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मैगज़ीन डिटेल

खबरदार! सरकार देख रही है

गृह मंत्रालय के नए आदेश से निजता के अधिकार के घोर उल्लंघन की उठीं आशंकाएं

नया साल, नई इबारत

2019 कई उपलब्धियां और नई परिस्थितियां लेकर आएगा। यह भी तय करेगा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के आम चुनाव में भारतीय समाज अतीत के घटनाक्रमों को तरजीह देता है या भविष्य बेहतर करने के बारे में ज्यादा सोचता है

रास्ता है, बस उस पर बढ़ा तो जाए

कृषि और किसान का संकट आज सबसे अहम मुद्दा, हल की तलाश की कोशिश में आउटलुक ने किसानों, नीति-नियंताओं और विशेषज्ञों को मंच मुहैया कराया

मुनाफे की खेती के मंत्र पर फोकस

किसान का भविष्य उपज पर निर्भर करता है, उपज बढ़ाने के लिए उचित साधनों की जरूरत है, इस लिहाज से सहकारिता की विशेष भूमिका

सहकारिता के रास्ते खुशहाली की खेती

कोऑपरेटिव से बढ़ती है किसानों की होल्डिंग कैपिसिटी, बाजार के उतार-चढ़ाव में वाजिब कीमत पर उपज बेचना हो जाता है आसान

उपलब्धियों की मिसाल

सहकारिता और एफपीओ के क्षेत्र में उत्कृष्ट काम करने वाली संस्थाओं को किया गया सम्मानित

समाधान की राह यह भी

बशर्ते एफपीओ पैदावार बढ़ाने, प्रोसेसिंग और मार्केटिंग पर फोकस करें

खेती-किसानी के सरोकारों का विशेष मंच

आउटलुक एग्रीकल्चर कॉनक्लेव एंड स्वराज अवार्ड्स

आम चुनाव पर सधी नजर

कांग्रेस ने कैबिनेट गठन से लोकसभा चुनाव साधने की कोशिश की, लेकिन प्रतिनिधित्व में असंतुलन से उठ रहे सवाल

सबको साधा, चुनौती बाकी

राजनैतिक चुनौतियों के बीच कमलनाथ की कैबिनेट में युवाओं को तरजीह, क्षेत्रीय और गुटीय समीकरणों का भी रखा ख्याल

दुर्ग मजबूत पर लक्ष्य साफ नहीं

मंत्रिमंडल में हर वर्ग को साधने की कवायद, मगर वादों पर अमल और लोकसभा चुनाव अभी भी चुनौती

मौत की घाटी

घाटी में संदेह कि पुलवामा जैसी घटनाएं कहीं चुनाव टालने का बहाना ढूंढ़ने की वजह तो नहीं

किसान, तुम समझते नहीं हो

वास्तव में किसानों की समस्या यह है कि वे बहुत बुनियादी और उपयोगी काम करते हैं, यह पिछड़े अर्थशास्‍त्र का भी पिछड़ा हुआ संस्करण है

पुलिस राज की धमक तो नहीं

सरकार की नई अधिसूचना पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों की ताकझांक पर अंकुश के मामले में मौन

पितृसत्ता और मौजूदा सामाजिक टकराहटें

सबरीमला से लेकर स्‍त्री-उत्पीड़न की हिंसक वारदातें पुरुष प्रधान समाज को मिल रही चुनौतियों का नतीजा

चुप्पी टूटी पर बराबरी की देहरी अब भी दूर

सत्ता, संपत्ति और संतति में बराबरी से ही महिलाओं के जीवन में आएगा बदलाव, महिला आरक्षण बिल को अब ज्यादा दिन नहीं लटका सकते राजनीतिक दल

बराबरी की संस्कृति से ही टूटेगी जकड़न

नव-पूंजीवाद से अमीरी-गरीबी के फासले काफी बढ़े तो जाति और पितृसत्ता की जकड़न और मजबूत होने लगी है, इससे ‌स्त्रियों के खिलाफ हिंसा भी बढ़ी

ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के वर्चस्व से बढ़ीं चुनौतियां

समाज के हर वर्ग और स्त्रियों में बढ़ती आकांक्षाओं के बीच पितृ-सत्ता को कायम रखने की कोशिशों से समाज में भारी विस्फोटक स्थिति

जवाबी नतीजे भी दिखने लगे

महिलाओं के लिए सुरक्षित कार्यस्थल की मांग पर पितृसत्ता की प्रतिक्रिया भी दिखाने लगी तेवर

संभावनाओं के नए सोपान

नई किताबों और नए लेखकों ने जताईं उम्मीदें, लेकिन विदा हुए हमसे कई महत्वपूर्ण लेखक

“स्‍त्री लेखन में बिखराव चिंता की बात नहीं”

समाज स्‍त्री और पुरुष दोनों से नि‍र्मि‍त है। अत: कि‍सी को कमतर मानना, समाज के संतुलन को कमजोर करना है।

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