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नीतीश के इस्तीफे के बाद असली सस्पेंस बाकी, भाजपा देगी समर्थन या टूटेगी नीतीश की पार्टी!

बिहार में चल रहे सियासी घमासान ने आज अप्रत्याशित मोड़ ले लिया। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर इस्तीफे का दबाव काम न आया तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद ही इस्तीफा दे दिया है।
नीतीश के इस्तीफे के बाद असली सस्पेंस बाकी, भाजपा देगी समर्थन या टूटेगी नीतीश की पार्टी!

करीब 20 महीने पहले भाजपा की प्रचंड लहर को करारी मात देने वाले महागठबंधन के लिए यह करारा झटका है, जिससे उसका बिखरना तय है। लेकिन असली सस्पेंस अभी बाकी है। बड़ा सवाल यह है कि क्या भाजपा नीतीश कुमार को समर्थन देगा या फिर लालू प्रसाद यादव महागठबंधन को बचाए रखने के लिए नीतीश सरकार को बाहर से समर्थन देने का दांव चल सकते हैं।

नीतीश कुमार के इस्तीफे के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह उनका स्वागत किया, उसके गहरे सियासी मायने तलाशे जा रहे हैं। बिहार भाजपा के नेता सुशील मोदी पहले ही संकेत दे चुके हैं कि अगर नीतीश लालू से नाता तोड़ते हैं तो भाजपा उन्हें समर्थन दे सकती है।

बहुमत का गणित 

राष्ट्रपति चुनाव के वक्त की महागठबंधन और विपक्षी एकता को तगड़ा झटका देने वाले नीतीश कुमार का यह कदम जितना अप्रत्याशित है, उतना ही राजनैतिक अनिश्चितता पैदा करने वाला है। फिलहाल 243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार की जदयू के 71, लालू यादव की राजग के 80 और कांग्रेस के 27 विधायक हैं। जबकि एनडीए में शामिल दलों के पास कुल 57 सीटें हैं। जीतनराम मांझी के एक और भाकपा माले के तीन विधायकों के अलावा चार निर्दलीय विधायक भी हैं। भाजपा के समर्थन से नीतीश कुमार आसानी सरकार बना सकते हैं लेकिन एक संभावना यह भी है कि महागठबंधन को बचाने के लिए लालू प्रसाद यादव उन्हें बाहर से समर्थन दें। हालांकि, नीतीश के इस्तीफे के बाद लालू प्रसाद यादव ने जिस तरीके से उनके खिलाफ जुबानी वार किए हैं, महागठबंधन का टूटना अब महज औपचारिकता रह गया है।

सुशासन की छवि पर नीतीश का बड़ा दांव

लालू प्रसाद यादव के परिवार के लोगों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को मुद्दा बनाकर इस्तीफा देने से नीतीश कुमार की 'सुशासन बाबू' की छवि मजबूत होगी। माना यह भी जा रहा है कि अपने इस दांव के बूत नीतीश सरकार गिराकर अपने बूते चुनाव में जाने का फैसला कर सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो बिहार में कुछ महीने राष्ट्रपति शासन और फिर से चुनाव होंगे।

नीतीश की पार्टी में न लग जाए सेंध

बिहार में मचे सियासी उथल-पुथल में फिलहाल सारी बाजी नीतीश कुमार के हाथ में दिखाई पड़ रही है। लेकिन एक हल्की-सी संभावना यह भी है कि अगर महागठबंधन को बचाने के मुद्दे पर शरद यादव नीतीश कुमार से किनारा कर लालू के पाले में आते हैं तो जदयू के कई मुस्लिम और यादव विधायक, जिनकी संख्या करीब 20 बताई जा रही है, बगावत कर सकते हैं। राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की उम्मीदवार मीरा कुमार को मिले 109 विधायकों के समर्थन के आधार पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजग-कांग्रेस गठबंधन को बहुमत से सिर्फ 13 विधायकों की जरूरत है।

 

 

 

 

 

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