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दिल्ली में डिप्थीरिया का कहर जारी, अब तक 22 लोगों की जा चुकी है जान

राजधानी दिल्ली में डिप्थिरिया से होने वाली मौत का सिलसिला जारी है। उत्तरी इलाके में स्थित एक सरकारी...
दिल्ली में डिप्थीरिया का कहर जारी, अब तक 22 लोगों की जा चुकी है जान

राजधानी दिल्ली में डिप्थिरिया से होने वाली मौत का सिलसिला जारी है। उत्तरी इलाके में स्थित एक सरकारी अस्पताल में डिप्थीरिया से दो और लोगों की मौतों का मामला सामने आया है। इसके साथ ही इस संक्रामक बीमारी से मरने वालों का आंकड़ा 22 पहुंच गया है।

किंग्सवे कैंप के महर्षि वाल्मीकि संक्रामक रोग अस्पताल में गुरुवार को दो और मौत हो गई। इस बीमारी से यहां पहले ही 20 बच्चों की जान जा चुकी है।

अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक को किया सस्पेंड

एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘छह सितंबर से 170 से अधिक मरीजों को नगर निगम के अस्पताल में भर्ती कराया गया, जिनमें से 21 की मौत हो गई’। उत्तर दिल्ली के महापौर आदेश गुप्ता ने यहां इन बच्चों की मौत के सिलसिले में लापरवाही के मामले में मंगलवार को अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक को सस्पेंड कर दिया था। दिल्ली के सरकारी अस्पताल एलएनजेपी में भी इससे एक मौत हो गई थी।

सोमवार तक हो चुकी थी 18 बच्चों की मौत

महर्षि वाल्मीकि संक्रामक रोग अस्पताल में 20 सितंबर को 12 बच्चों की मौत हुई थी जबकि एलएनजेपी अस्पताल में एक की मौत हुई। सोमवार (24 सितंबर) तक नगर निगम के अस्पताल में कुल 18 बच्चों की मौत हो चुकी थी। इनमें 17 बच्चे दिल्ली के बाहर के थे जबकि एक दिल्ली का रहना वाला था।

मौतों की जांच के लिए गठित की गई समिति

उत्तर पश्चिम दिल्ली में स्थित महर्षि वाल्मीकि संक्रामक रोग अस्पताल उत्तर दिल्ली नगर निगम के तहत आता है। सूत्रों ने बताया कि इस बीच उत्तर दिल्ली के मेयर आदेश गुप्ता ने मौतों की जांच के लिए एक समिति गठित की है।

उन्‍होंने कहा कि मामले की जांच के आदेश दिए गए हैं। इसके लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया है, जिसे 3 दिनों में अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी।

जानें क्या होता है डिप्थीरिया? क्या हैं इसके लक्षण?

डिप्थीरिया एक गंभीर बैक्टीरियल संक्रमण है, जो आसानी से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल जाता है। यह हमारे नाक और गले की श्लेष्मा झिल्ली (mucous membrane) को प्रभावित करती है।

इसके कारण बुखार, सर्दी-जुखाम, कमजोरी और गले में गहरे ग्रे रंग के पदार्थ की एक मोटी परत गले के अंदर जम जाती है। माना जाता है कि इस संक्रमण के चपेट में ज्यादातर 2 से लेकर 10 वर्ष तक की आयु वाले बच्चे आते हैं।

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