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मां के दूध का 'बैंक' बनाकर सभी नवजात शिशुओं को 'अमृतपान' कराने का प्रयास

अस्पतालों में अनूठे बैंक खुलने से हर बच्चे को मां का दूध मिलेगा तो जीवन की स्वस्थ शुरूआत होगी रुचिका...
मां के दूध का 'बैंक' बनाकर सभी नवजात शिशुओं को 'अमृतपान' कराने का प्रयास

अस्पतालों में अनूठे बैंक खुलने से हर बच्चे को मां का दूध मिलेगा तो जीवन की स्वस्थ शुरूआत होगी

रुचिका चुग सचदेवा

बच्चों के जीवन पर मां के दूध का सबसे अच्छा असर पड़ता है। कम समय में जन्मे और जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों के लिए मां का दूध बहुत अनिवार्य होता है। मां का दूध न मिलने से शिशुओं को बीमारी का ज्यादा खतरा होता है और बीमारी होने पर मौत भी हो सकती है। इसके बावजूद तमाम शिशुओं को मां का दूध नहीं मिल पाता है। कभी-कभी बच्चे मां का दूध पीने में अक्षम रहते हैं या फिर मां के स्तनों में दूध नहीं उतरता है। इसके अलावा बच्चे को मां से दूर करके आइसीयू में रखने, बच्चे को छोड़ने या मां की बीमारी अथवा मौत की स्थिति में भी बच्चों को मां का दूध नहीं मिल पाता है। मां के दूध को निकालने और स्टोर करने की सुविधाएं न होेने से भी यह समस्या होती है। जिन बच्चों को मां का दूध नहीं मिल पाता है, उन्हें वैकल्पिक रूप से मां का दूध सुलभ कराने के लिए ह्यूमन ब्रेस्ट मिल्क बैंक सबसे उपयुक्त माध्यम है। हमारे डाटा से पता चलता है कि नवजात आइसीयू में भर्ती शिशुओं में से 30-50 फीसदी और सभी शिशुओं में 10-20 फीसदी को मां का दूध सुलभ नहीं है। जब मां के दूध की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता है, ऐसे में हम इन सभी बच्चों को मां का दूध कैसे सुलभ करवाते हैं।

ह्यूमन मिल्क बैंक- एक प्रभावी पहल

ह्यूमन मिल्क बैंक (एचएमबी) दुग्धपान करवाने वाली महिलाओं को जोड़ते हैं। उनका दूध एकत्रित करते हैं, इसके बाद प्रोसेसिंग, स्टोरेज के बाद जरूरतमंद शिशिओं को सुलभ कराते हैं। कई वर्षों तक इस पर काम करने के बाद हमने महसूस किया कि मां का दूध एकत्रित करने और वितरित करने के अकेले मॉडल पर फोकस करने के बजाय समग्र दृष्टिकोण का शिशुओं की पौष्टिकता और स्वास्थ्य पर ज्यादा अच्छा असर पड़ता है। समग्र दृष्टिकोण के तहत मिल्क बैंक अस्पतालों में स्तनपान केंद्र के तौर पर काम करते हैं। अस्पताल माताओं को स्तनपान कराने, मिल्क बैंकिंग सेवाएं संचालित करने में मदद करते हैं और माताओं और परिवारों को कंगारू मिल्क केयर (बच्चे को सीने से चिपकाकर दूध पिलाने) के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

राजस्थान के बाड़मेर में स्तनपान कराती आदिवासी महिला

सायन हॉस्पीटल, मुंबई और गैर सरकारी संगठन पीएटीएच (पथ) के संयुक्त आंकलन से पता चलता है कि इंटीग्रेटेड मिल्क बैंकिंग मॉडल लागू करने से पहली बार आहार के तौर पर स्तनपान पाने वाले बच्चों का अनुपात 51.1 फीसदी से बढ़कर 67.3 फीसदी हो गया और सिर्फ स्तनपान करने वाले बच्चों का भी अनुपात 44 फीसदी से बढ़कर 65 फीसदी हो गया। कम वजन के साथ पैदा होने वाले और पहले दिन स्तनपान करने वाले बच्चों को अनुपात 3 फीसदी से बढ़कर 30 फीसदी हो गया जबकि सिर्फ स्तनपान करने वाले बच्चों का अनुपात 49 फीसदी से बढ़कर 74 फीसदी हो गया। कंगारू मिल्क केयर का अनुपात 33 फीसदी बढ़ गया।

ह्यूमन मिल्क बैंक सर्विस

देश में इस समय 60 से ज्यादा ह्यूमन मिल्क बैंक काम कर रहे हैं। लेकिन देश में मां के दूध की मांग को देखते हुए ये पर्याप्त नहीं हैं। 2017 में जन स्वास्थ्य सुविधाओं के तहत दुग्धपान प्रबंधन के लिए जारी नेशनल गाइडलाइन से इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता पता चलती है। राष्ट्रीय स्तनपान कार्यक्रम मदर्स एब्सोल्यूट अफेक्शन (एमएए यानी मां) के तहत सरकार ने इंटीग्रेटेड ह्यमन मिल्क बैंक जिन्हें स्तनपान प्रबंधन केंद्र भी कहते हैं, स्थापित करने का प्रस्ताव किया है। बहुउद्देश्यीय कार्यक्रम के तहत स्तनपान प्रबंधन केंद्र और इसके लिए सपोर्ट यूनिट सैकंडरी और प्राइमरी स्तर के स्वास्थ्य केंद्रों पर स्थापित पर जोर दिया गया है जिससे प्रत्येक बच्चे को मां का दूध मिल सके।

जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य और पोषण की राह पर

अमेरिकी एनजीओ पथ दुनिया भर में नवजात शिशुओं के पोषण और देखभाल के लिए काम कर रहा है। हमने भारत सरकार को नेशनल गाइडलाइन तैयार करने में तकनीकी सहायता दी है और अब हम तमाम राज्यों में स्वास्थ्य सुविधाएं शुरू करने के लिए सहायता कर रहे हैं। स्तनपान, ह्यूमन मिल्क बैंकिंग, कंगारू मदर केयर सर्विस सुचारु रूप से पहुंचाने के लिए पथ सक्रियता के साथ काम कर रहा है।

https://youtu.be/lT-CckDTeZg

पिछले एक साल में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए पथ के सहयोग के कारण चार राज्यों में आठ केंद्रों के जरिये 30,504 मां-शिशु जोड़ों और 61,008 परिवारों तक सुविधाएं पहुंची हैं। दुग्ध संग्रह 1416 लीटर हो गया है और 2228 बीमार बच्चों को इसका फायदा मिला है। इनमें से 80 फीसदी बच्चों को जन्म के चार घंटे के भीतर मां का दूध मिल गया। 72 फीसदी माताएं बच्चे के जन्म के 24 घंटे के भीतर जनजात आइसीयू में अपने बच्चे को दूध पिलाने में सक्षम हो गईं। कम वजन वाले 87.5 फीसदी बच्चों को मां का दूध मिल गया।

राजस्थान की सफल कहानी

राजस्थान में नवजात शिशुओं की मृत्यु होने की दर राष्ट्रीय अनुपात से कहीं ज्यादा है। वहां 17 जिला अस्पतालों और दो मेडिकल कॉलेजों में इंटीग्रेटेड ह्यूमन मिल्क बैंक स्थापित किए गए। इस तरह के पांच अस्पताल आदिवासी जिलों में स्थित होने के कारण स्तनपान और मिल्क डोनेशन सेवाएं ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में पहुंच गईं। मिल्क बैंकों के बारे में पथ का स्वतंत्र आंकलन है कि पांच बैंकों में दूध की उपलब्धता मांग से भी ज्यादा हो गई। सितंबर 2016 से सितंबर 2019 के बीच कुल 66,214 माताओं ने 15,357 लीटर का योगदान दिया जिससे 46,721 अबोध बच्चों को फायदा मिला।

लगभग सभी केंद्रो के आसपास परामर्शदाता माताओं को बच्चों को स्तनपान कराने के लिए प्रेरित करते हैं। कंपार्टमेंट के रूप में लेबर रूम होने और यशोदाओं की सहायता अथवा जन्म के समय सहायिका मौजूद होने से डिलीवरी के तुरंत बाद बच्चे को स्तनपान कराना सुनिश्चित हो गया। अधिकांंश केंद्रों में माताओं को तभी डिस्चार्ज किया जाता है जब वे पूरी तरह स्तनपान करवाने लगें ताकि बच्चों को गाय का दूध या कोई अन्य दूध देने की आवश्यकता न पड़े।

महाराष्ट्र में भी इंटीग्रेटेड ह्यूमन मिल्क बैंकों की संख्या बढ़ाई जा रही है। मुंबई के सायन अस्पताल में पथ की मदद से जोनल रेफरेंस सेंटर स्थापित किया गया है जो नए केंद्र स्थापित करने और मौजूदा केंद्रों को दुरुस्त करने के लिए सहायता देते हैं। ह्यूमन मिल्क बैंकों में क्वालिटी सुनिश्चित करने के लिए देश के सभी क्षेत्रों में जोनल रेफरेंस सेंटर स्थापित करने की योजना बनाई जा रही है।

दूसरे देशों में विस्तार

ब्राजील में संपन्न हुए 11वें ब्रिक्स सम्मेलन में ब्राजील, भारत, रूस, चीन और दक्षिण एशिया ह्यूमन मिल्क बैंकों का ब्रिक्स नेटवर्क स्थापित करने पर सहमत हुए हैं। यह एक बड़ा अवसर है क्योंकि भारत सरकार ने 2025 तक कम से कम 70 फीसदी बच्चों को स्तनपान सुनिश्चित करने की योजना बनाई है।   

इंटीग्रेटेड मिल्क बैंक का विस्तार करने की बहुत संभावनाएं हैं। सरकारी अस्पातालों में 142.6 लाख जच्चा-बच्चा और प्राइवेट अस्पालों में 104.7 लाख जच्चा-बच्चा को दुग्धपान सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा गया है। यह समन्वित और व्यवस्थित प्रयासों से ही हासिल किया जा सकता है। इसका असर काफी व्यापक होगा। हजारों बच्चों का जीवन बचाया जा सकेगा और स्थाई विकास लक्ष्य हासिल किए जा सकेंगे।

(लेखक एनजीओ पथ इंडिया में मातृत्व, नवजात, बाल स्वास्थ्य और पोषण के क्षेत्र में उप निदेशक हैं)

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