यह उपन्यास आज की राजनीति का वह कुत्सित चेहरा सामने लाता है जिसे विकास और संसदीय लोकतंत्र जैसे कई आवरणों में छुपाया जाता है
सीबीआइ अब केंद्र-राज्य संबंधों के बीच खड़ी दिख रही है। संस्थाओं की स्वायत्तता पर सवाल देश की लोकतांत्रिक और संघीय व्यवस्था के लिए शुभ नहीं
पांच साल की मोदी सरकार ने छठवें बजट में कई वर्गों को खुश करके चुनावी फसल काटने की उम्मीद लगाई
नाराज किसानों, मजदूरों, मध्य वर्ग को खुश करने की कोशिश कितनी खरी, या महज बाजीगरी में लुभाने का जतन, आइए देखें क्या है बजट का गणित
चुनावी बजट में नकद हस्तांतरण योजना और आयकर में रिबेट देने का तो ऐलान पर इसकी भरपाई के लिए पूंजीगत खर्च घटाकर राजकोषीय संतुलन रखने का कोई ख्याल नहीं किया गया
शुरुआत से ही चुनिंदा परिवारों के इर्द-गिर्द सिमटी रही प्रदेश की राजनीति में वारिसों के बीच उत्तराधिकार की लड़ाई से स्थापित कुनबे हुए फीके, पर सियासत में परिवारों का असर खत्म होने के आसार नहीं
सिंधिया को पश्चिमी यूपी की कमान, कमलनाथ-दिग्गी की राह आसान
नक्सल पर्चे में बस्तर के विकास का मुद्दा उभरा तो छिड़ी बहस
भारतीय टीम को पहले ‘अपने घर का शेर’ कहा जाता था, विदेशी जमीन पर लगातार जीत ने साबित किया कि ‘घर में शेर तो बाहर सवा सेर’ है
इन दिनों कुछ ऐसा अजूबा हो रहा है कि लोगों का वर्तमान का ज्ञान भी उसी स्तर का हो गया है जिस स्तर का उनका इतिहास ज्ञान है
आम चुनावों के पहले सीबीआइ केंद्र-राज्य टकराव का कारण बनी, ममता बनीं मोदी विरोधी मोर्चे की अगुआ
चुनावों से ऐन पहले सीबीआइ की कार्रवाई संदेह के घेरे में, लग रहा राजनीतिक इस्तेमाल का आरोप
सुप्रीम कोर्ट का सरकार पर चेक ऐंड बैलेंस रखने की भूमिका न निभाना लोकतंत्र के लिए खतरनाक
देश की सबसे पुरानी पार्टी क्या अपने सबसे कमजोर क्षेत्र पूर्वी उत्तर प्रदेश में अपनी जमीन हासिल कर पाएगी? भाजपा और सपा-बसपा गठबंधन को कैसे और कितना हो सकता है नुकसान
आम चुनाव के मद्देनजर राम मंदिर को लेकर फिर तेज हुई फिजा
रोजगार ही नहीं, जीडीपी के आंकड़ों पर भी उठे सवाल
सरकार का दावा है कि रोजगार को लेकर पर्याप्त ‘अच्छे’ आंकड़े नहीं हैं, हालिया उपलब्ध रोजगार के आंकड़ों में सभी नौकरियों को शामिल किया गया है, जबकि सरकार का दावा इसके उलट है
मोदी जी कहते हैं कि यह ट्रेलर है तो शायद यह ट्रेलर ही रह जाए, फिल्म कभी नहीं बने। इन्हें पांच साल के लिए चुना गया था जबकि ठगी करके छठा बजट ले आए
अर्थव्यवस्था के जो आंकड़े लोगों के सामने आएं, उन पर किसी तरह का कोई संदेह न हो इसके लिए राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग का गठन किया गया, लोगों को भरोसा हो कि आंकड़ों में किसी तरह का गैर-वाजिब राजनैतिक हस्तक्षेप नहीं हो रहा है, लेकिन शायद अभी ऐसा नहीं है
यह किताब एक गंभीर अध्ययन है जो खेती-किसानी संबंधी ज्यादातर पुराने अध्ययनों को देखने-पढ़ने के बाद कुछ उपाय सुझाता है, कुछ कमजोरियों को रेखांकित करता है और नजरिए के साथ कुछ नीतिगत बदलावों की वकालत करता है
यह अपने आप में उपलब्धि है कि कोई पत्रिका नौटंकी जैसे विषय पर पूरा अंक निकाल दे, नौटंकी के हर आयाम को इसमें सहेजा गया है
इस संग्रह की कहानियों की स्त्रियां भले सौम्य और सामाजिक हों, किंतु उनके आंतरिक अस्तित्व सजग हैं
गांधी धार्मिक थे, सांप्रदायिक नहीं, उन्होंने सभी धर्मों को बराबरी के स्थान वाले भारत की कल्पना की थी
खामोशी से चले गए समाजवादी राजनीति के अथक और विवादित योद्धा
वे खुद को स्त्रीवादी लेखिका कहलाना पसंद नहीं करती थीं लेकिन उनके द्वारा रचे स्त्री पात्र कालजयी हो गए