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भारत में सभी बलात्कारी नहीं, फिर भी अंदर झांके

भारत में बलात्कार की संस्कृति का हवाला देते हुए भारतीय छात्र को इंटर्नश‌िप के ल‌िए मना करने वाली जर्मन प्रोफेसर बेक सिकिंगर भारत में जर्मन राजदूत की चिट्ठी के जरिये झाड़ के बाद बेशक अपने कहे से मुकर गईं हों लेक‌िन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन दिनों भारत सरकार और भारतीयों की जो छव‌ि सामने आई है वह भारतीयों के लिए शर्मनाक है।
भारत में सभी बलात्कारी नहीं, फिर भी अंदर झांके

गौरतलब है क‌ि बेक सिकिंगर ने यह तर्क देते हुए एक भारतीय छात्र के इंटर्नशीप अनुरोध को खारिज कर दिया क‌ि भारतीय पुरुष बलात्कारी होते हैं। हालांक‌ि जर्मन राजदूत माइकल स्टेनर ने इसकी निंदा करते हुए उन्हें पत्र लिखकर कहा कि भारत 'बलात्कारियों का देश' नहीं है। बेक सिकिंगर फ्री स्टेट ऑफ सेक्सनी स्थित लीपज‌िंग विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। सिकिंगर ने एक कथित ईमेल में कहा है, 'दुर्भाग्य से मैं इंटर्नशिप के लिए किसी भारतीय छात्र को स्वीकार नहीं करती। हमने भारत में बलात्कार की समस्या के बारे में बहुत कुछ सुना है, जिसे मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती। मेरे ग्रुप में कई छात्राएं हैं, इसलिए मुझे लगता है कि यह ऐसा आचरण है जिसे मैं सहन नहीं कर सकती।'

देशभर में अकेले घूमने की वजह से मैं स‌िकिंगर के मत से असहमत हूं क‌ि सभी भारतीय पुरुष बलात्कारी होते हैं। दक्ष‌िण भारत, उत्तर-पूर्व और पूर्वी भारत के राज्यों की बात करें तो उत्तर भारत की अपेक्षा यहां मह‌िलाओं के लिए माहौल ज्यादा सुरक्ष‌ित है। मेरा ज्यादातर घूमना पश्च‌िम उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में होता है। मह‌िलाओं के प्रति उजड्डता, छेड़छाड़ और बलात्कार के ल‌िए यह प्रदेश खासे बदनाम हैं। मेरे अपने साथ छेड़छाड़ के ज‌ितने मामले हैं, वे सभी इन्हीं राज्यों के हैं। भद्दे से भद्दे। बावजूद इसके मैं यह कहूंगी क‌ि कुछ घट‌िया मानसकिता वाले पुरुष सारे भारत की तस्वीर नहीं हैं। औरतों को जानवर समझने वाली मानस‌िकता, औरतों को स‌िर्फ सेक्स की ही वस्तु मानने वाले पुरुषों का ही भारत नहीं है। दूसरी तरफ जर्मन राजदूत स्टेनर ने भी ध्यान दिलाया है कि जर्मनी और यूरोप में भी बलात्कार होते हैं। अमेरिका में तो भारत जितने ही बलात्कार होते हैं।

न‌िर्भया कांड (हम उसका असली नाम ज्योति भी लिख सकते हैं क्योंकि उसके माता-पिता की इच्छा है कि उसका साहस उसके असली मनाम से जुड़े ) के आरोपी के राम स‌िंह या मुकेश सारे भारत के पुरुषों के प्रतिनि‌ध‌ितत्व कैसे कर सकते हैं। इन्हीं पुरुषों में बलात्कार के खिलाफ वर्तमान कानून के प्रारूपकार न्यायमूर्ति ज‌स्ट‌िस जे.एस. वर्मा , महिलाओं के प्रति संवेदनशील महान उपन्यासकार शरत चंद्र चट्टोपध्याय, साहित्यकार न‌िर्मल वर्मा तथा स्त्री अधिकारों को प्रतिष्ठित कराने वाले  डॉ.भीमराव अंबेडकर, ज्योत‌िबा फुले, धर्म सुधारक राजाराम मोहन राय और ईश्वर चंद्र व‌िद्यासागर आद‌ि भी हैं। फेहररि‌स्त लंबी है।

आजकल की बात भी करें तो इस भीड़ में अगर बलात्कारी हैं तो वे लोग भी हैं जो लड़की से बदतमीजी होने पर उसे रोकने के ल‌िए सामने आते हैं। महिलाओं की लड़ाई सड़कों पर लड़ने वाले पुरुष भी हैं।  हालांक‌ि इन लोगों की तादाद कम है या ऐसा हो सकता है क‌ि अनहोनी होने पर ऐसे लोग लड़की के आसपास ही न हों।

मैंने वर्ष 2000 में पत्रकारिता में रि‌र्पोट‌िंग से अपने करिअर की शुरुआत की। तब से लेकर अब तक किसी भी समय, सुनसान, अकेले, खंडहर, दूर-दराज, गांव-देहात, पिछड़े इलाकों आद‌ि में, मैं किसी पुरुष सहयोगी के साथ या अकेले गई हूं। बीस से ज्यादा संपादकों के साथ काम क‌िया लेक‌िन एक बॉस को छोड़कर कभी कहीं, किसी से भी, किसी भी तरह की दिक्कत पेश नहीं आई। पंजाब, हरि‌याणा, पश्च‌िम उत्तर प्रदेश के अलावा किसी राज्य में कोई घटना नहीं घटी। इन राज्यों में भी जो घटनाएं हुईं वे अकेले यात्रा करते समय हुईं।   

सिकिंगर जैसी सोच और भ्रम को दूसरे देशों के और भी लोगों ने पाल रखा है। गलती उनकी नहीं बल्क‌ि हमारी है। वे अपनी जगह सही हैं। समाज में जड़ जमाए बैठी पितृसत्ता व्यवस्था में हैवान‌ियत की सारी हदें लांघ चुके कुछ पुरुषों के कुकृत्यों से न केवल देश की बदनामी हो रही है बल्क‌ि पर्यटन जैसे उद्योगों पर भी असर पड़ रहा है। हमारी ऐसे मुल्क की पहचान बनती जा रही है ज‌िसे बलात्कारि‌यों का देश माना जाने लगा है। बलात्कार या सड़कों पर लड़क‌ियों से छेड़छाड़ करने वाले अंदर से डरपोक भी होते हैं। इसके ल‌िए चाह‌िए क‌ि आसपास वाले जब ऐसा देखें तो कम से कम बोलें तो सही। यह सोचकर चुप्पी की चादर न ओढ़ें क‌ि हमें क्या लेना। नहीं तो दुनिया में भारत ऐसे ही बदनाम होता रहेगा।             

   

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