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सर्दियों की सावधानियां

स्वास्थ्य और वातावरण के बीच ऐसा संबंध रहता है कि यदि वह गड़बड़ा जाए तो स्वास्थ्य गड़बड़ाने की आशंका...
सर्दियों की सावधानियां

स्वास्थ्य और वातावरण के बीच ऐसा संबंध रहता है कि यदि वह गड़बड़ा जाए तो स्वास्थ्य गड़बड़ाने की आशंका बढ़ जाती है। इन दिनों दिल्ली के वातावरण की जो स्थिति है उसमें सावधानी बहुत जरूरी है।

दरअसल लो डेनसिटी (न्यूनतम घनत्व) के कारण प्रदूषण फैलाने वाले कण हवा में तैरते रहते हैं। इस वजह से सर्दियों के मौसम में एलर्जी और दूसरी तरह की परेशानियां बढ़ जाती हैं। बॉडी बर्डन: लाइस्टाइल डिसिजेस रिपोर्ट 2017 के अनुसार दिल्ली के हर तीसरे बच्चे के फेफड़े कमजोर हैं।

बढ़ती जनसंख्या वाले हमारे देश के स्वास्थ्य के लिए यह भयावह स्थिति है। यह गौर करने लायक बात है कि सर्दियां एक खास वक्त के लिए होती है लेकिन इससे उपजी एलर्जी लंबे समय तक शरीर में बनी रहती है। इससे बचने का एक मात्र तरीका यह है कि इनकी सही समय पर पहचान हो और कोशिश की जाए कि यह शरीर पर आक्रमण न करे। सर्दियों में होने वाली विभिन्न प्रकार की एलर्जियां नवजातों को लंबे समय के लिए बीमार कर सकती हैं। उनमें नाक बहना या बंद हो जाना, गला खराब होना, शरीर पर लाल चकत्ते और खारिश, सांस की नली में घरघराहट जैसे मामले बढ़ रहे हैं।  

हवा में मौजूद बारीक कण सर्दियों में एलर्जी के कई कारणों में से एक हैं। धूल से होने वाली एलर्जी के कण फेफड़ों में आ जाते हैं और सीने में जकड़न पैदा करते हैं। सर्दी का मौसम फेफड़ों के साथ-साथ दिल के लिए भी दिक्कतें पैदा करते हैं। सर्दियों में घर में अधिकांश समय खिड़की-दरवाजे बंद रहते हैं इस वजह से धूल के कण वहीं मौजूद रहते हैं और एलर्जी पैदा करते हैं।

चिकित्सकों का मानना है कि इस तरह की एलर्जी को केवल तभी नियंत्रित किया जा सकता है जब इनके लक्षणों को तुरंत पहचान लिया जाए और पता हो कि कौन सी चीज एलर्जी को बढ़ा देती है। यदि कोई भी लक्षण एक हफ्ते से ज्यादा रहे तो तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए। नवजातों में साल में 6-8 बार जुकाम होना सामान्य माना जाता है। इसी से उनमें रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। लेकिन बच्चों को कपड़ों की दो-तीन परतों में ढक कर रखना चाहिए। क्योंकि मौसम के बदलाव के प्रति वे संवेदनशील होते हैं।  

चिकित्सक कहते हैं कि सर्दियों के मौसम में रोग-प्रतिरोधक क्षमता और रोगों से लड़ने की ताकत कम हो जाती है जबकि नवजातों में यह विकसित होती रहती है। यही वजह है कि सर्दियों में अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है। 8-10 साल के बच्चों में भी प्रदूषण का बहुत असर होता है। उनके फेफड़े भी हवा के प्रदूषण के प्रति संवेदनशील रहते हैं। यही वजह है कि इस उम्र के बहुत से बच्चों में फेफड़ों की एलर्जी और सांस लेने में परेशानी हो जाती है।  

बेहतर है कि सर्दियों में थोड़े-थोड़े अंतराल पर कुछ खाएं। पानी खूब पिए और अपन आप को गरम रखें। पैर और कान ढक कर रखें ताकि जुकाम न हो। सूखे मेवे खाएं लेकिन एक मुट्ठी से ज्यादा नहीं। गर्म पेय में चाय-कॉफी के बजाय सब्जियों या दालों का सूप लें। गुनगुना पानी पिएं। 

 

एनआई एजेंसी इनपुट

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