सिंधु एकमात्र भारतीय हैं जिन्होंने जुलाई-अगस्त में होने वाले टोक्यो ओलंपिक के लिए वुमेंस सिंगल्स इवेंट में क्वालिफाइ किया है। उन्होंने रियो 2016 ओलंपिक में रजत पदक जीता था, जहां फाइनल में वे स्पेन की कैरोलिना मारिन से हार गई थीं।
मुख्यमंत्री विजयन के नए चेहरे के बहाने पूर्व स्वास्थ्य मंत्री शैलजा को मंत्री न बनाने की वजह क्या
पायलट खेमे के विधायक चौधरी की इस्तीफे की पेशकश से नई हलचल
बहुचर्चित पप्पू यादव की कोरोना काल में सक्रियता और सरकारी प्रतिक्रिया
ममता को राज्य में उलझाए रखने और अपने पाले में बिखराव रोकने में भाजपा के लिए क्या नारद घोटाला इतने साल बाद मददगार हो पाएगा
ब्लैक, व्हाइट, येलो फंगस के बढ़ते मामले, दवा की किल्लत और देश के लगभग हर इलाके के गांव तक प्रसार से दहशत, गंभीर मरीजों में मृत्यु दर 30% से अधिक
कोविड-19 के बाद अब देश में ब्लैक फंगस का खतरा बढ़ता जा रहा है। बेहद कम समय में न केवल लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं, इससे मौतों का सिलसिला भी बढ़ने लगा है। इससे बचाव के क्या तरीके हैं और इलाज के दौरान किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, इस पर आउटलुक के प्रशांत श्रीवास्तव ने दिल्ली स्थित लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के नाक-कान-गला रोग विभाग के प्रोफेसर डॉ. गौतम बीर सिंह से बात की। प्रमुख अंश:
अस्पष्ट नीति, समय पर ऑर्डर न देने, राज्यों के साथ भेदभाव और तिहरी मूल्य प्रणाली की वजह से वैक्सीन कार्यक्रम मकसद से दूर
महामारी ने अनेक बच्चों के सिर से मां-बाप का साया छीन लिया है, इन बच्चों का भविष्य क्या होगा
सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे से हम सब परिचित हैं, सरकार को मार्च 2020 में ही सचेत हो जाना चाहिए था कि महामारी का असर ग्रामीण क्षेत्र पर कितना भयावह हो सकता है
स्वास्थ्य सेवाओं का नितांत अभाव, सरकारी कदमों के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति; राज्यों को काफी दिनों तक यह आभास ही नहीं हुआ कि दूसरी लहर गांवों में संकट बढ़ा रही है
संवेदनशील फिल्मकार मानवीय नजरिए से दर्शकों में बेहतर, खुशनुमा दुनिया की आशा भर देते थे
कांग्रेस सक्रिय जरूर है मगर अपना घर मजबूत करके गठबंधन की सही चुनावी पकड़ वाले नेता का अभाव, नेतृत्व को बस अच्छे दिनों की आस
किताब में तीन भावनात्मक अध्याय हैं। इनमें एक बेटे की मौत से जुड़ा है। आप चाहे जितनी कोशिश कर लें, बेटे को खोने का दर्द हमेशा बना रहता है। मेरे लिए यह सबसे कठिन अध्याय था।
सुंदरलाल बहुगुणा और चिपको आंदोलन के चंडी प्रसाद भट्ट और उनके तमाम साथियों को ऐसे विनाश और तांडव का एहसास चार दशक पहले ही हो चला था, जब पर्वत और पेड़-पौधों की प्राकृतिक पवित्रता बचाने के लिए वे लोग सक्रिय हुए थे।
महामारी की दूसरी लहर और व्यवस्था की भारी नाकामी ने सांस्कृतिक क्षेत्र को ऐसी क्षति पहुंचाई, जिसकी भरपाई मुश्किल
इकलौता शहर, जिसके नाम के साथ आदर से ‘जी’ लगाने का चलन है। गयासुर के नाम पर बसा यह नगर कभी बिहार हुआ करता था।
आज कोरोना काल की भयावहता को देखते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को जल्द से जल्द बहाल करने की आवश्यकता है, भले ही इसके बजट के आकार को कई गुना बढ़ाना पड़े। ऐसा करके हम आने वाले समय में कोरोना जैसी महामारियों से बेहतर ढंग से निपट सकते हैं।