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मैगज़ीन डिटेल

पांच साल पर सवाल जरूरी

चुनाव में राष्ट्रभक्ति जैसे भावनात्मक मुद्दे नहीं, पांच साल के कार्यकाल का लेखा-जोखा सामने रखना चाहिए। उसी पर वोट मांगना चाहिए और लोगों को उसी आधार पर वोट देना चाहिए। वैसे भी राष्ट्रभक्ति पर किसी का कब्जा नहीं होता

राष्ट्रवाद के ज्वार की सियासत

पाकिस्तान से तनाव तो घटा लेकिन आम चुनावों के मद्देनजर राष्ट्रवाद पर नई जंग हुई शुरू

सरहद पार करने की हिमाकत फिर न करे

इस ऐलान के लिए पाकिस्तान के भीतर निशाने मारने से बेहतर और भला क्या हो सकता था

सुलगते चिनारों का खतरनाक पैगाम

पुलवामा के बाद बढ़ा फिदायीन हमलों का खतरा, मुठभेड़ों में ज्यादा नुकसान से सुरक्षा बलों की चिंताएं बढ़ीं

बादल अभी छंटे नहीं

पाकिस्तानी सीमा के अंदर हवाई हमले से 'नजरिए में बड़ा बदलाव', कूटनीतिक स्तर पर पाकिस्तान घिरा

बालाकोट हमला और मसूद

पश्चिमी देशों से मिली खुफिया सूचनाओं के बावजूद जैश सरगना को लेकर तस्वीर साफ नहीं

फिर कश्मीर बीच बहस में

हवाई संघर्ष के बाद अब भारत को उठाने होंगे सधे कूटनीतिक कदम

मीडिया का पतन

इन दिनों मीडिया जनता को सच्‍चाई बताने की जगह ताकत और घृणा की भाषा के जरिए बदलाखोर बना रहा

गणित साफ पर रुझान अस्पष्ट

गठबंधनों और ‌जातिगत समीकरण तो साफ, मगर नए माहौल में हर पार्टी अपने-अपने दांव आजमा रही, लेकिन मतदाता अभी मौन

डिग्री को ही मोहताज

कॉलेजों की संबद्धता पर फैसले में देरी से लाखों छात्रों का भविष्य अधर में, तीन साल में डिग्री दूर की कौड़ी

छोटी ही सही पर जीत के कई मायने

प्रतिष्ठित एकेडमी अवॉर्ड में भारत को छोटी-मोटी सफलता तो मिली लेकिन मुख्य श्रेणी के लिए अभी राह लंबी

मानवीय संवेदनाओं की जय

मुंबई की झोपड़पट्टी धारावी और वहां के बाशिंदों को अलग ढंग से दिखाया गया तो मिला ऑस्कर

अंत में सेल

आखिर में शौर्य अगर कपड़े का एक ब्रांड बेचने के काम आ रहा है, तो यही माना जाना चाहिए कि आखिर में सब बिकना है और सेल के लिए जाना है

बेदखली का डर छंटा नहीं

अपने ही फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की रोक से आदिवासियों का संकट टला, डैमेज कंट्रोल कर पाएगी भाजपा?

जंगल के दावेदार

वन-भूमि से आदिवासियों की बेदखली पर आखिर किसकी नजर

कार कैसे हो सुरक्षित

हर साल 70 हजार से अधिक लोग कार-दोपहिया वाहन चलाते वक्त दुर्घटनाओं में जान गंवाते हैं, ऐसे में नए सुरक्षा मानकों पर अमल जरूरी

अकाल में यह सूनापन !

पुरानी पीढ़ी के दिग्गज साहित्यकार और लोक बुद्धिजीवी एक के बाद एक विदा हो रहे, जबकि नई पीढ़ी भरोसा जताने में अभी बहुत पीछे

“आयुष्मान मॉडल पूरी तरह गलत”

मोदी सरकार का फोकस प्राइमरी हेल्थकेयर पर नहीं है, वह कॉरपोरेट के दबाव में यह स्कीम लेकर आई है

इतिहास में खोई नायिका

मल्लिका संबंधों के बीच ठिठकी पड़ी स्‍त्री के ऐसे प्रश्नों को रखती हैं, जो समकालीन भी हैं और शाश्वत भी

लेखक की प्रतिश्रुति

अंकित नरवाल का साहित्य सिर्फ हाशिए के लोगों की ही बात नहीं करता बल्कि समग्र रूप से दुनिया की बातें करता है

आयुष्मान से आधी-अधूरी ही मिलेगी सेवा

सारा फोकस हॉस्पिटलाइजेशन पर चला गया है, लेकिन बड़ी आबादी पर ओपीडी इलाज का खर्च काफी बढ़ा, करोड़ों लोग बढ़ते इलाज खर्च से जा रहे गरीबी रेखा के नीचे

इलाज का बीमा मॉडल तो महज प्रचार का झुनझुना

अमेरिका में भी बीमा मॉडल से 20-30 फीसदी लोगों को ही मिलती है सुविधा, ज्यादा फायदा तो कंपनियों को ही। सो, ओडिशा, तेलंगाना, केरल, दिल्ली और पंजाब सरकारों ने आयुष्मान योजना से किया किनारा

गांधी, टैगोर और राष्ट्रवाद

भारत में राष्ट्रवाद ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ विकसित हुए राष्ट्रीय आंदोलन के गर्भ से निकला

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