, समझिए कैसे?

- शामली से लौटकर हरवीर सिंह  दो दिन बाद 28 मई को कैराना लोक सभा का उपचुनाव के लिए मतदान होगा। देखने में यह...
कैराना में भाजपा पर भारी पड़ सकता है सियासी गणित, समझिए कैसे?

- शामली से लौटकर हरवीर सिंह 

दो दिन बाद 28 मई को कैराना लोक सभा का उपचुनाव के लिए मतदान होगा। देखने में यह महज एक लोक सभा का उपचुनाव है और यहां से चुने जाने वाले सांसद का कार्यकाल भी साल भर से कम होगा। लेकिन यह चुनाव राष्ट्रीय स्तर पर कई बड़े संदेश देगा। जहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए यह चुनाव देश को सबसे अधिक लोक सभा सीटें देकर केंद्र की सत्ता की दिशा तय करने वाले उत्तर प्रदेश में गोरखपुर और फूलपुर लोक सभा उपचुनावों की हार से पैदा माहौल को बदलने की बड़ी कोशिश है।

जिस तरह के राजनीतिक समीकरण यहां बने हैं उनके चलते भाजपा का संकट और अधिक गहरा होता दिख रहा है। यहां भाजपा ने पूर्व सांसद दिवंगत हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को उम्मीदवार बनाया है जबकि राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) ने तबस्सुम हसन को उम्मीदवार बनाया है। यह सीट गठबंधऩ में आरएलडी के खाते में आई है और इस गठबंधन में आरएलडी के साथ सपा, बसपा और कांग्रेस साथ है।

जातिगत समीकरण भेदने की चुनौती

पांच विधान सभा सीटों कैराना, शामली, थानाभवन, गंगोह और नकुड़ वाली इस लोक सभा में इस बार के जातीय समीकरण को तोड़ पाना भाजपा के लिए मुश्किल होता जा रहा है। करीब 16 लाख मतदाताओं वाली इस सीट पर करीब साढ़े पांच लाख मुसलमान वोट हैं। जबकि 1.8 लाख जाट मतदाता हैं और करीब ढाई लाख दलित मतदाता हैं। जबकि गूजर और कश्यप मतदाता डेढ़-डेढ़ लाख हैं। बाकी में सैनी और उच्च वर्ग के मतदाता शामिल हैं। लेकिन इस बार जिस तरह से यहां राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) और समाजवादी पार्टी का गठबंधन बना है और इसे बसपा-सपा गठबंधन भी माना जा रहा है। इसके अलावा कांग्रेस भी खुलकर इस गठबंधन के साथ चुनाव मैदान में मौजूद है। उसने भाजपा की चिंता काफी बढ़ा दी है। इसकी सबसे बड़ी वजह है आरएलडी के परंपरागत वोट बैंक जाटों का आरएलडी के पाले में शिफ्ट हो जाना। ऐसे में गठबंधन का वोट बैंक भाजपा के वोट बैंक पर भारी पड़ रहा है। 

इसके साथ ही मुस्लिम मतों के बीच किसी भी तरह के बंटवारे की संभावना भी पूरी तरह खारिज हो गई है क्योंकि कैराना से रालोद उम्मीदवार तबस्सुम हसन के देवर कंवर हसन दो दिन पहले तक चुनाव मैदान में थे। निर्दलीय होने के बावजूद उनके चलते मुस्लिम मतों में कुछ विभाजन की आशंका थी। लेकिन गुरुवार को वह रालोद में शामिल गये। पूर्व केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री संजीव बालियान कहते हैं कि इसका गठबंधन को फायदा होगा और यह घटनाक्रम हमारी बढ़त को कम करेगा। दिलचस्प बात यह है कि सहारनपुर की नकुड़ सीट पर प्रभावशाली माने जाने वाले कांग्रेसी नेता इमरान मसूद  ने भी पिछले सप्ताह तबस्सुम को समर्थन दे दिया था, पहले उन्हें नाराज माना जा रहा था। इस कदम के पीछे सपा प्रमुख अखिलेश यादव का हाथ माना जा रहा है जबकि कंवर हसन को अपने पाले में लाने का काम खुद रालोद प्रमुख अजित सिंह ने ही किया है। इसके पांच लाख से ज्यादा मुस्लिम वोटों मेें विभाजन की कोई भी संभावना समाप्त हो गई है जो भाजपा के लिए चिंताजनक है।

