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असली ‘चॉकलेटी’ ऐसे बनेगी

मुंह में घुलने वाली चॉकलेट बनाना आसान नहीं है। सही गुणवत्ता न हो तो सब गुड़-गोबर। लेकिन अब चॉकलेट की सही गुणवत्ता नापी जा सकेगी। चॉकलेट पर शोध करने वालों ने एक नई अल्ट्रासाउंड का इस्तेमाल कर नई तकनीक का इजाद की है।
असली ‘चॉकलेटी’ ऐसे बनेगी

चॉकलेट कैसे चॉकलेटी बनेगी इसके लिए बहुत सारे लोग काम करते रहते हैं। दिखने में चमकदार, लजीज स्वाद वाली उम्दा चॉकलेट जो  दांत से काटने पर मुंह में अनूठी आवाज पैदा करे और जो मुंह में जाते ही पिघल जाए ऐसी चॉकलेट खाने को मिले तो कहना ही क्या। लेकिन इन सभी बातों को पूरा करना आसान नहीं है।

कोकोआ बटर रवेदार होकर वसा के साथ मिलकर इस प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाता है।

बेल्जियम में केयू ल्यूवेन यूनिवर्सिटी से इमोजेन फूबर्ट ने बताया, कोको बटर तरल चॉकलेट को सख्त बनाकर उन्हें रवा कण में बदल देता है। इस प्रक्रिया के दौरान पांच तरह के रवा कण का निर्माण होता है, लेकिन इनमें से सिर्फ एक में ही मनमाफिक गुण होते हैं।

फूबर्ट ने बताया, संख्या, आकार, आकृति और जिस अंदाज में रवा कण आपस में जुड़ते हैं, वह इसमें अहम भूमिका निभाते हैं। केयू ल्यूवेन से कोएन वान डेन अबीले ने बताया, हमने पाया कि हम अल्ट्रॉसोनिक किरणों के जरिए कोको बटर के रवाकरण में अंतर का पता लगा सकते हैं।

यानी नई नकनीक में कोको बटर के जरिए ट्रांसवर्सल अल्ट्रॉसोनिक किरणों को भेजा गया, जिसके जरिए अनुसंधानकर्ताओं ने तब बटर के ढांचे के बारे सूचना के लिए इन किरणों के परावर्तन को मापा।

कोको बटर जब तरल अवस्था में होता है तब संपूर्ण पदार्थ में अल्ट्रॉसोनिक किरणें परावर्तित की जाती हैं। जैसे-जैसे बटर रवा कणों में बदलता है किरणें कोको बटर को भेदती हैं। ऐसे में परावर्तन की मात्रा में बदलाव देखा जाता है। इससे यह देखना आसान हो जाता है कि अलग अलग रवा कण आपस में किस तरह से जुड़ते हैं और यही चॉकलेट की उत्तम प्रकृति के लिए अहम है।

एजेंसी इपनुट

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