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AMU विवाद में जिन्हें सिर्फ 'हिंदू राजा' बताया जा रहा है, उन्हें जान लेंगे तो ऐसा कहना छोड़ देंगे

‘’ये तस्वीरें हैं राजा महेंद्र प्रताप सिंह जी की, जिन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को हजारों...
AMU विवाद में जिन्हें सिर्फ 'हिंदू राजा' बताया जा रहा है, उन्हें जान लेंगे तो ऐसा कहना छोड़ देंगे

‘’ये तस्वीरें हैं राजा महेंद्र प्रताप सिंह जी की, जिन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को हजारों एकड़ जमीन मुफ्त दी थी। आज यूनिवर्सिटी में इनकी कोई तस्वीर नहीं, कोई नामलेवा नहीं।’’

ये वो मैसेज है, जो जिन्ना तस्वीर विवाद के साथ पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया पर दौड़ रहा है। साथ ही राजा महेंद्र प्रताप सिंह को ‘हिंदू’ राजा के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है। क्या सोशल मीडिया पर चल रहा ये मैसेज सही है? आजकल व्हाट्सएप से इस तरह का बहुत सारा 'ज्ञान' लोगों तक पहुंचता है, जिसे लोग पूरे आत्मविश्वास के साथ 'फॉरवर्ड' करते हैं।

हाल ही में राजा महेंद्र प्रताप सिंह की जयंती पर भी एक विवाद हुआ था। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (एबीवीपी) राजा महेंद्र प्रताप सिंह की जयंती एएमयू के गेट पर मनाने के लिए अड़ गया था। एबीवीपी का कहना था कि एएमयू के लिए राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने अपनी जमीन दान दी थी और उनकी जयंती मनाई जानी चाहिए।

हालांकि, महेंद्र प्रताप सिंह को सिर्फ ‘हिंदू राजा’ के तौर पर सीमित कर उनके दूसरे पक्षों को चालाकी से छिपा दिया गया है। उनके जीवन, आजादी में योगदान, समाज के लिए किए गए कामों को जानने वाला कोई भी शख्स उन्हें सिर्फ धार्मिक पहचान तक सीमित नहीं करेगा। वह भी नफरत की राजनीति को चमकाने के लिए, जिसका उन्होंने कभी समर्थन नहीं किया।

पहले उनके बारे में आपको तफ्सील से बताते हैं, फिर सोशल मीडिया के मैसेज की पड़ताल करेंगे।

हाथरस स्टेट के राजा थे महेंद्र प्रताप

हाथरस कई बातों के लिए जाना जाता है। मशहूर कवि काका हाथरसी, वहां की हींग, घी, रबड़ी वगैरह लेकिन एक नाम है, जिससे कम लोग वाकिफ हैं। एक बड़े आंदोलनकारी, समाजसेवी, विचारक और नेता राजा महेंद्र प्रताप। 

हाथरस स्टेट के राजा हरनारायण सिंह ने मुरसान के राजा घनश्याम सिंह के तीसरे पुत्र महेन्द्र प्रताप को गोद लिया था। यानी महेन्द्र प्रताप मुरसान स्टेट को छोड़कर हाथरस के राजा बने। महेन्द्र प्रताप का जन्म 1 दिसम्बर, 1886 को हुआ था। हाथरस स्टेट का वृन्दावन में भव्य महल है, जिसमें महेन्द्र प्रताप का बचपन बीता। अलीगढ़ में सर सैयद खां द्वारा स्थापित स्कूल में उन्होंने बीए तक पढ़ाई की, लेकिन पारिवारिक वजहों से पढ़ाई बीच में छूट गई। उनकी शादी जींद स्टेट की राजकुमारी से संगरूर में हुई थी। 1909 में दोनों को एक बेटी हुई, जिसका नाम रखा गया- भक्ति। इसके बाद 1913 में एक बेटा हुआ, जिसे ‘प्रेम’ कहा गया। 

राजनीति में थी दिलचस्पी

महेंद्र प्रताप का झुकाव राजनीति की तरफ रहा। जींद रियासत के राजा और उनके ससुर इस बात से चिढ़ते थे। 1906 में कलकत्ता में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन था। इसमें उन्होंने अपने ससुर के खिलाफ जाकर हिस्सा लिया।

स्थापित किया प्रेम महाविद्यालय, महात्मा गांधी ने की थी तारीफ

राजा महेंद्र प्रताप हिन्दू-मुस्लिम धर्म की बजाय एक अलग 'प्रेम धर्म' में यकीन रखते थे। 1909 में वृन्दावन में उन्होंने ‘प्रेम महाविद्यालय’ की स्थापना की, जो तकनीकी शिक्षा के लिए भारत का पहला केंद्र था। बीएचयू के संस्थापक मदन मोहन मालवीय इसके उद्घाटन में शामिल हुए थे। इस बात से महात्मा गांधी भी प्रभावित हुए थे और उन्होंने अपने अखबार 'यंग इंडिया' में भी उनकी तारीफ की थी।

बड़े स्तर पर जमीनें दान कीं

राजा महेंद्र प्रताप ने एक ट्रस्ट का गठन किया था। उन्होंने अपने स्टेट के पांच गांव, वृन्दावन का महल और कई चल-अचल संपत्ति दान कर दी। यही नहीं, वृन्दावन में ही एक बड़ा बागीचा था, जो 80 एकड़ में फैला हुआ था। इसे उन्होंने 1911 में आर्य प्रतिनिधि सभा, उत्तर प्रदेश को दान में दे दिया। यहां आर्य समाज गुरुकुल और राष्ट्रीय विश्वविद्यालय है।

मार्क्सवादी विचारों से थे प्रभावित

राजा महेंद्र प्रताप पर मार्क्सवादी विचारों का असर था। उन्होंने रूस में लेनिन से मुलाकात भी की थी। सीपीआई (एमएल) नेता कविता कृष्णन कहती हैं, 'उन्होंने ‘प्रेम धर्म’ के प्रचार के लिए अपना नाम 'पीटर पीर प्रताप' रखा था और वह एक मार्क्सवादी प्रगतिशील थे।'

अफगानिस्तान में की अस्थाई सरकार की घोषणा

राजा महेंद्र प्रताप ने अपने तरीके से आजादी की लड़ाई भी लड़ी। वह देहरादून से 'निर्बल सेवक' नाम का अखबार निकालते थे। महेंद्र प्रताप ने आजादी की लड़ाई में सहयोग जुटाने के लिए जर्मनी से लेकर बुडापेस्ट, बल्गारिया, टर्की की यात्राएं कीं। प्रथम विश्वयुद्ध को वह एक मौका मान रहे थे, जब इंग्लैंड की विरोधी शक्तियों से हाथ मिलाकर भारत को गुलामी से मुक्ति दिलाई जा सके। यही काम बहुत बाद में जाकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने किया था।

इसी सिलसिले में उन्होंने अफगान के बादशाह से मुलाकात की और वहीं से 1 दिसम्बर, 1915 को काबुल से भारत के लिए अस्थाई सरकार की घोषणा की। इस सरकार में वह खुद राष्ट्रपति बने और मौलाना बरकतुल्ला खां प्रधानमंत्री बने। अफगानिस्तान ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था। महेंद्र प्रताप ने रूस की यात्रा की और रूसी क्रांति के अगुआ लेनिन से मिले पर लेनिन ने उनकी कोई सहायता नहीं की। वह 1920 से 1946 तक विदेशों में भ्रमण करते रहे। 1946 में जब वह भारत लौटे तो सरदार पटेल की बेटी मणिबेन उनको रिसीव करने कलकत्ता हवाई अड्डे गईं।

चलाए कई समाज सुधार के अभियान

महेंद्र प्रताप ने छुआछूत और विदेशी वस्त्रों के खिलाफ अभियान भी चलाया था। उन्होंने हर वर्ग के लोगों को साथ लाने के लिए अल्मोड़ा में कथित 'नीची' जाति के परिवार के घर में खाना खाया। आज दलितों के साथ खाना एक राजनीति स्टंट बन चुका है लेकिन तब ऐसे स्टंट नहीं होते थे।

नोबेल पुरस्कार के लिए किया गया नॉमिनेट

ये बात कम लोग जानते हैं कि प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार के लिए महेंद्र प्रताप को नॉमिनेट किया गया था। लेकिन उस साल किसी को भी नोबेल पुरस्कार नहीं दिया गया। सारी पुरस्कार राशि किसी स्पेशल फंड में दे दी गई। 

जब उन्होंने अटल को हराया

महेंद्र प्रताप 1952 में मथुरा से निर्दलीय सांसद बने और 1957 में फिर से अटल बिहारी वाजपेयी को हराकर निर्दलीय सांसद चुने गए। तब अटल की उम्र लगभग 33 साल थी। बाद में 1962 के आम चुनाव में महेंद्र प्रताप अलीगढ़ से चुनावी मैदान में आए। जनसंघ ने उनके खिलाफ अपना प्रत्याशी उतारा था लेकिन महेंद्र प्रताप चुनाव जीत गए थे।

इतिहासकार और लेखक इरफान हबीब बताते हैं कि वह 1962 के चुनावों में महेंद्र प्रताप के साथ काम कर चुके हैं और वह सर्वधर्म सद्भाव की बात करने वाले इंसान थे। बाद में भी महेंद्र प्रताप पंचायती राज कानून, किसानों और स्वतंत्रता सेनानियों के लिए लड़ते रहे। 26 अप्रैल, 1979 को वह इस दुनिया से चले गए।

एएमयू में लगी है राजा महेंद्र प्रताप की तस्वीर

जहां तक एएमयू को जमीन देने का विवाद है, उन्होंने 1929 में 3.04 एकड़ जमीन इस यूनिवर्सिटी को दी थी। यह जमीन यूनिवर्सिटी के सिटी स्कूल के पास है, जहां स्कूल का प्लेग्राउंड है। ऐसा नहीं है कि आज एएमयू ने उन्हें भुला दिया है। एएमयू के प्रवक्ता शाफे किदवई बताते हैं कि यूनिवर्सिटी की मौलाना आजाद लाइब्रेरी में आज भी उनकी तस्वीर लगी हुई है और उसके नीचे उनके योगदान को बताता हुआ एक बोर्ड लगा है।यानी, सोशल मीडिया में जो दावा किया जा रहा है कि एएमयू में उनकी कोई तस्वीर नहीं है, यह गलत है और सरासर झूठा प्रचार है।

गुमनाम रह गए राजा महेंद्र प्रताप

जिस तरह राजा महेंद्र प्रताप के नाम पर झूठ के सहारे आज नफरत की राजनीति चमकाई जा रही है, वह ऐसी सांप्रदायिक राजनीति के सख्त खिलाफ थे। जो लोग सिर्फ हिंदू धर्म का नाम लेकर उन्हें जिन्ना के सामने खड़ा कर रहे हैं, उन्हें अगर पता चले कि राजा महेंद्र प्रताप ऐसी राजनीति को सिरे से नकार चुके थे, तब क्या यही लोग उनका नाम लेना छोड़ देंगे?

राजा महेंद्र प्रताप को आज भी वह श्रेय नहीं मिल पाया है, जो मिलना चाहिए था। बेहतर हो कि सिर्फ विवाद खड़ा करने के लिए उनका नाम न लिया जाए बल्कि उनके योगदान और विचारों को लोगों तक पहुंचाया जाए। ये इस देश की जिम्मेदारी बनती है।

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