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मैगज़ीन डिटेल

संपादक के नाम पत्र

भारत भर से आईं पाठको की चिट्ठियां

पश्चिम बंगाल : पाला बदल की भारी हवा

चुनाव नजदीक आते ही भाजपा और तृणमूल में नेताओं को तोड़ने की होड़, अस्थिर माहौल में लोग आशंकित

बिहार: सुशासन राज में अपराधी बेखौफ

बिगड़ती कानून-व्यवस्था से बढ़ी नीतीश की मुश्किलें, विपक्ष ही नहीं, सहयोगी भाजपा भी हमलावर

झारखंड: संकट में गांव की सरकार

जनवरी में खत्म होगी त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव की मियाद, महीनों से खाली राज्य निर्वाचन आयुक्त का पद

मध्य प्रदेश: छापों की गुगली

आयकर छापों की रिपोर्ट से बढ़ी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की मुश्किलें

आवरण कथा/फिल्म सिटी: हिंदी पट्टी की फिल्म नगरी

बॉलीवुड की जन्मस्थली मुंबई भले हिंदी सिनेमा के केंद्र के रूप में न डिगे, लेकिन देश के एक बड़े भू-भाग, हिंदी पट्टी में सिनेमा उद्योग के विकास को निश्चित ही नई रफ्तार मिलेगी

आवरण कथा/इंटरव्यू/प्रकाश झा: “शूटिंग और सुविधाएं एक जगह हों तो बल्ले-बल्ले”

जाने-माने फिल्म निर्माता प्रकाश झा ने हाल ही में सीएम योगी से लखनऊ में उनके आवास पर मुलाकात की है

आवरण कथा/इंटरव्यू/नीलकंठ तिवारी: “2022 तक फिल्म निर्माण शुरू हो जाएगा”

नोएडा में एक स्टेट-ऑफ-आर्ट फिल्म सिटी के निर्माण की महत्वाकांक्षी पहल की गई है

आवरण कथा/नजरिया: अभी लंबा रास्ता तय करना है

फिल्म उद्योग की घोषणा करना एक बात है और उसे स्थापित करना बिलकुल दूसरी

सप्तरंग

ग्लैमर जगत की हलचल

किसान आंदोलन: लंबी लड़ाई की तैयारी

महीने भर से दिल्ली के बॉर्डर पर बैठे किसान सरकार की पेशकश से असंतोष जाहिर करके लंबी लड़ाई की तैयारी में, आखिर इसका हल है क्या? क्या सरकार सिर्फ टालते रहने के मूड में

आपदा, असंतोष का अंतरा

इतिहास के पन्नों में ऐसे वर्ष ढूंढे शायद ही मिलें, जब किसी एक ही वजह से पूरी या कम से कम दो-तिहाई दुनिया त्राहिमाम कर उठी हो।

इंटरव्यू/नितिन गडकरी: “किसान देशद्रोही नहीं, न उन्हें बदनाम करने की कोशिश है”

नए कानून किसानों के हित में हैं, यह बात उन्हें समझाने में जितना भी समय लगे हम उसके लिए तैयार हैं

इंटरव्यू/अमिताभ घोष: “अंग्रेजी में लिखता हूं पर अंग्रेजी वाला नहीं”

पहली बार भारत में अंग्रेजी लेखन में ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले अमिताभ घोष की रचनाएं देश की हकीकत को नई दृष्टि के साथ पेश करने के लिए जानी जाती हैं।

पुस्तक समीक्षा: क्या शिवरानी देवी प्रेमचंद से अधिक बेबाक थीं?

यह कहना मुनासिब है कि हिंदी समाज जितना प्रेमचंद को जानता है, उतना वह शिवरानी देवी को नहीं जानता।

प्रथम दृष्टि: जांबाजों का साल

बीता वर्ष काले, भयावह वर्ष के रूप में याद किया जायेगा, वहीं इसे इतिहास में ऐसे कालखंड के रूप में भी देखा जायेगा जब संपूर्ण मानवता इसका मुकाबला करने के लिए एक साथ उठकर खड़ी हुई

अंदरखाने

सियासी दुनिया की हलचल

खबरचक्र

चर्चा में रहे जो

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