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प्लाज्मा थेरेपी सुरक्षित हो सकती है, कोविड-19 से पीड़ित बच्चों में प्रभावी: स्टडी

कोरोना वायरस को मात देने के लिहाज से एक अच्छी खबर आई है। छोटे समूह पर किए गए अध्ययन के मुताबिक प्लाज्मा...
प्लाज्मा थेरेपी सुरक्षित हो सकती है, कोविड-19 से पीड़ित बच्चों में प्रभावी: स्टडी

कोरोना वायरस को मात देने के लिहाज से एक अच्छी खबर आई है। छोटे समूह पर किए गए अध्ययन के मुताबिक प्लाज्मा पद्धति से इलाज सुरक्षित प्रतीत हो रहा है और कोविड-19 से पीड़ित बच्चों के उपचार में संभवत: प्रभावी भी है।

जर्नल ऑफ पीडियाट्रिक ब्लड ऐंड कैंसर में प्रकाशित शोधपत्र प्राणघातक कोविड-19 के मरीज बच्चों के प्लाज्मा पद्धति से इलाज के संबंध में पहली रिपोर्ट है।

अमेरिका स्थित फिलाडेल्फिया बाल अस्पताल (सीएचओपी) के अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि सार्स-कोव-2 वायरस (कोरोना वायरस) के सपंर्क में आए बच्चों में उत्पन्न प्राणघातक जटिलताओं का इलाज करने के लिए कोई भी पद्धति सुरक्षित और प्रभावी सिद्ध नहीं हुई है।

उन्होंने कहा कि एक संभावित इलाज जिसका प्रयोग वयस्कों में किया गया है, वह है कोविड-19 के ठीक हो चुके मरीजों के रक्त से लिए गए प्लाज्मा का उपयोग।

अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि मौजूदा वक़्त में इस पद्धति से बीमार मरीजों का इलाज वायरस के संक्रमण का मुकाबला करने के लिए शरीर में एंटीबॉडी उत्पन्न् करने के लिए किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि पहले प्लाज्मा से इलाज कराने वाले वयस्कों में सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं, मगर बच्चों के इस पद्धति से इलाज को लेकर अध्ययन नहीं किया गया है।

सीएचओपी के वरिष्ठ शोध पत्र लेखक डेविड टीचे ने कहा, ‘‘ कुछ बच्चों में वायरस की संक्रमण के कारण से गंभीर जटिलताएं उत्पन्न हो जाती हैं। इसलिए, वयस्कों के सीमित आंकड़ों के आधार पर हमारा मानना है कि प्लाज्मा पद्धति से इलाज का एक विकल्प के रूप में दोहन करना चाहिए।’’

यह अध्ययन 4 मरीजों पर आधारित है जिन्हें सांस लेने में परेशानी की गंभीर बीमारी थी।

अनुसंधानकर्ताओं ने प्लाज्मा दान करने वाले के शरीर में एंटीबॉडी के स्तर और एंटीबॉडी ग्रहण करने वाले के प्लाज्मा चढ़ाने से पहले और बाद में वायरस से प्रतिक्रिया का अध्ययन किया ताकि पता किया जा सके कि कोई नकारात्मक प्रभाव तो नहीं हो रहा है।

अध्ययन में शामिल चारों मरीजों में इस्तेमाल प्लाज्मा मरीज के शरीर में उत्पन्न एंटीबॉडी की वृद्धि से जुड़ा नहीं था जिसमें एंटीबॉटी पूर्व में संक्रमण से विकसित होता है और संबंधित संक्रमण (प्लाज्मा) से बदतर प्रतिक्रिया करता है और जिसके बारे में अन्य कोरोना वायरस के पूर्व क्लीनिकल मॉडल में चिंता जताई गई है।

अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि प्लाज्मा शरीर में उत्पन्न एंटीबॉडी के कार्य को भी बाधित नहीं करता।

टीचे ने कहा, ‘‘ हमारा मानना है कि प्लाज्मा उन मरीजों के लिए बहुत लाभदायक है, जो बीमारी के शुरुआती दौर में हैं और उनके शरीर में इससे लड़ने के लिए एंटीबॉडी विकसित नहीं हुई है।

उन्होंने कहा, ‘‘चूंकि, हमारे शोध में कम नमूनों का इस्तेमाल हुआ है जिसकी वजह से निश्चित नतीजे नहीं निकाले जा सकते, लेकिन हमारा मानना है कि यह पद्धति सुरक्षित है और भविष्य के अनुसंधान में नियंत्रित परीक्षण किया जाना चाहिए ताकि यह पता लगाया जा सके कि कैसे कोरोना वायरस से संक्रमित बच्चों के इलाज में प्लाज्मा का प्रभावी इस्तेमाल किया जा सकता है।



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