Advertisement

मॉब लिंचिंग पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, 'भीड़तंत्र नहीं चलेगा, कानून बनाए संसद'

देश में बढ़ रही मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा हिंसा) की घटनाओं के बीच और गौरक्षकों द्वारा हिंसा के मामले में...
मॉब लिंचिंग पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, 'भीड़तंत्र नहीं चलेगा, कानून बनाए संसद'

देश में बढ़ रही मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा हिंसा) की घटनाओं के बीच और गौरक्षकों द्वारा हिंसा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि संसद इसके लिए कानून बनाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि कोई नागरिक कानून को हाथ में नहीं ले सकता और कानून-व्यवस्था बनाए रखना राज्यों का फर्ज है।

कोर्ट ने कहा कि इस तरह के बुरे भीड़तंत्र की इजाजत नहीं दी जा सकती और इसे सामान्य नहीं बनाया जा सकता। इन मामलों पर तीन जुलाई को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। 

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बेंच ने मॉब लिंचिंग और गौरक्षा के नाम पर हिंसा की रोकथाम और सजा संबंधी कुछ निर्देश भी जारी किए। हालांकि चीफ जस्टिस ने यह निर्देश कोर्टरूम में पढ़े नहीं।

बेंच में शामिल जस्टिस एएम खानविलकर, डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि राज्य सरकारों की यह जिम्मेदारी है कि समाज में कानून व्यवस्था और कानून का राज कायम करें। बेंच ने कहा कि राज्य इसे अनसुना नहीं कर सकते। भीड़तंत्र की घटनाओं से सख्ती के साथ निपटना होगा।

गौरक्षा के नाम पर हो रही भीड़ की हिंसा पर रोक लगाने के संबंध में तुषार गांधी और तहसीन पूनावाल ने सुप्रीम कोर्ट ने याचिका दायर की थी। मामले में अगली सुनवाई 28 अगस्त को होगी।

फैसले से पहले टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा था कि ये सिर्फ कानून व्यवस्था का सवाल नहीं है, बल्कि गौरक्षा के नाम पर भीड़ की हिंसा अपराध है। अदालत इस बात को स्वीकार नहीं कर सकती कि कोई भी कानून को अपने हाथ में ले।

सुनवाई के दौरान एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पीएस नरसिम्हा ने कहा था कि केंद्र सरकार इस मामले में सजग और सतर्क है, लेकिन मुख्य समस्या कानून व्यवस्था की है। कानून व्यवस्था पर नियंत्रण रखना राज्यों की जिम्मेदारी है। केंद्र इसमें तब तक दखल नहीं दे सकता जब तक कि राज्य खुद गुहार ना लगाएं।

सुनवाई के दौरान एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से इंदिरा जय सिंह ने दलील दी कि मॉब लिंचिंग के पीड़ितों को मुआवजे के लिए धर्म व जाति आदि को ध्यान में रखा जाए। इसके लिए अनुच्छेद-15 का भी हवाला दिया गया। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीड़ित सिर्फ पीड़ित होता है और उसे अलग कैटेगरी में नहीं रखा जाना चाहिए।

कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को दिए थे निर्देश

पिछले साल 21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने गोरक्षा के नाम पर हिंसा की घटनाओं को अंजाम देने के मामले में केंद्र और राज्य सरकारों से कहा था कि वह किसी ऐसे गौरक्षकों को संरक्षण न दें। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों से सुप्रीम कोर्ट ने गौरक्षा के नाम पर होने वाली हिंसा को लेकर जवाब दाखिल करने को कहा था।

सुप्रीम कोर्ट ने गौरक्षा करने वालों पर बैन की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान छह राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यूपी , गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, झारखंड व कर्नाटक को नोटिस जारी किया था।

अदालत ने गौरक्षा के नाम पर हिंसक सामग्री हटाने को लेकर केंद्र और राज्य सरकार को सहयोग करने के लिए कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से गोरक्षा के नाम पर हिंसा की घटनाओं के मामले में रिपोर्ट पेश करने को कहा था।

सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर, 2017 को राज्यों से कहा था कि वह हिंसा की रोकथाम के लिए सख्त कदम उठाएं। सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा गया था कि अदालत के आदेश का पालन राज्य सरकारें नहीं कर रही हैं। 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad