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बस्तर के 1, 200 किसानों की कम्पनी जिनके कैफे में मिलता है ऑर्गेनिक पिज्जा और सैंडविच

छत्तीसगढ़ स्थित बस्तर का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में नक्सलग्रस्त इलाके की खौफनाक छवि बनने लगती है।...
बस्तर के 1, 200 किसानों की कम्पनी जिनके कैफे में मिलता है ऑर्गेनिक पिज्जा और सैंडविच

छत्तीसगढ़ स्थित बस्तर का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में नक्सलग्रस्त इलाके की खौफनाक छवि बनने लगती है। लेकिन अब बदलते बस्तर के दंतेवाड़ा जिले में किसानों ने कमाल का कैफे खोला है। आदिवासी अंचल के इस कैफे की दीवारों से लेकर चाय की चुस्कियों तक सब ऑर्गेनिक है। यहां तक कि इस कैफे में आर्गेनिक पिज्जा भी मिलता है।

दरअसल, क्षेत्र के 1, 200 से अधिक किसान ‘भूमगादी’ नाम की कंपनी चला रहे हैं। यह कंपनी जहां अपने उत्पादों को ‘आदिम’ ब्रांड के नाम से बेच रही है, वहीं दंतेवाड़ा शहर में ‘जैविक कैफे’ में एक अलग जायका भी उपलब्ध करा रही है। कंपनी के सीईओ आकाश बड़ावे का कहना है कि अक्सर पारंपरिक व्यंजनों को आधुनिक रेस्तरां और कैफे के मेन्यू कार्ड में रखना मुश्किल होता है। लेकिन क्या होगा यदि लोकप्रिय और आधुनिक व्यंजनों को जैविक, पौष्टिक और देसी सामग्री के साथ नया मोड़ दिया जाए?

 

अंदाज आधुनिक, स्वाद देसी

कैफे की कर्मचारी सीमा विश्वास बताती हैं, “हमारे पिज्जा की खासियत यह है कि इसका बेस हम ऑर्गेनिक रेड राइस के आटे से तैयार करते हैं। स्वाद में कहीं भी यह कमतर नहीं होता बल्कि यह सेहतमंद भी होता है। इस रेड राइस को यहीं के किसान उगाते हैं। यानी हमने स्वाद के साथ-साथ स्वास्थ्य का भी ख्याल रखा है।”

 

ऑर्गेनिक पिज्जा के अलावा और भी बहुत कुछ....

भूमगादी के सीईओ आकाश बड़ावे बताते हैं कि कैफे के मेन्यू पर रेड राइस पिज्जा के अलावा रेड राइस डोसा, ब्राउन राइस पनीर अप्पम, बाजरा सैंडविच जैसे कई व्यंजन मिलते हैं। वे आगे कहते हैं कि परंपरागत और जंगली सब्जियां जो दंतेवाड़ा के आदिवासी समुदायों द्वारा खाया जाता है उसकी भी सेवा और लोकप्रियता के लिए कोशिश की जा रही है।

 

दीवारों पर भी बस्तर का जायका

यहां न सिर्फ खाने की थाली तक बस्तर की खुशबू सिमटी है बल्कि कैफे की दीवारों और साज-सज्जा पर भी यहां की परंपरा और आधुनिकता का मिला-जुला स्वरूप दिखाई देता है। बड़ावे ने बताया कि दीवार बनाने में यहां पाए जाने वाले विशेष पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। इसकी वजह से कैफे के भीतर ठण्डक बनी रहती है। दीवारों पर लगी पेंटिग्स से लेकर कुर्सियों तक आदिवासी कलाकृतियों का नमूना देखा जा सकता है।

 

हमें उत्पादकता में नहीं जाना बल्कि उत्पाद को बेहतर बनाना है: कलेक्टर

किसानों की यह कंपनी मुख्य रूप से परंपरागत चावलों की बिक्री कर रही है। इसमें मेहेर तथा गुड़मा जैसी परंपरागत प्रजातियां भी होंगी। इन्हें औषधीय राइस के रूप में स्थानीय लोग उपयोग करते हैं। इसी तरह हरदी घाटी, टूटी सफरी और राखी जैसी रेड राइस भी हैं जो औषधीय गुण्‍ा से युक्‍त हैं।

दंतेवाड़ा के कलेक्टर सौरभ कुमार ने बताया कि किसानों को उत्पादन से लेकर, प्रसंस्करण, मार्केटिंग और विपणन जैसे सभी क्षेत्रों में सहायता दी जा रही है। जैविक पद्धति से खेती के प्रशिक्षण पर विशेष जोर दिया जा रहा है। जैविक खेती के संबंध में व्यापक जागरूकता अभियान फैलाकर संपूर्ण जैविक जिला बनाने की दिशा में काम हो रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा, “हमको उत्पादकता में नहीं जाना है बल्कि अपने उत्पाद को बेहतर बनाना है। यह कैफे भी इसी का नतीजा है।”

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