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मैगज़ीन डिटेल

डेटावार की राजनीति

सत्ता हासिल करने के लिए निजी सूचनाओं में सेंधमारी और जनमत बनाने-बिगाड़ने के खेल में सोशल मीडिया और आइटी कंपनियां बनीं राजनीतिक पार्टियों की औजार

डिजिटल खतरों में निहत्थे

दुनिया की बड़ी इकोनॉमी में शुमार होती हमारी अर्थव्यवस्था और अथाह डेटा पैदा करने वाले देशों में से एक होने के बावजूद हम डिजिटल दुनिया में निहत्थे खड़े हैं। बेशक, इसका खामियाजा भी हमें भुगतना पड़ सकता है

चुनावी प्रोपेगेंडा के प्लेटफॉर्म

सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों के प्रसार का खतरा, 2019 के चुनावों के मद्देनजर और भी चिंताजनक

इंटरनेट से राजनीति हुई आभासी

इंटरनेट और सोशल मीडिया के नए दौर में जनता के पास गए बगैर भी अब चुनाव जीते जा सकते हैं

चुनाव शास्त्र का पतन

पॉलिटिकल कंसल्टेंट सिर्फ राय ही नहीं देते, सीधे-उल्टे तरीके से चुनाव को सेट करने के तरीके भी बता रहे

डिजिटल अराजकता या डेटा का खोटा कानून

फेसबुक सहित कई विदेशी इंटरनेट कंपनियां देश में कर रही हैं 20 लाख करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार

मोदी बनाम सिद्धरमैया

पूरब से पश्चिम तक झंडे गाड़ चुकी भाजपा के लिए दक्षिण साधने में कर्नाटक साबित हो रहा है बड़ी चुनौती

जमीन घोटालों में घिर गए हुड्डा

सियासी जमीन तलाशते पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर मनोहर लाल खट्टर सरकार ने की दो और केस दर्ज करने की सिफारिश

‘सुशासन’ पर दंगों का दाग

कई जगह सांप्रदायिक हिंसा और उसमें भाजपा नेताओं की शिरकत से संकट में नीतीश कुमार

सियासत बदलने का हिंसक खेल

आसनसोल, रानीगंज में रामनवमी पर शुरू हुई हिंसा से राजनैतिक ध्रुवीकरण की कोशिशें, हर राजनैतिक पार्टी के अपने-अपने राग

जांच या लीपापोती में बीते बरसों

रसूखदारों से पूछताछ भी नहीं कर पाई सीबीआइ, तबादले ताबड़तोड़

चार साल बाद लौटा सिर्फ ताबूत

बेरोजगारों को नौकरी का लालच देकर गलत तरीके से खाड़ी देश भेजने वाले अवैध ट्रैवल एजेंटों को काबू करने में सरकार नाकाम

चाहिए और सख्ती

ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों की गेंद से छेड़छाड़ ने साबित किया कि आइसीसी को सख्त कदम उठाने की दरकार

हर दिल अजीज फिल्म संपादक रेणु

फिल्म संपादन के लिए तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी स्वर्गीय रेणु सलूजा के साथ बिताए अंतिम दिनों पर सुधीर मिश्रा बना रहे हैं फिल्म

पानी रे पानी

अगली पीढ़ियों को नदियों को टीवी पर ही देख कर संतोष करना होगा

पुराने नोटों की नई कहानी

नोटबंदी के बाद भारत और नेपाल के बीच सहमति न बनने का फायदा उठाने के फिराक में दलाल, पुराने नोटों की बरामदगी से उठे सवाल

सिस्टम में सूराख साख पर सवाल

एसएससी और सीबीएसई पेपर लीक से पूरी परीक्षा प्रणाली से उठता छात्रों का भरोसा, सरकार के हाथ से निकलकर अदालत पहुंचे मामले

आजादी लो, पैसा जुटाओ

नई तरह की स्वायत्तता उच्च शैक्षणिक संस्थागनों में विचार की बची-खुची जगह को नए दबावों से घेरेगी

उग्र आंदोलन से नए सियासी समीकरण

एससी/एसटी कानून पर चल रही जंग और भारत बंद के दौरान दलित-पिछड़ा एका से एक नए दौर की राजनीति की सुगबुगाहट

दलित नेता भी चौंके

दलित और आदिवासी समुदाय के लोग अपनी उपजातीय अस्मिताओं को दरकिनार कर साथ आए

दूर और दुश्वार होती इंसाफ की देहरी

राजस्थान में अलवर जिले के भिवाड़ी में दो हत्याओं से गुस्से में दलित, न्याय दिलाने में प्रशासन रहा नाकाम, दोनों प्रमुख राजनैतिक दलों ने नहीं ली सुध

सुपरबाइक्स के हाइवे पर टैक्स ब्रेकर

भारत में सुपरबाइक्स के 15 से अधिक मैन्युफैक्चरर्स अपना कारोबार शुरू कर चुके हैं, लेकिन ग्रोथ में इंपोर्ट ड्यूटी बन रही बड़ी बाधा

हक का इंतजार करती मैथिली

सरकार और समाज की बेपरवाही को उजागर करता मैथिली से जुड़ा हालिया विवाद, भाषाई आंदोलन पर निजी स्वार्थ हावी

पचास साल बाद भी वही राग वही दरबार

निस्संदेह राग दरबारी हिंदी के महानतम उपन्यासों में से एक है और इसलिए यह हर वक्त प्रासंगिक रहेगा, पचास साल बाद भी शिवपालगंज हर जगह है कायम

“किसानों की जरूरत ही हमारी प्राथमिकता”

देश की अग्रणी ट्रैक्टर निर्माता कंपनी स्वराज में काम करने वाले 60 फीसदी इंजीनियर खेती-किसानी से जुड़े हुए हैं। यही कारण है कि कंपनी के ट्रैक्टर का नाम ‘मेरा स्वराज’ है। महिंद्रा एंड महिंद्रा ग्रुप की यूनिट स्वराज ट्रैक्टर मेक इन इंडिया की कसौटी पर पूरी तरह से खरी उतरती है। छोटे से लेकर बड़े किसानों के लिए उनकी जरूरत के अनुसार ट्रैक्टरों का उत्पादन करती है। स्वराज डिवीजन के सीओओ वीरेन पोपली से कंपनी की रणनीति सहित अन्य मुद्दों पर हमारे वरिष्ठ संवाददाता आर.एस. राणा ने खास बातचीत की, पेश हैं अंश...

बुद्धिजीवी का जनसरोकार

अतीत को प्रश्नांकित करने के साथ-साथ्‍ा अतीत के ज्ञान के आलोक में वर्तमान पर सवाल भी उठाती हैं थापर

संत वाणी

यह पुस्तक महात्मा गंगादास की वाणी, ज्ञान, भक्ति और राष्ट्रीय भावना को समान रूप से पाठकों के सामने लाती है

विस्तार की जादूगरी

एक शहर कितना अपना और परिस्थिति बदलने पर कैसे पराया हो जाता है, यह प्रवीण कुमार ने बहुत कुशलता से दिखाया है

जंगल के दुख

इस उपन्यास में पथरीली सच्चाई की जमीन पर प्रेम का अंकुर भी धीरे से फूटता है

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