जाट-दलित-मुस्लिम गठजोड़ के भरोसे गठबंधन 

दलित मतों का साफ स्पष्ट रुझान गठबंधन की तरफ है। इसे गठबंधन को बसपा का समर्थन माना जा रहा है हालांकि बसपा ने आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा है लेकिन जमीन पर दलित इस गठबंधन के साथ खड़े दिखते हैं। इस बात को खुद भाजपा के बड़े नेता स्वीकार कर रहे हैं। इसके साथ ही जिस तरह भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर रावण ने जेल से ही चिट्ठी लिखकर दलितों को भाजपा को हराने के लिए वोट देने की अपील की है उसका सीधा असर दिख रहा है। चंद्रशेखर की मां खुद दलितों में भाजपा के खिलाफ वोट देने की अपील कर रही है। असल में सहारनपुर में दलितों के खिलाफ स्वर्णों के हमलों और पिछले साल व इस साल भी एक व्यक्ति मौत के बाद माहौल सरकार के खिलाफ गया है।

इसके अलावा अप्रैल में दलितों के भारत बंद के बाद पुलिस की कार्रवाई को भी एकतरफा और दलितों के खिलाफ देखा गया है। इसका सीधा असर कैराना चुनाव में दलित वोटों के भाजपा के खिलाफ जाने के रूप में देखने को मिल सकता है। बातचीत में दलित स्वीकार करते हैं कि वह गठबंधन के पक्ष में जाएंगे। यही वजह है कि कई गांवों मेें  दलितों ने रालोद नेताओं की मींटिंगें की। भभीसा और भैंसवाल में इस तरह की बैठकें इस लेखक की मौजूदगी में हुई है। जो इस बात का संकेत है कि यहां जाटों और दलितों के बीच मतभेद खत्म होते दिख रहे हैं।  

अजित-जयंत का गांव-गांव घूमना 

जाट मतों को एकजुट करने के लिए  जाट बहुल गावों में कोई गांव ऐसा नहीं बचा है जहां आरएलडी उपाध्यक्ष जयंत चौधरी और पार्टी अध्यक्ष अजित सिंह न गये हों। इस लेखक से बत्तीसा खाप प्रमुख के गांव भैंसवाल में मीटिंग के बाद जयंत कहते हैं कि सोमवार तक मैं 88 गांवों में जा चुका हूं। वह हर रोज करीब 15-16 गांवों का दौरा कर रहे हैं। यही स्थिति अजित सिंह की है वह सभी बड़े गांवों में वोट के लिए जा रहे हैं। जयंत कहते हैं कि पार्टी का एजेंडा बड़ा साफ है किसानों और जाटों की पार्टी के अस्तित्व का सवाल है। यह चुनाव कोई एक सीट का चुनाव नहीं है बल्कि एक जाटों की अस्मिता का भी सवाल है।

जयंत कहते हैं कि तबस्सुम हसन को मुस्लिम समुदाय का पूरा वोट मिलेगा हम भाईचारा कायम करने के इम्तिहान में कामयाब होने के लिए यह चुनाव लड़ रहे हैं। इससे साबित हो जाएगा कि 2013 के सांप्रदायिक दंगों को भुलाकर जाट और मुसलमान एक बार फिर साथ आ गया है। जो उन दोनों की राजनीतिक ताकत रही है और जिसे चौधरी चरण सिंह ने स्थापित किया था।

फीका पड़ सकता है सांप्रदायिक ध्रुवीकरण  

दूसरी ओर भाजपा इस चुनाव को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के आधार पर जीतना चाहती है। यही वजह है कि शामली की रैली में खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कवाल कांड में मारे गये सचिन और गौरव की याद दिलाई। कुछ इसी तरह की बात भाजपा के अधिकांश नेता यहां कर रहे हैं लेकिन जाटों का रुझान बदलना उनके लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। इसी जाट रुझान ने 2014 के लोक सभा चुनाव ने भाजपा के पक्ष में माहौल बनाया था और 2017 के विधान सभा चुनाव में भी भाजपा को इसका फायदा मिला था। लेकिन जिस तरह से राजनीतिक नक्शे से आरएलडी का नाम गायब हुआ और आज उसका न कोई सांसद है और न ही विधायक है उसने जाटों के अंदर आरएलडी के लिए साफ्ट कार्नर पैदा किया है क्योंकि उनका मानना है कि राजनीतिक स्तर पर जाटों की धमक खत्म होती जा रही है।

