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भारत में रोजाना 3.5 करोड़ लोग पड़ते हैं बीमार: अध्ययन

भारत बीमार कैसे पड़ता है? यह कोई एेसा सवाल नहीं है, जो धर्मनिरपेक्षता या असहिष्णुता पर बहस चाह रहा हो। यह तो एक एेसा वास्तविक प्रश्न है, जिसे लेकर शोधकर्ता चकराए हुए हैं।
भारत में रोजाना 3.5 करोड़ लोग पड़ते हैं बीमार: अध्ययन

दिलचस्प बात यह है कि इस संदर्भ में सिर्फ अटकलें ही लगाई जाती हैं और अच्छी तरह शोध करके किए गए अध्ययन कभी नहीं हुए। अब एक चिकित्सक द्वारा प्रमाणित किए गए डाटाबेस के शुरुआती नतीजों से भारत को बीमार करने वाले कारकों पर नई रोशनी डाली जा रही है। एेसा लगता है कि भारत की जहरीली हवा के कारण कई भारतीयों को सांस लेने से जुड़ी समस्याएं हो रही हैं।

जब इस महत्वपूर्ण अध्ययन का आकलन किया गया तो पाया गया कि किसी एक दिन में लगभग 3.5 करोड़ लोग डाॅक्टर के पास जाते हैं। तुलनात्मक तौर पर इस संख्या को देखा जाए तो यह कनाडा की पूरी जनसंख्या के बराबर है या फिर इसे भारत के चारों मेटो शहराें- नयी दिल्ली, मुंबई, बेंगलूरू और चेन्नई की सम्मिलित जनसंख्या के रूप में देखा जा सकता है। पुणे के चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन में कार्यरत प्रमुख शोधकर्ता संदीप साल्वी ने कहा, भारत में बीमार लोगों की यह संख्या चौंका देने वाली है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि वर्ष 2015 में दुनिया की 7.5 अरब जनसंख्या में से 1.2 अरब लोग भारत में रहते हैं। विश्व भर में होने वाली सभी मौतों में से लगभग 18 प्रतिशत मौतें और डिसेबिलिटी-एडजस्टेड लाइफ ईयर्स के कारण होने वाले वैश्विक नुकसान का 20 प्रतिशत भारत में होता है। इन आंकड़ों ने भारत को उन देशों में से एक बना दिया है, जिनके कारण विश्व पर बीमारियों का बोझ सबसे ज्यादा पड़ता है। भारत में मौतों और अस्वस्थता के प्रमुख कारणों में गैर-संक्रामक रोगों ने संक्रामक रोगों की जगह ले ली है। डिसेबिलिटी-एडजस्टेड लाइफ ईयर्स का अर्थ खराब सेहत, निशक्तता और समयपूर्व मृत्यु के कारण हुआ नुकसान है, जिसे वर्षों में आंका जाता है।

नए अध्ययन में पाया गया कि आधे से ज्यादा भारत सांस और फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों से जूझ रहा है। निश्चित तौर पर यह संख्या चौंका देने वाली है। हालांकि भारत में अंदर और बाहर के वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर को देखा जाए तो यह सही साबित हो सकता है। हाल में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी कुछ एेसी ही बात कही थी। उन्होंने कहा था, पर्यावरण में होने वाले वायु प्रदूषण के कारण बच्चों में सांस संबंधी बीमारियां होती हैं। आम तौर पर वायु प्रदूषण सांस संबंधी बीमारियां पैदा करता है और इससे फेफड़े के काम करने पर असर पड़ सकता है।

दमा, फेफड़ों के काम को लंबे समय से बाधित करने वाली बीमारी, दीर्घकालिक ब्राेंकाइटिस आदि कुछ एेसी बीमारियां हैं, जो कि बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण होती हैं। वायु प्रदूषण श्वसन संबंधी और दय संबंधी बीमारियों को बिगाड़ने वाले प्रमुख कारकों में से एक है। साल्वी सांस संबंधी बीमारियों की प्रमुख वजह उस वायु की खराब गुणवत्ता को बताते हैं, जिसमें हम सांस लेते हैं।

इस अध्ययन में नई दिल्ली के इंस्टीट्यूट आॅफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटेड बायोलाॅजी और पुणे के चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन के वैज्ञानिकों के एक दल ने उन दो लाख से ज्यादा शहरी मरीजों का करीबी परीक्षण किया, जो किसी एक दिन में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के पास गए थे। अध्ययन में पाया गया कि आधे से ज्यादा मरीज फेफड़ों और सांस से जुड़ी बीमारियों के कारण यहां आए थे।

इस अध्ययन के अनुसार, जिन अन्य आम बीमारियों की शिकायत लेकर लोग आए थे, वे पाचनतंत्र संबंधी (25 प्रतिशत), रक्त संचार संबंधी (12.5 प्रतिशत), त्वचा संबंधी (नौ प्रतिशत) और अंत:स्रावी संबंधी समस्या (6.6 प्रतिशत), हाइपरटेंशन (14.52 प्रतिशत), सांस की नली में संकुचन (14.51 प्रतिशत) और उपरी श्वसन तंत्रा संक्रमण (12.9 प्रतिशत) संबंधी थीं।

 

 

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