बत्तीसा खाप के प्रमुख चौधरी सूरजमल कहते हैं की हमें पार्टी को जिंदा करना है और हर जाट आरएलडी को वोट करेगा। असल में भाजपा को भी इसका अहसास है और इसीलिए मुजफ्फरनगर से सांसद और पूर्व केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री संजीव बालियान को यहां बड़ा जिम्मा दिया गया है। वह कहते हैं कि मै कोई बड़ी मीटिंग तो नहीं कर रहा लेकिन सीधे परिवारों के बीच जा रहा हूं और भाजपा को जाट मतों का बड़ा हिस्सा मिलेगा। शुक्रवार 15 मई को उन्होंने शामली में बड़ी बैठक की और उसमें जाटों को बुलाया था। संजीव कहते हैं कि अब चुनाव तय हो चुका है और अब कैंपेन की बजाय सारा जोर वोट डलवाने का है। बात केवल संजीव तक नहीं है भाजपा में राज्य में जितने भी जाट विधायक और मंत्री हैं सबको यहां झौंक रखा है। इसी तरह दूसरी जातियों के विधायकों, सांसदों और मंत्रियों को भी इस चुनाव में लगाया हुआ है।

लेकिन पार्टी के एक बड़े नेता कहते हैं कि थानाभवन सीट से विधायक और राज्य में गन्ना विकास मंत्री सुरेश राणा से लोगों की नाराजगी है। इसका नुकसान होगा। हालांकि सुरेश राणा ने इस लेखक से बातचीत में कहा कि हमें विकास ने नाम पर वोट मिलेगा। हमने कानून व्यवस्था सुधार दी है और भले ही गन्ने का भुगतान अटका हुआ हो लेकिन हमने गन्ने की रिकार्ड पेराई कराई है और यह सुनिश्चित किया कि पूरा गन्ना कटने तक मिलें बंद न हो। हमें इसका फायदा इस चुनाव में मिलेगा। हालांकि वह स्वीकारते हैं कि चुनाव काफी पेचीदा है।

गठबंधन का इम्तिहान 

आरएलडी और सपा ने कैराना में जमीन पर एकुजट होकर काम किया है। सपा के जिला अध्यक्ष अशोक चौधरी कहते हैं कि जाटों और आएलडी के सामने तो चुनाव चिन्ह बचाने की चुनौती है। हम लोग जमीन पर मिलकर काम कर रहे हैं और यह चुनाव राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता व गठबंधऩ का बड़ा संदेश लेकर जाएगा। जो कर्नाटक के विधान सभा चुनावों के बाद कांग्रेस और जनता दल (एस) के गंठबंधन द्वारा भाजपा को रोकने का काम किया गया है यह उसी दिशा में 2019 के लिए एक बड़ी मिशाल बनने जा रहा है। चुनाव के दो दिन पहले तक लगातार दिलचस्प होते जा रहे इस चुनाव में भाजपा की तरह ही सपा के राज्य अध्यक्ष और तमाम विधायक व पदाधिकारी लगातार जुटे हुए हैं। एक तरह से यह एक लोक सभा उपचुनाव न होकर भाजपा और गठबंधन के बीच राज्य में पूरी ताकत दिखाने का मौका बन गया है।

गन्ने के बकाया, बिजली के बिल से परेशान किसान 

दिलचस्प बात यह है कि राज्य में करीब बारह हजार करोड़ रुपये का गन्ना भुगतान बकाया है। कैराना से लगने वाली सीट बागपत में प्रधानमंत्री इस चुनाव के एकदिन पहले 27 मई को ईस्टर्न पैरिफरल एक्सप्रेसवे के एक हिस्से का उद्घाटन करेंगे और वहां एक रैली को संबोधित करेंगे। आरएलडी के राज्य प्रभारी राजकुमार सांगवान कहते हैं कि हमने इस रैली को रोकने के लिए  चुनाव आयोग में शिकायत की है। आरएलडी की इस शिकायत का तो पता नहीं क्या होगा लेकिन इस रैली के एक दिन पहले 26 मई शनिवार को बागपत जिले की बड़ौत तहसील में एक गन्ना किसान की मौत हो गई। कहा जा रहा है कि वह वहां गन्ना भुगतान के लिए चल रहे धऱने पर आया था।

किसान की इस मौत ने यहां राजनीतिक माहौल गरमा दिया है क्योंकि किसानों इस किसान के शव को धरना स्थल पर रखकर प्रदर्शन किया। ऐसे  में गन्ना की समस्या का मुद्दा राज्य की योगी और केंद्र की मोदी सरकार का पीछा नहीं छोड़ रहा है। अहम बात यह है कि प्रधानमंत्री राज्य विधान सभा चुनावों की रैलियों में कहा था कि चौधरी चरण सिंह गन्ना मूल्य भुगतान योजना लागू की जाएगी और किसानों को14 दिन में भुगतान किया जाएगा। लेकिन यह दावा अब उन पर भारी पड़ रहा है और किसानों की नाराजगी को देखते हुए कैराना चुनाव में इसका असर पड़ना तय है जो किसी जाति और धर्म के बंधन को भी तोड़ने का काम कर सकता है। ऐसे में कैराना का नतीजा भाजपा को भारी पड़ सकता है।

 

 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad